19 महीने 1000 गांवों में भटके विजेंद्र, केदारनाथ त्रासदी में मृत घोषित पत्नी को खोजा, अब बनेगी प्रेम कहानी पर फिल्म..

भारतीय समाज में पति-पत्नी के रिश्ते को बेहद पवित्र माना जाता है और इसी रिश्ते की नींव से प्यार की परिभाषा खड़ी होती है. हमारे आस-पास और फिल्मों-कहानियों में प्रेम से लबरेज अनेकों कहानियां हैं जिनमें बेपनाह मोहब्बत के लिए प्रेमी या प्रेमिका की हजारों मिसाल है.

लेकिन आज हम जो कहानी आपको बताने जा रहे हैं उसके आप प्रेम के वास्तविक एहसास से रूबरू होंगे. जी हां, हम बात कर रहे हैं राजस्थान के अजमेर जिले के रहने वाले विजेंद्र सिंह राठौड़ की जो 19 महीने तक गांव-गांव भटककर करीब 1000 हजार गांवों की खाक छानने के बाद उनकी अपनी गुमशुदा पत्नी को खोजने की तलाश पूरी हुई.

दरअसल 2013 में केदारनाथ त्रासदी में कुदरत ने विकराल रूप दिखाया था जिस दौरान आई बाढ़ में विजेंद्र की पत्नी उनसे बिछड़ गई थी. केदारनाथ त्रासदी के बाद विजेन्द्र सिंह को अपनी पत्नी लीला के लहरों के साथ बह जाने का अंदाजा था लेकिन उन्होंने उम्मीद का दीया जलाए रखा. बता दें कि पति-पत्नी की इस अटूट प्रेम कथा पर अब वाकई बॉलीवुड के डायरेक्टर सिद्धार्थ रॉय कपूर एक फिल्म बनाने जा रहे हैं.

नजारा देख लगा मेरी पत्नी अब कभी नहीं मिलेगी !

विजेंद्र एक ट्रैवल एजेंसी में काम करते हैं, 2013 में उनकी पत्नी ने चारधाम यात्रा करने की इच्छा जाहिर की तो उन्होंने एक ट्रेवल एजेंसी के ट्यूर में अपना नाम दे दिया और केदारनाथ चले गए. वहां दोनों एक एक लॉज में रुके हुए थे. विजेंद्र बताते हैं कि एक दिन वह कुछ सामान लेने बाहर गए थे कि आसपास कोहराम मच गया, पानी का बहाव देख पता चला कि बाढ़ आ गई है.

सबकुछ शांत होने के बाद वह जब लॉज पहुंचे तो अपनी पत्नी को वहां नहीं पाया और चारों तरफ तबाही का मंजर देखा. लॉज का नजारा देखकर उनका दिल बैठ गया और वह अपनी पत्नी लीला के पानी के साथ बहने का अंदाजा लगाने लगे.

विजेन्द्र आगे कहते हैं कि मेरा मन लीला के साथ अनहोनी होना मान नहीं रहा था. मेरे आस-पास चारों तरफ लाशें बिखरी पड़ी थी. किसी का बेटा तो किसी का भाई पानी में बह चुका था, लेकिन विजेंद्र ने हिम्मत नहीं हारी और अपने पर्स में रखी पत्नी की तस्वीर लेकर पत्नी की तलाश में जुट गए.

सरकार ने किया लीला को मृत घोषित

विजेंद्र बताते हैं कि त्रासदी के करीब एक महीने बाद सरकारी विभाग से हमारे पास फोन आया जिसमें लीला के मृत होने की जानकारी हमें दी गई. सरकार की तरफ से मुआवजा लेने का कहा गया लेकिन मैंने मना कर दिया. विजेंद्र कहते हैं कि उनका मन अभी भी मानने को तैयार नहीं था कि लीला जिंदा नहीं है.

बच्चों ने मां को देखा तो रो पड़े

आखिरकार विजेंद्र लीला की तलाश में उत्तराखंड निकल पड़े और गांव-गांव की खाक छानने लगे. 19 महीने बीत जाने के बाद एक दिन 27 जनवरी 2015 को उत्तराखंड के गंगोली गांव में एक राहगीर ने विजेंद्र के हाथ में फोटो देखकर लीला के बारे में जानकारी होने की हामी भरी. राहगीर ने बताया कि यह महिला हमारे गांव में घूमती रहती है और चौराहे के पास एक दुकान के बाहर बैठी रहती है.

विजेंद्र ने गांव पहुंचकर देखा तो वह लीला ही निकली और उसके पास जाकर वह फूट-फूटकर रोने लगे. हालांकि लीला की मानसिक हालत ठीक नहीं होने से वह उस समय अपने पति को नहीं पहचान सकी. विजेंद्र ने लीला को वहां से उठाया और अपने घर ले आए. घर आने पर बिछड़े बच्चों ने जब अपनी मां को देखा तो सबकी आंखें भर आई. विजेंद्र कहते हैं कि इस कठिन दौर में भी प्रेम ने मुझे और लीला को बांध कर रखा.

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