स्‍थानीय संपादकीय : छत्‍तीसगढ़ में सलाखों के पीछे वर्दीवाला

रायपुर 14 जनवरी (वेदांत समाचार)। छत्‍तीसगढ़ के निलंबित आइपीएस जीपी सिंह को गिरफ्तार करने वालों पर जवाबदेही होनी चाहिए कि वह सजा दिलाना सुनिश्चित करें ताकि यह स्थापित न हो कि संसाधनों का दुरुपयोग करते हुए पूरी प्रक्रिया सिर्फ फंसाने के लिए चली।निलंबित आइपीएस अधिकारी जीपी सिंह की गिरफ्तारी के बाद उम्मीद की जानी चाहिए कि पुलिस उनके खिलाफ लगे आरोपों को अदालत में स्थापित करने में सफल रहेगी। अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (एडीजी) के पद तक पहुंचे 1994 बैच के जीपी दबंगता और आक्रामकता के लिए जाने जाते रहे हैं।

बिलासपुर एसपी राहुल शर्मा के वर्ष 2012 के आत्महत्या प्रकरण में उनके नाम की चर्चा होती रही, परंतु इस बार भ्रष्टाचार, आय से अधिक संपत्ति और देशद्रोह के मामलों में घिरे हैं। यह संयोग ही हो सकता है कि जिस अपराध नियंत्रण ब्यूरो (एसीबी) और आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) के वह मुखिया रह चुके हैं, उसी के अधिकारी उनसे पूछताछ कर रहे हैं।

जीपी का दावा है कि उनके स्वजनों की संपत्ति को भी उनके नाम बताकर फंसाया जा रहा है, पूरा मामला बनावटी है और एफआइआर पढ़ने से ही सबकुछ स्पष्ट हो जा रहा है। सवाल उठता है कि अगर जीपी सही हैं तो हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक जमानत की अर्जी क्यों लगाते रहे। भ्रष्टाचार के मामले में तो सुप्रीम कोर्ट से तीन जनवरी को जमानत खारिज होने के बाद ही उनकी गिरफ्तारी हुई है।

साफ है कि जांच एजेंसी की तरफ से अदालत में पेश प्रमाणों में दम होगा, जिसके आधार पर उनके खिलाफ कार्रवाई की प्रक्रिया आगे बढ़ी है। राष्ट्रीय राजधानी से सटे गुरुग्राम में जिस तरीके से भरे बाजार में उन्हें दबोचा गया वह शोभनीय नहीं माना जा सकता। कोर्ट से अग्रिम जमानत नहीं मिलने पर बेहतर होता कि जीपी ने खुद को ही जांच एजेंसी के समक्ष प्रस्तुत कर दिया होता।

वर्दी और पद के सम्मान में यही बेहतर रहता। अगर वह ईमानदार हैं तथा संविधान और अदालत में भरोसा रखते हैं तो उन्हें निश्चिंत होना चाहिए था कि वह आरोपों से मुक्त ही होंगे। अब उनकी गिरफ्तारी के साथ ही कुछ पुराने मामलों की जांच में भी प्रगति की उम्मीद की जा रही है। इनमें राजनांदगांव के समर्पित नक्सली पहाड़ सिंह से जुड़ा मामला भी शामिल है जिसकी जांच की जिम्मेदारी नक्सल डीजी के रूप में पुलिस महानिदेशक अशोक जुनेजा के पास रहा है।

प्रदेश में पुलिस और प्रशासनिक सेवा के अधिकारी पहले भी भ्रष्टाचार और अन्य मामलों में नामजद या गिरफ्तार होते रहे हैं परंतु अभी तक किसी को भी सजा नहीं हो सकी है। निश्चित तौर पर ठोस प्रमाण के अभाव में सभी अदालत से ससम्मान आरोप मुक्त होते रहे हैं।पूरी प्रक्रिया में वर्दी सिर्फ बदनाम होती है और जनता का कानून व्यवस्था के प्रति विश्वास कमजोर होता है। जीपी सिंह को गिरफ्तार करने वालों पर जवाबदेही होनी चाहिए कि वह सजा दिलाना सुनिश्चित करें ताकि यह स्थापित न हो कि संसाधनों का दुरुपयोग करते हुए पूरी प्रक्रिया सिर्फ फंसाने के लिए चली।