ISIS के कारण ‘नरक’ में रह रहे 40,000 बच्चे, 60 देशों से 7800 का ताल्लुक, अब जेलों पर हमला कर इस साजिश को पूरा करने की कोशिश

इस्लामिक स्टेट (आईएस) ने उत्तर-पूर्वी सीरिया की एक जेल (Syria Jail Attack) पर बीते दिनों बड़ा हमला किया था. जिसके बाद उसकी अमेरिका समर्थित कुर्द लड़ाकों के साथ जंग छिड़ गई. जेल के भीतर भी दंगे होने की खबर आई. जिसके चलते 180 से अधिक लोगों की मौत हो गई. हालांकि कुर्द लड़ाकों (Kurd Fighters) ने जेल पर हमला करने वाले आईएसआईएस (ISIS Terrorists) या आईएस के इन कई आतंकियों को गिरफ्तार कर उन्हें खदेड़ दिया. करीब छह दिन पहले आईएस ने अल-सिना जेल पर हमला कर 3500 कैदियों को भगाने की कोशिश की थी. ये जेल गुवायरान क्षेत्र की सबसे बड़ी जेलों में से एक है.

वैश्विक आतंकी संगठन आईएस ने मध्यपूर्व सहित कई देशों में आतंक मचाया हुआ है. संगठन ने सीरिया में तीन साल पहले अपना ‘किला’ ढहने के बाद ये हमला कर अपनी मौजूदगी का अहसास कराने की कोशिश की. इसके आतंक के कारण देश के 45,000 से अधिक लोगों को विस्थापित होना पड़ा है (ISIS Terrorism). इस बीच एक अलग बात निकलकर सामने आई, कि इन जेलों में महिलाओं और पुरुषों के अलावा बच्चे भी कैद हैं. इनमें आईएस के आतंकियों के बच्चे और कुछ बचपन में ही लड़ाके के तौर पर संगठन का हिस्सा बनने वाले शामिल हैं.

जेल में 700 बच्चों को कैद किया गया

इन बच्चों का दुनियाभर के अलग-अलग देशों से ताल्लुक है. ये यहां दो साल से अधिक वक्त से कैद हैं. इनकी सरकारें इनकी वापसी कराने में विफल रही हैं. कुर्द नेतृत्व वाली सीरियन डेमोक्रेटिक फोर्सेज (एसडीएफ) का कहना है कि जेल में 700 बच्चे रहते हैं. जबकि संयुक्त राष्ट्र की बाल एजेंसी यूनिसेफ का कहना है कि ये संख्या 850 है. ब्रिटेन स्थित चैरिटी सेव द चिल्ड्रन से जुड़ीं सीरिया प्रतिक्रिया निदेशक सोनिया खुश ने कहा, ‘हम 11 या 12 साल के छोटे लड़कों की बात कर रहे हैं.’ जेल की देखरेख का काम एसडीएफ कर रहा है.

दिमाग में जहर भर रहा आईएसआईएस

मानवाधिकारी निगरानी समूह का कहना है कि कैद बच्चों में से कई वो हैं, जो लड़ाई के दौरान घायल हुए हैं. जबकि कई बच्चे उस समय मारे गए, जब उनके माता-पिता आतंकवाद के नशे में चूर होकर हमलों को अंजाम देते फिर रहे थे (SDF in Syria). इस्लामिक स्टेट एक बार फिर ताकतवर बनने के लिए जेल पर हमले कर अपने समर्थकों को बाहर निकालने की कोशिश में है. इसके अलावा वो महिलाओं और बच्चों को कैद से रिहा करने का नाटक इसलिए कर रहा है, ताकि लोगों के दिमाग में जहर भरा जा सके, और दिखाया जा सके कि इस्लामिक स्टेट महिलाओं और बच्चों की भलाई चाहता है. इस मकसद से वो दुनियाभर के लोगों को अपने जाल में फंसाने की कोशिश कर रहा है. ताकि फिर से मजबूत हो सके.

कैंपों में रह रहीं महिलाएं और बच्चे

जेल की सुरक्षा करने वाले एसडीएफ ने साफतौर पर नहीं बताया कि बच्चों को जेल के किस हिस्से में रखा गया है. रोजावा सूचना केंद्र में सीरिया स्थित शोधकर्ता क्लैरा मूरे ने कहा कि इन बच्चों को जेल से अलग किसी दूसरी तरह के स्थान पर रखना चाहिए. दरअसल जब इस्लामिक स्टेट का किला ढहा, तब इन मारे गए या पकडे़ गए आतंकियों की पत्नियों और छोटे बच्चों को कैंपों में भेजा गया. जबकि टीनेज लड़के और पुरुषों को जेल में बंद किया गया. एसडीएफ अधिकारी और कुछ विश्लेषक कहते हैं कि इन कैंपों में भी अपराध जैसी घटनाएं हो रही हैं. 14-15 साल के टीनेज लड़के कैंप से दूर भेजे जा रहे हैं, ताकि इस्लामिक स्टेट के लड़ाकों के साथ मिलकर आतंक फैला सकें. रिपोर्ट्स में ऐसा कहा जाता है कि कैंप में महिलाओं के साथ रहने वाले लड़के जब बडे़ हो जाते हैं, तो इसलिए उन्हें जेलों में भेज दिया जाता है.

बीते साल स्वदेश भेजे गए कई बच्चे

मानवाधिकार और दूसरे संगठनों ने विश्व बिरादरी से कहा है कि वह अपने-अपने देश से ताल्लुक रखने वाले बच्चों को यहां से निकाल लें. साल 2021 में उत्तरपू्र्वी सीरिया से कुछ दर्जन बच्चों को उनके देश लौटाया गया है. सेव द चिल्ड्रन की सितंबर में प्रकाशित रिपोर्ट में अमेरिका, नॉर्वे, कनाडा और यूरोपीय संघ (European Union) से बच्चों को स्वदेश भेजे जाने का आह्वान किया गया था. वहीं एसडीएफ का भी कहना है कि उनके पास संसाधनों की भारी कमी है. जिससे वह देश के भीतर के हजारों परिवारों और अपने खुद के लड़ाकों की जरूरतें मुश्किल से पूरी कर पाते हैं. उन्होंने कहा कि इस्लामिक स्टेट (Islamic State) और उससे जुड़े कैद लोग केवल सीरिया की स्थानीय परेशानी नहीं है.

स्वीडन भेजी गईं महिलाएं और बच्चे

जेल में झड़प होने के बाद स्थानीय अधिकारियों ने स्वीडन की दो महिलाओं और चार बच्चों को स्वीडन भेजा है. लेकिन हजारों अब भी जेलों में ही हैं. अल-होल और अल-रोज कैंप में 60,000 लोग हैं. जिनमें 40,000 बच्चे हैं. इनमें से 7800 करीब 60 देशों से हैं. बाकी के सीरिया और इराक से हैं. एसडीएफ जैसे तैसे इन लोगों को पाल रहा है. अंतरराष्ट्रीय मानवीय संगठनों के सहायता कर्मियों को इन लोगों के रहने की स्थिति में सुधार के लिए भेजा जा रहा है. कई बच्चों की उम्र छह या सात साल तक है. लेकिन जिन 60 देशों से ये ताल्लुक रखते हैं, वो इन्हें वापस लेने के मूड में नहीं हैं. उन्हें डर है कि ये देश में लौटकर आतंकवाद फैलाएंगे. ऐसे में उनका ये डर भी वाजिब है.

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