माघ मास की अमावस्या को माघी अमावस्या (Maghi Amavasya) कहा जाता है. माना जाता है कि इस दिन मनु ऋषि का जन्म हुआ था. मनु शब्द से ही मौनी की उत्पत्ति हुई है, इसलिए इस अमावस्या को मौनी अमावस्या (Mauni Amavasya) के नाम से भी जाना जाता है. मौनी अमावस्या के दिन गंगा नदी के जल को अमृत के समान माना जाता है. इस दिन गंगाजल (Ganga Water) में देवताओं का वास होता है. इसलिए मौनी अमावस्या के दिन गंगा स्नान (Ganga Snan) का विशेष महत्व माना जाता है. मौनी अमावस्या के दिन स्नान के बाद दान-पुण्य (Daan-Punya) का भी विशेष महत्व माना गया है. कहा जाता है कि इस दिन दान-पुण्य करने से सौ गुना ज्यादा पुण्य प्राप्त होता है.
इस बार मौनी अमावस्या 1 फरवरी को मनाई जाएगी. मौनी अमावस्या के दिन श्रीहरि का पूजन किया जाता है. तमाम लोग मौनी अमावस्या के दिन व्रत भी रखते हैं. मौनी अमावस्या के दिन मौन व्रत रखने का भी विशेष महत्व है. शास्त्रों में कहा गया है कि उच्चारण करके जाप करने से कई गुणा अधिक पुण्य मौन रहकर हरि का जाप करने से मिलता है. यहां जानिए सही मायने में मौन व्रत क्या है और इसका महत्व क्या है?
समझें मौन के सही मायने
मौन रहने का वास्तविक अर्थ है बाहरी दुनिया से दूर रहकर खुद के अंतर्मन में झांकना, आत्ममंथन करना और अंदर की अशुद्धियों को प्रभु का नाम लेकर दूर करना और मन को शद्ध करना. मौन का मतलब ये बिल्कुल नहीं होता कि आपने मुंह से बोलना बंद कर लिया, लेकिन मन विचलित है, गलत विचारों और बुराइयों से भरा पड़ा है. मौन रहकर आपको अपने मन को एकाग्र करना होता है और प्रभु के नाम का स्मरण करना होता है. इससे आपकी नकारात्मकता दूर होती है और आपके अंदर आध्यात्मिकता का विकास होता है.
मौनी अमावस्या पर मौन का महत्व
कहा जाता है कि यदि व्यक्ति इस दिन संकल्प लेकर पूरे विधि विधान के साथ मौन व्रत रखता है तो उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मुनिपद की प्राप्ति होती है. अगर आप पूरे दिन मौन व्रत नहीं रख सकते हैं तो कम से कम स्नान और दान-पुण्य से पहले सवा घंटे का मौन व्रत जरूर रखें. इससे आपके पाप कटने के साथ आपको दान-पुण्य का 16 गुणा अधिक फल प्राप्त होगा.
मौनी अमावस्या के नियम
– सुबह सूर्योदय से पूर्व उठकर मन में व्रत का संकल्प लें.
– पूरे दिन का न सही तो कम से कम स्नान और दान करने तक मौन धारण करें.
– गंगा स्नान करें और अगर अगर गंगा घाट पर नहीं जा सकते तो घर में पानी में गंगा जल मिलाकर स्नान करें.
– स्नान से पूर्व जल को प्रणाम करें और श्रीहरि का नाम लें
– स्नान के बाद सूर्य को जल में काले तिल डालकर अर्घ्य दें. फिर नारायण की विधि विधान से पूजा करें.
– पूजा के बाद सामर्थ्य के अनुसार दान करें.
– अगर व्रत रखा है तो दिन में फल और जल ले सकते हैं.
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