केप्टिव यूज के लिए मिली खदानें पड़ रही महंगी

रायगढ़ 16 फ़रवरी (वेदांत समाचार)।  कोयला मंत्रालय ने अब केप्टिव यूज के लिए कोल ब्लॉक का आवंटन करना बंद कर दिया है। अब केवल कमर्शियल माइनिंग के लिए ही खदानें दी जा रही हैं। इसका असर पूर्व में आवंटित खदानों पर पड़ रहा है। कई कंपनियां अब केप्टिव यूज के लिए मिली माइंस को सरेंडर करने की तैयारी में हैं। अगले साल तक रायगढ़ की तीन माइंस भी सरेंडर हो सकती हैं।2014 में सभी कोयला खदानों का आवंटन निरस्त होने के बाद सरकार ने नीलामी के जरिए कोल ब्लॉक आवंटन का रास्ता चुना। तब से सौ से ज्यादा खदानों की नीलामी हो चुकी है। पहले कई चरणों तक केवल केप्टिव यूज के लिए खदानें दी गईं जिसमें कंपनियों ने भारी-भरकम बोली लगाकर माइंस हासिल किए। हिंडाल्को ने 3501 रुपए प्रति टन की बोली लगाई थी। केप्टिव माइंस का प्रीमियम हर साल बढ़ाया जाता है।

पिछले सात सालों में प्रति टन प्रीमियम बहुत अधिक हो चुका है।हालात यह हैं कि प्रीमियम से कम रेट पर कोल इंडिया की खदानों से कोयला मिल रहा है। अब सरकार ने भी कमर्शियल यूज के लिए नीलामी का विकल्प चुना है। इसके बाद स्थितियां बदल गई हैं। जिन कंपनियों ने केप्टिव माइंस हासिल किए थे, वे भी कमर्शियल ब्लॉक ले रही हैं। दरअसल केप्टिव माइंस से कोयला उत्पादन में लागत बहुत ज्यादा होती जा रही है। इसलिए अब माइंस सरेंडर करने की दिशा में सोचा जा रहा है। इसी वजह से हिंडाल्को ने रायगढ़ जिले की एक माइंस पहले ही सरेंडर कर दी है।

अब तीन और खदानें भी आने वाले दिनों में सरेंडर की जा सकती हैं।जीएसईसीएल को आवंटित ब्लॉक भी कतार मेंरायगढ़ जिले में गुजरात स्टेट इलेक्ट्रिसिटी कॉर्पोरेशन लिमिटेड को गारे पेलमा सेक्टर-1 कोल ब्लॉक आवंटित किया गया था, लेकिन अब तक माइंस से उत्पादन शुरू करने का कोई ठोस प्रयास नहीं दिखा है। सूत्रों के मुताबिक कंपनी माइंस को चलाने में रुचि नहीं ले रही है। उत्पादन के बाद ट्रांसपोर्टेशन में भारी दिक्कतें हैं। रायगढ़ एरिया को रेलवे से पर्याप्त रैक नहीं मिलते। इसलिए भी माइंस सरेंडर करने पर विचार किया जा रहा है। इसी तरह दो और खदानों के बारे में भी चर्चाए चल रही हैं।

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