मुख्यमंत्री शिवराज ने महिला स्व-सहायता समूहों को दी 300 करोड़ करोड़ रुपए ऋण की सौगात

भोपाल08 फ़रवरी (वेदांत समाचार)।  मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन में गठित स्व-सहायता समूह के सदस्यों को 300 करोड़ रूपये का बैंक ऋण वितरित किया। साथ ही कुछ जिलों के स्व-सहायता समूह सदस्‍यों से वर्चुअल संवाद भी किया। कुशाभाऊ ठाकरे सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम में सभी जिलों से ग्राम पंचायत स्‍तर पर समूह सदस्‍य विभिन्‍न वर्चुअल माध्‍यमों से जुड़े। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने कार्यक्रम में शामिल स्व-सहायता समूह की कुछ महिलाओं को प्रतीकस्वरुप ऋण राशि के चेक प्रदान किए।

इस कार्यक्रम के दौरान सीएम शिवराज ने अपने संबोधन में कहा कि मेरी बहनों, आप अपने समूहों को आगे बढ़ायें। सरकार हर कदम पर आपके साथ है। यह संकल्प करें कि आगे बढ़ना है, पीछे मुड़कर नहीं देखना है। अपनी आमदनी बढ़ाना है, अपने पैरों पर खड़े होना है, ताकि जरूरत पड़े तो अपने परिवार की सहायता भी कर सकें। मैं चाहता हूं कि मेरी हर बहन पैसा कमाए और सम्मान के साथ जिए। उसकी आमदनी बढ़े और इसका सबसे प्रभावी उपाय है आजीविका मिशन। मेरा सपना है कि मेरी हर गरीब बहन आजीविका मिशन से जुड़कर कम से कम 10 हजार रुपए महीना कमाने लगे। हमने बहनों को सशक्त करने के लिए पंचायत, नगर पालिका, पार्षद, मेयर, सरपंच आदि पदों पर 50 प्रतिशत का आरक्षण दिया और आज कहते हुए गर्व है कि मेरी कई बहनें इन पदों पर आसीन हैं और बहुत अच्छा कार्य कर रही हैं। मैंने संबल योजना बनाई, ताकि बच्चों के जन्म से पहले नारी शक्ति के हितों की सुरक्षा हो सके। बेटियों को आगे बढ़ाने के लिए लाड़ली लक्ष्मी योजना प्रारंभ की और मुझे बताते हुए गर्व की अनुभूति होती है कि 41 लाख से अधिक बेटियां लाड़ली लक्ष्मी बन चुकी हैं। बचपन से ही मैंने बेटे और बेटियों के बीच भेदभाव होते देखा है। तभी से दिमाग में यह बात बैठ गई कि मां, बहन और बेटी के सशक्तिकरण के लिए हर संभव कार्य करना है!

मुख्यमंत्री चौहान से संवाद के दौरान देवास जिले की रुबीना ने बताया कि वह राज्य आजीविका मिशन ने उनका जीवन बदल दिया है। एक वक्त था जब वह मजदूरी करती थीं। आजीविका मिशन से जुड़ने के बाद वह गांव-गांव जाकर कपड़ा बेंचती हैं और लगभग 30 हजार रुपए महीने की कमाई कर रही हैं। रुबीना ने बताया कि सबसे पहले उन्होंने बैरागढ़ से 5000 रुपए कपड़ा लाकर अपने गांव में बेचा व फिर धीरे-धीरे दूसरे गांव तक अपनी पहुंच बनाई। पहले वह गठरी बांधकर पैदल ही गांव-गांव जाती थीं, लेकिन आज वह मारुति वैन में अपनी दुकान सजाकर गांव-गांव कपड़ा बेचती हैं।