अपने भतीजे और प्रशांत किशोर से मतभेदों के बीच ममता ने संभाली टीएमसी की कमान

तृणमूल कांग्रेस (TMC) के ट्विटर और फेसबुक हैंडल को 4 फरवरी से अपडेट नहीं किया गया है. आखिरी पोस्ट पश्चिम बंगाल में नगरपालिका चुनावों के लिए उम्मीदवारों की विवादास्पद सूची के बारे में था. आखिर इस चुप्पी की वजह क्या है? हालांकि पार्टी नेताओं का दावा है कि “ओरिजनल लिस्ट चुनाव अधिकारियों के साथ साझा की गई है”, लेकिन उम्मीदवारों के बीच भ्रम की स्थिति बनी हुई है. रिपोर्टों के अनुसार, “मूल सूची” में शामिल उम्मीदवार टीएमसी उम्मीदवारों के रूप में अपना नामांकन भर नहीं पाए हैं. ऐसा कहा जा रहा है कि इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी (I-PAC) द्वारा बनाई गई पहली सूची के उम्मीदवारों ने “आधिकारिक” उम्मीदवारों को पीछे छोड़ दिया. इस तरह की घटना जिन जिलों में घटी उसमें डायमंड हार्बर भी शामिल है, जो एक लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र भी है जिसका प्रतिनिधित्व अभिषेक बनर्जी (Abhishek Banrjee) करते हैं.

I-PAC के हस्तक्षेप की शिकायत

यहां यह जानना ज़रूरी है कि अभिषेक पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी के भतीजे हैं और उनके संभावित उत्तराधिकारी भी. वहीं I-PAC की स्थापना रणनीतिकार प्रशांत किशोर (PK) द्वारा की गई थी.पिछले कुछ समय से तृणमूल कांग्रेस में असंतोष का माहौल है. पार्टी के पुराने नेता संगठनात्मक और नीतिगत मामलों में I-PAC के हस्तक्षेप की शिकायत करते रहे हैं. कई लोगों ने यहां तक कहा कि उन्हें I-PAC के “निर्देशों” का पालन करने के लिए मजबूर किया गया.


पूरा मामला तब सामने आया जब पश्चिम बंगाल में 108 नगर निकायों के चुनाव के लिए उम्मीदवारों के चयन को लेकर पार्टी के भीतर विरोध शुरू हो गया. पूछे जाने पर टीएमसी सांसद सौगत रे ने इस मुद्दे पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया और बस इतना कहा कि यह पार्टी का आंतरिक मामला है. हालांकि, फिजिक्स के पूर्व प्रोफेसर रहे रे ने कथित तौर पर ये भी कहा है कि अगर I-PAC टीएमसी से अलग हो जाता है तो इसकी मुश्किलें बढ़ सकती है. एक अन्य नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि उन्हें इस मुद्दे पर सार्वजनिक रूप से टिप्पणी करने के लिए मना किया गया है.


ममता ने खुद I-PAC से नाता तोड़ने का फैसला किया

एक प्रमुख बंगाली दैनिक ने इस सप्ताह सूत्रों के हवाले से खबर दी कि ममता ने खुद I-PAC से नाता तोड़ने का फैसला किया है. रिपोर्ट के मुताबिक, टीएमसी अध्यक्षा ने पीके को उनके एक टैक्स मैसेज के जवाब में “थैंक यू” कहा, जिसमें प्रशांत किशोर ने कहा था कि वो पश्चिम बंगाल, मेघालय और ओडिशा में टीएमसी के लिए काम नहीं करना चाहते हैं. टीएमसी में कई लोगों का कहना है कि अभिषेक ही प्रशांत किशोर को लेकर आए थे. और उनके साथ एक लंबी बैठक करने के बाद ममता पीके को साथ लेने के लिए तैयार हो गईं थीं.यह बैठक मई 2019 के आसपास हुई थी. जब लोकसभा चुनाव के नतीजे घोषित हो चुके थे. भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने पश्चिम बंगाल में बड़े पैमाने पर अपनी पैठ बनाई थी. वहीं सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने पहले की 34 सीटों की तुलना में सिर्फ 22 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी.

ममता ने तब कहा था कि वह अपने संगठन को और ज्यादा समय देना चाहती हैं. क्योंकि तब प्रशासनिक कार्यों में उनका ज्यादातर समय लग रहा था.लोकसभा परिणाम से टीएमसी ने निष्कर्ष निकाला कि भाजपा राज्य का ध्रुवीकरण कर रही है और दिन-ब-दिन मजबूत होती जा रही है. उसी दौरान किशोर ने एंट्री की. नए सचिवालय भवन में दो घंटे तक चली बैठक के बाद पीके ने बंगाल में अपना बेस बना लिया.2016 के विधानसभा चुनाव से पहले भी ममता और किशोर के बीच एक बैठक हुई थी. यह बैठक कोलकाता में पार्टी मुख्यालय में हुई थी. उनके बीच बैठक अच्छी रही, लेकिन उसके आगे कुछ नहीं हुआ था. दरअसल पीके उस दौरान काफी बिजी थे, और दीदी “उनकी भारी फीस नहीं उठा सकती थी.” लेकिन दूसरी बार पीके और उनकी टीम ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में टीएमसी ने राज्य में अपना दबदबा कायम किया. वहीं भाजपा 294 सदस्यीय विधानसभा में अपने 100 विधायकों का आंकड़ा भी नहीं छू पाई.

