कोरोनाकाल में फ्लाई ऐश के निस्तारण के दोहरे संकट से घिरा एनटीपीसी

कोरबा 10 जनवरी (वेदांत समाचार)। कोरोना संक्रमण के चलते लगाए गए लाकडाउन में छाई मंदी से कई ऐश ब्रिक्स निर्माण उद्योग बंद हो गए। कई सड़क निर्माण भी ठंडे बस्ते में चले गए। इससे कोरबा में संचालित कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों से निकलने वाले राख (फ्लाई ऐश) की खपत 40 प्रतिशत घट गई है। नेशनल थर्मल पावर कार्पोरेशन (एनटीपीसी), कोरबा ने छत्तीसगढ़ सरकार से कोरियाघाट में राखड़ बांध बनाने के लिए जमीन मांगी थी, पर इलाका हाथी अभयारण्य के अंतर्गत आने का हवाला देते हुए इस प्रस्ताव को निरस्त कर दिया। इससे एनटीपीसी प्रबंधन दोहरे संकट से घिर गया है।

जमनीपाली में एनटीपीसी का 2600 मेगावाट क्षमता का विद्युत संयंत्र संचालित है। यहां प्रतिदिन 40 हजार टन कोयला की खपत होती है और करीब 20 हजार टन राख उत्सर्जित होती है। हर साल निकलने वाली औसतन 73 लाख टन राख की खपत किसी चुनौती से कम नहीं है। बावजूद इसके एनटीपीसी शत-प्रतिशत राख की उपयोगिता का लक्ष्य लेकर अब तक काम करता रहा। लेकिन, कोरोनाकाल में इसके निस्तारण की समस्या गहरा गई है। राज्य में ज्यादातर सड़क निर्माण समेत अन्य कार्यों की गति धीमी हो गई है, जिसका सीधा असर राख की खपत पर पड़ा है। ऐश ब्रिक्स व सीमेंट फैक्ट्रियों में उत्पादन घटने से भी इस पर असर पड़ा है।

एनटीपीसी कोरबा के कार्यपालक निदेशक बिस्वरूप बसु ने बताया कि कोरोना की वजह से राख की उपयोगिता पर असर पड़ा है। इस बार अधिक बारिश हुई, इससे भी राख की खपत में कमी आई है। इस समस्या से निजात पाने के लिए प्रबंधन ने कोरियाघाट में राखड़ बांध के लिए एक हजार एकड़ जमीन राज्य सरकार से मांगी थी। पर्यावरण विभाग ने जंगली जानवरों के लिए यह क्षेत्र संरक्षित होने की बात कहते अनुमति देने से मना कर दिया है। प्रबंधन अब घमोटा में उपलब्ध राखड़ बांध की जमीन पर अस्थाई बांध तैयार कर वहां से परिवहन का काम जल्द शुरू करेगा।

संकट में साथ देने की राज्य सरकार की भी जिम्मेदारी

राख के अधिकतम उपयोग के लिए एनटीपीसी ने अलग से राख उपयोगिता प्रभाग (एयूडी) स्थापित किया है। यह विभाग राख खपत के लिए नई योजनाएं तैयार कर उसकी प्रगति की निगरानी करता है। तमाम कवायद के बाद भी इन दिनों शत-प्रतिशत राख की खपत नहीं हो पा रही है। एनटीपीसी अपने संयंत्र से उत्पादित बिजली में 250 मेगावाट विद्युत राज्य को उपलब्ध करा रही है। जानकारों का कहना ैह कि ऐसे में राज्य सरकार की भी जिम्मेदारी है कि संकट के वक्त प्रबंधन का साथ दे।