रायपुर 21 जनवरी (वेदांत समाचार)। गांवों की चौतरफा प्रगति के लिए ई-पंचायत नवाचार पर खास तौर पर ध्यान दिया जा रहा है। इससे भ्रष्टाचार रोकने, नीति निर्माण करने, योजनाओं के क्रियान्वयन में जमीन स्तर की निगरानी करने, लाभार्थियों की पहचान करने, आडिट करने, हितों के टकराव और योजनाओं के दोहराव आदि को रोकने में मदद मिलेगी। अपना राज्य उन 22 प्रदेशाें में से है, जहां ई-पंचायत का कार्य प्रगति पर है। यहां पंचलेखा नाम से ई-पंचायत का विकास किया जा रहा है। खास बात यह है कि जहां यह नवाचार बाकी प्रदेशों में सीमित स्तर पर चल रहा है, वहीं
प्रदेश में इसे व्यापक स्तर पर आगे बढ़ाया जा चुका है।पंचायतों ने ग्रामीण आबादी को शासन से जोड़ने का काम किया है। निस्संदेह इन संस्थाओं ने अपने निर्माण को सार्थक साबित किया है, लेकिन वर्तमान में तीव्र गति से बदलती प्राथमिकताओं और लाभार्थियों की शीघ्र पहचान करने में ये संस्थाएं अपेक्षानुसार कुछ धीमी साबित होती रही हैं, इसलिए पंचायती राज संस्थाओं का डिजिटलीकरण अनिवार्य हो गया है। प्रौद्योगिकी के प्रयोग से उनकी कार्यकुशलता और प्रभावशीलता बढ़ेगी। ई-पंचायत का लाभ नागरिकों को गुणवत्तायुक्त सेवाएं प्रदान करने में मिलेगा।
ई-पंचायत की सफलता इसके क्रियान्वयन और उपयोग पर आधारित है। इसके लिए पंचायतों को बेहतर नेट कनेक्टिविटी से जोड़ना पड़ेगा। भारतीय गांवों को उच्च गति ब्राडबैंड कनेक्शन से जोड़ने के लिए भारत नेट परियोजना संचालित की जा रही है। कंप्यूटर तथा उसे चलाने के लिए प्रशिक्षण की आवश्यकता होगी। इसके साथ ही गांवों में बिजली की आपूर्ति भी एक प्रमुख घटक रहेगा। तीस-चालीस वर्ष से अधिक आयु वर्ग के ग्रामीणों के बीच तकनीक के प्रति जागरूकता लाना भी एक चुनौती होगी।
शासन की तरफ से इस दिशा में कार्य किए जा रहे हैं, लेकिन इनकी गति और संख्या कम है। कोविड महामारी में हमने देखा कि किस प्रकार प्रौद्योगिकी का प्रयोग कर पंचायती राज संस्थाओं ने संक्रमण के प्रसार को रोका तथा डाटा की उपलब्धता ने किस प्रकार टीकाकरण को सरल बनाया, लेकिन इन सबके बीच यह कमी भी उजागर हुई कि डिजिटलीकरण के दौर में सरकारें बुनियादी संरचना प्रदान करने में पिछड़ी हुई हैं। मोबाइल होने के बाद भी
आनलाइन पढ़ाई और टेली चिकित्सा का लाभ एक बड़ी आबादी को नहीं मिल पा रहा है।प्रौद्योगिकी के प्रयोग से निश्चित तौर पर लाभ होगा, लेकिन केंद्र-राज्य संबंधों को मजबूत करने के लिए मानवीय व्यवहार को प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता। संबंधों में तनाव एक-दूसरे से ज्यादा अपेक्षा तथा अपनी जिम्मेदारी को ईमानदारी से न निभाने के कारण आता है। ऐसी कई योजनाएं हैं, जो तकनीक की समस्या की जगह वैचारिक मतभेदों और हितों के कारण लागू ही नहीं हुईं। ढांचा सुधारने के लिए नवाचार तथा संबंध सुधारने के लिए संवाद और विश्वास जरूरी है। सबके समन्वय से आत्मनिर्भर भारत और गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ का लक्ष्य हासिल होगा।
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