गोवा कैंपेन पर ममता के बयान ने लोगों का ध्यान खींचा

हालांकि, पार्टी के अनुभवी नेताओं ने दावा किया कि यह ममता की छवि थी जिसकी वजह से उन्हें ये जीत हासिल हुई. इस बीच, टीएमसी ने बंगाल के बाहर होने वाले चुनाव पर गंभीरता से विचार करना शुरू कर दिया. माना जाता है कि अभिषेक इस राष्ट्रीय कैंपेन का नेतृत्व कर रहे थे. लखनऊ में समाजवादी पार्टी (SP) प्रमुख अखिलेश यादव के साथ एक संयुक्त वार्ता में, ममता ने कहा कि गोवा में उनकी पार्टी के चुनाव लड़ने के बावजूद, उन्होंने उत्तर प्रदेश का दौरा करना चुना क्योंकि यह उनके लिए सम्मान की लड़ाई है. इससे पहले, लखनऊ के लिए निकलते समय उन्होंने कोलकाता में गोवा के बारे में कहा, “वहां कोई है … तो मैं नहीं हूं … मैं दूसरी जगहों पर जा रही हूं …” उनका ये बयान लोगों का ध्यान खींचने के लिए काफी था क्योंकि गोवा की कैंपेन अभिषेक संभाल रहे हैं.

कुछ समय पहले, राज्य सरकार ने फाल्टा में टीएमसी युवा विंग के अध्यक्ष की सिक्योरिटी हटाने का फैसला किया. वे अभिषेक के करीबी माने जाते थे. फाल्टा अभिषेक के लोकसभा क्षेत्र डायमंड हार्बर में आता है. यह सभी घटनाएं इस ओर इशारा कर रही हैं कि आगे चलकर दोनों अलग हो सकते हैं. युवा नेता, जहांगीर खान को वाई-श्रेणी की सुरक्षा का दर्जा प्राप्त था – जो उनके जैसे ब्लॉक लेवल के नेता को मिलना एक असामान्य बात है. एक अन्य घटना में 24 घंटे के अंदर एक विरोधाभासी निर्णय को पलट दिया गया. अरूप बिस्वास, जिन्हें पार्टी के पुराने नेताओं का करीबी माना जाता है, को दक्षिण 24 परगना में निकाय चुनावों के लिए पार्टी समन्वयक बना दिया गया. पहले टीएमसी के राज्य महासचिव कुणाल घोष और कैनिंग ईस्ट के विधायक शौकत मोल्ला, जो जाहिर तौर पर अभिषेक बनर्जी के करीबी हैं, को इस पद के लिए नामित किया गया था. एक दिन बाद ही यह फैसला पलट दिया गया.

क्या बिस्वास को अनौपचारिक उम्मीदवार के तौर पर लाया गया

अभिषेक को क्रेडिट देने वाले COVID-19 रोकथाम के “डायमंड हार्बर मॉडल” पर भी विवाद रहा है. एक कानूनी आदेश के मुताबिक उस दौरान महामारी के प्रसार को रोकने के लिए कोई राजनीतिक या धार्मिक सभा नहीं होनी चाहिए थी. लेकिन यही वह समय था जब राज्य सरकार गंगासागर मेला और कोलकाता नगर निकाय चुनावों की तैयारियों में जुटी थी. एक सांसद ने कहा कि अभिषेक के लिए पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव के रूप में अपनी पहचान बनाने की कोशिश करना गलत नहीं है. सांसद ने इस तथ्य की ओर इशारा किया कि अभिषेक ने गोवा में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान साफ तौर से कहा था कि ममता ही पार्टी की अकेली लीडर हैं.

लेकिन मौजूदा स्थिति पर एक अन्य सांसद का कहना है कि “अब ममता बनर्जी के करीबी सुब्रत बख्शी, पार्थ चटर्जी, फिरहाद बॉबी हकीम और अनुब्रत मंडल हैं, जिन पर वे भरोसा करती हैं.” जबकि जहां बख्शी राज्यसभा सांसद और टीएमसी के प्रदेश अध्यक्ष हैं, चटर्जी और हकीम राज्य मंत्री हैं और मंडल बीरभूम में पार्टी के जिला अध्यक्ष हैं.

एक अन्य टीएमसी नेता मदन मित्रा ने गुरुवार को पश्चिम बर्धमान के दुर्गापुर में एक कार्यक्रम में काव्यात्मक रूप से कहा: “अगर ममता बनर्जी हमारे दिल में हैं, तो अभिषेक हमारे माथे पर हैं.” फेसबुक पर सिर्फ ममता की तस्वीर इस्तेमाल होने का निर्देश देखे जाने के बारे में उन्होंने संवाददाताओं से कहा, “उनके नेतृत्व में युवा पीढ़ी को मजबूत किया जाएगा. मैं अनुरोध करता हूं कि दोनों की (ममता और अभिषेक) तस्वीरों का इस्तेमाल (पार्टी कार्यक्रमों में) किया जाए.”