कल्याणपुर (सूरजपुर), 17 फरवरी (वेदांत समाचार) । किसान सभा की लड़ाई केवल खेती-किसानी और किसान भर को बचाने की नहीं है, असली लड़ाई संविधान, लोकतंत्र और हिंदुस्तान को बचाने और आगे बढ़ाने की है। देश में आज जो कृषि संकट दिख रहा है, यह संकट और गहराकर समूची ग्रामीण आबादी के संकट में बदल गया है। देशव्यापी किसान आंदोलन ने पहली बार कारणों से उपजी समस्याओं पर नहीं, बल्कि हिंदुत्व और कॉर्पोरेट के गठजोड़ को पहचानकर व्यवस्था और नीतियों के खिलाफ संघर्ष छेड़ा है और मोदी सरकार को किसान विरोधी कानून वापस लेने पर मजबूर किया है। इस देशव्यापी किसान संघर्ष को विकसित करने में अखिल भारतीय किसान सभा की महत्वपूर्ण भूमिका है।
उक्त बातें किसान सभा के राष्ट्रीय संयुक्त सचिव बादल सरोज ने कही। वे छत्तीसगढ़ किसान सभा के क्षेत्रीय प्रशिक्षण शिविर को संबोधित कर रहे थे। यह शिविर पिछले दो दिनों से कल्याणपुर में चल रहा है, जिसमें सूरजपुर, सरगुजा, बलरामपुर, कोरिया और मरवाही के किसान सभा कार्यकर्ता हिस्सा ले रहे हैं।
किसान सभा कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करते हुए उन्होंने कहा कि वर्ष 1991 के बाद देश में उदारीकरण की जो नीतियां लागू की गई है, वह खेती-किसानी की तबाही का रास्ता है। इसने भारतीय बाजार को विदेशी खाद्यान्न से पाट दिया है और आम जनता की ख़रीदने की ताकत को खत्म कर दिया है। निजीकरण की नीतियों के कारण ही देश में बेरोजगारी, गरीबी, भुखमरी और अशिक्षा बढ़ी है। इन नीतियों के खिलाफ के8सं सभा पिछले 30 सालों से लगातार संघर्ष कर रही है।
किसान सभा नेता ने बताया कि देश की सार्वजनिक संपत्ति को हड़पने के बाद अब देशी-विदेशी कॉरपोरेटों की नजरें इस देश की जमीन और खनिज पर टिकी हुई है। तीन किसान विरोधी कानूनों का मकसद यही था कि किस प्रकार किसानों की जमीन को अपना मुनाफा बढ़ाने के लिए हड़पा जाए। संविधान में कृषि राज्य का विषय है, इसलिए इन कानूनों को व्यापार के नाम से बनाया गया। लेकिन देश के किसान आंदोलन ने मोदी सरकार की इस चालबाजी को शुरू में ही पहचान लिया था और एक साल से भी ज्यादा लंबे चले आंदोलन में 750 किसानों की शहादत देकर इन कानूनों को वापस लेने के लिए मजबूर कर दिया। इस देशव्यापी आंदोलन की पृष्ठभूमि में किसान सभा द्वारा सी-2 लागत का डेढ़ गुना समर्थन मूल्य देने का कानून बनाने और कर्ज़मुक्ति के लिए चलाए गए आंदोलन का बहुत योगदान है। इन मांगों को हासिल करने की लड़ाई अभी भी जारी है और उत्तरप्रदेश में भाजपा की हार सुनिश्चित करने के बाद इन मांगों के बारे में आंदोलन और तेज किया जाएगा।
इस प्रशिक्षण शिविर में छग किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते, महासचिव ऋषि गुप्ता और आदिवासी एकता महासभा के बाल सिंह भी उपस्थित है। आज शिविर के सांगठनिक सत्र को उन्होंने संबोधित किया तथा “हर गांव में किसान सभा, किसान सभा में हर किसान” के नारे को जमीन पर उतारने के लिए किसानों के बीच व्यापक सदस्यता अभियान चलाने और स्थानीय समस्याओं पर आंदोलन विकसित करने की योजना बनाई। मोदी सरकार के जनविरोधी केंद्रीय बजट के खिलाफ और राज्य सरकार द्वारा बिजली दरों को बढ़ाने के प्रस्ताव के खिलाफ 25 फरवरी को पूरे प्रदेश में विरोध कार्यवाहियां आयोजित की जाएगी तथा अन्य मजदूर-किसान संगठनों के साथ मिलकर व्यापक अभियान चलाकर 28-29 मार्च को देशव्यापी ग्रामीण हड़ताल को सफल बनाया जाएगा।
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