छत्तीसगढ़ के सरगुजा (Surguja) जिले में ब्रिटिशकाल में अंग्रेजी सरकार (British rule) से लड़ने वाले एक शहीद का कंकाल (Skelton) जिला मुख्यालय अंबिकापुर (Ambikapur) के सबसे पुराने स्कूल में रखा हुआ है. वहीं, इस कंकाल को वापस लेने के लिए आदिवासी समाज (Tribal Society) के लोग उनके परिवार वालों को देने की मांग कर रहे हैं. जिससे वे उसका अंतिम संस्कार कर सकें. हालांकि स्कूल में विज्ञान के छात्रों को पढ़ाने के हिसाब से कंकाल को रखने की बात कही जा रही है, मगर समाज के लोग सवाल उठा रहें हैं कि साल 1913 में जब कुसमी इलाके के लागुड़ नगेसिया शहीद हुए, तब स्कूल की बिल्डिंग में पढ़ाई भी नहीं होती थी कि वहां किसी का कंकाल रखकर पढ़ाई कराई जाए.
दरअसल, ये मामला सरगुजा संभाग के बलरामपुर जिले में स्थित कुसमी ब्लॉक का है. जहां राजेंद्रपुर के रहने वाले लागुड़ नगेसिया पुदाग गांव में घर-जमाई रहता था. इसी दौरान उसका झुकाव झारखंड में चल रहे टाना भगत नाम के आंदोलनकारी के शहीद होने के बाद टाना आंदोलन से हुआ. इसके बाद वह आंदोलन में शामिल हुआ और लागुड के साथ बिगू और कटाईपारा जमीरपाट के साथ रहने वाले थिथिर उरांव के साथ आंदोलन करने लगे थे. इस दौरान उन्होंने अंग्रेजी सरकार के लिए काम करने वालों की हत्या कर दी थी.
सरगुजा इलाके में लागुड किसान और बिगुड बनिया के रूप में आज भी प्रसिद्ध
बता दें कि इस हत्याकांड के बाद साल 1912-1913 में थीथिर उरांव को घुड़सवारी दल ब्रिटिश आर्मी ने मार डाला और लागुड़ बिगुड को गिरफ्तार कर अपने साथ ले गए. जानकारों के मुताबिक कहा जाता है कि अंग्रेजी सरकार ने उसके बाद दोनों को खौलते तेल में डालकर मार डाला गया था. वहीं, इनमें से एक लागुड के कंकाल को तब के एडवर्ड स्कूल और वर्तमान के स्कूल में विज्ञान के छात्रों को पढ़ाने के नाम पर रख दिया गया. हालांकि आज भी लागुड बिगुड की कहानी सरगुजा इलाके में लागुड किसान और बिगुड बनिया के रूप में आज भी प्रसिद्ध है. लोग आज भी उन्हें क्रांतिकारी के रूप में जानते हैं.
टूट चुका है कंकाल का ढांचा
वहीं, शासकीय स्कूल के प्रिंसिपल एचके जायसवाल ने बताया कि स्कूल के लैब में कंकाल रखा हुआ था. इस दौरान उसका ढांचा टूट गया है, इसके बाद उसे प्रिजर्व करके रखा है. उन्होंने कहा कि मेरी जानकारी में उसका इस्तेमाल पढ़ाई के लिए नहीं हो रहा है.
आदिवासी समाज के लोग कंकाल के DNA परीक्षण की कर रहे मांग
गौरतलब है कि लागुड़ की बेटी और दामाद की एक साल पहले ही मौत हो गई थी. वहीं, पोती मुन्नी नगेसिया चरहट कला ग्राम पंचायत में रहती है. इस दौरान चरहट कला के सरपंच मनप्यारी भगत के पति जटरू भगत बताते हैं कि लगुड़ का दामाद कंडू हमेशा गांव में अपने ससुर की कहानी सुनाया करता था और कहता था कि उसकी मूर्ति को गांव में स्थापित कर देना चाहिए. हालांकि, अब तक ऐसा नहीं हुआ. इस दौरान सभी आदिवासी समाज के लोग कंकाल के DNA परीक्षण की मांग कर रहे हैं. उन्होंने बीजेपी की रमन सरकार के समय इसकी मांग की थी, लेकिन सरकार ने इस पर कोई पहल नहीं की. वहीं, साल 1982 में संत गहिरा गुरु ने लगुड़ की आत्मा की शांति के लिए अनुष्ठान कार्यक्रम का आयोजन किया था. ऐसे में बीते 25 जनवरी को आदिवासी समाज के लोगों ने कलेक्टर से मांग की है कि लगुड़ का कंकाल उनके परिजनों को दिलवाया जाए.
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