सामाजिक कार्यकर्ता और पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित शांति देवी (Shanti Devi) का ओडिशा (Odisha) के रायगडा जिले के गुनुपुर में उनके आवास पर निधन हो गया. उनके निधन पर पीएम मोदी (PM Modi) ने शोक जताया है. ट्विटर पर उन्होंने लिखा है कि ‘शांति देवी जी को गरीबों और वंचितों की आवाज के रूप में याद किया जाएगा. उन्होंने दुखों को दूर करने और एक स्वस्थ और न्यायपूर्ण समाज बनाने के लिए निस्वार्थ भाव से काम किया. उनके निधन से आहत हूं. मेरे विचार उनके परिवार और अनगिनत प्रशंसकों के साथ है. शांति देवी ने समाज के कई बेहतर कार्य किया है. जिसे हमेशा याद रखा जाएगा.
शांति देवी एक जानी मानी सामाजिक कार्यकर्ता थीं. उनका जन्म 18 अप्रैल, 1934 को बालासोर जिले के एक जमींदार परिवार में हुआ था. 17 साल की उम्र में दो साल के कॉलेज के बाद, उनकी शादी महात्मा गांधी के अनुयायी डॉक्टर रता दास से हुई. जिसके बाद वो अपने पति के साथ अविभाजित कोरापुट चली गईं. शांति देवी ने 1952 में कोरापुट जिले में जमीन सत्याग्रह आंदोलन से खुद को जोड़ा. तब उन्होंने जमींदारों द्वारा जबरन हड़प ली गई आदिवासी लोगों की जमीन को मुक्त कराने के लिए संघर्ष किया. बाद में वह बोलनगीर, कालाहांडी और संबलपुर जिलों में भूदान आंदोलन में शामिल हो गईं. उन्होंने गोपालनबाड़ी स्थित आश्रम में भूदान कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण दिया, जिसकी स्थापना मालती देवी (ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री नबा कृष्ण चौधरी की पत्नी) ने की थी.
2001 में मिला पद्मश्री पुरस्कार
शांति देवी गांधीवादी अनुयायी आचार्य विनोबा भावे से 1955-56 में मिलीं. उनकी विचारधारा से प्रेरित होकर, उन्होंने आदिवासियों, निराश्रित महिलाओं और अनाथ लड़कियों के विकास के लिए काम करना शुरू किया और उनके भूदान आंदोलन में भाग लिया. उन्होंने अनाथों, बेसहारा और गरीब बच्चों के पुनर्वास के लिए 1964 में रायगढ़ जिले के गुनुपुर में सेवा समाज आश्रम की स्थापना की. उन्होंने गनपुर में भी एक और आश्रम स्थापित किया. शांति देवी ने आदिवासी लड़कियों को आगे बढ़ाने के लिए बहुत काम किया. उन्होंने शिक्षा के माध्यम से आदिवासी लड़कियों के उत्थान के लिए अपना अमूल्य योगदान दिया. समाज सेवा में उक्कृष्ट कार्य के लिए वर्ष 2021 में उन्हें देश के सबसे प्रतिष्ठित नागरिक पुरस्कारों में से एक पद्मश्री से सम्मानित किया गया था.
[metaslider id="347522"]