उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में चुनावी साल है और चुनावी शोर में अब सबसे ज्यादा पूछ बहुत ही अहम माने जाने वाले बाह्मण (Brahmin) की होने लगी है. भले ही यूपी में बाह्मण सियासी तौर पर हाशिए पर हों, लेकिन हर सियासी दल ब्राह्मण को जरिए ही चुनावी वैतरणी को पार करना चाहता है. तभी तो यूपी में बीएसपी ने नारा दिया है कि ‘ब्राह्मण शंख बजाएगा और हाथी बढ़ता जाएगा’. आज यूपी में ब्राह्मणों की स्थिति भी हाथी की तरह हो गई है और किसी भी सियासी दल सत्ता में रहने के दौरान ब्राह्मण पांच साल तक उस बंधे हुए हाथी की रहते हैं, जो कुछ नहीं कर सकता है. जब चुनाव आते हैं तो ब्राह्मणों की पूजा जाती है और उसे माला पहनाई जाती है और उसे तिलक लगाकर पैर छूए जाते हैं और हर सियासी दल चाहे समाजवादी पार्टी हो या बीएसपी या फिर बीजेपी और या कांग्रेस, कहते हैं कि आपका आशीर्वाद चाहिए और सुदामा की तरह खाली हाथ रहने वाला ब्राह्मण फिर खुश होकर आशीर्वाद देकर पांच साल तक फिर खाली हाथ ही रहता है. ऐसा नहीं है कि ब्राह्मण नेता सियासी मलाई का स्वाद नहीं चखते हैं. वह सत्ता की मलाई का स्वाद चखते हैं और इसकी सियासी मलाई की जूठन भी उनके परिवार और करीबी लोगों के अलावा किसी अन्य को नसीब नहीं होती है. सच्चाई ये है कि यूपी नहीं कमोवेश देश में ब्राह्मण की यही स्थिति है.
हाल ही में उत्तर प्रदेश में बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में ब्राह्मणों का सम्मेलन हुआ और इस सम्मेलन को आयोजित कराने वाले थे, समाजवादी पार्टी के नेता और पार्टी में ब्राह्मण चेहरा माने जाने वाले रमेश दुबे उर्फ बाबा दुबे. जो दावा करते हैं कि वह ब्राह्मणों को संगठित करने के लिए कार्य कर रहे हैं. काशी में हुए ब्राह्मणों के सम्मेलन में लोकहित सप्तसमिति का गठन किया गया और जल्द ही दो लाख ब्राह्मणों का ब्रहमादेश समागम महासभा करने करने का संकल्प लिया गया. लेकिन चुनावी साल में ब्राह्मण सम्मेलन को लेकर भी सवाल उठ रहे है. दूबे दावा करते हैं कि वह पिछले कुछ सालों से ब्राह्मणों को लेकर कार्य कर रहे हैं और पिछले दो साल से उन्होंने ब्राह्मण समाज के उत्थान और सामाजिक और राजनैतिक तौर पर उसे मजबूत करने के लिए अपनी सक्रियता बढ़ा दी है. इस बात को नकारा नहीं जा सकता है कि समाजवादी पार्टी में ब्राह्मण नेताओं की वो पूछ नहीं जो यादव और मुस्लिमों की है. दुबे साफगोई से कहते हैं कि जो कार्य वह कर रहे हैं उसमें राजनीति भी है. क्योंकि राजनैतिक ताकत के बगैर कुछ हासिल नहीं किया जासकता है. जबकि अन्य सियासी दलों के नेता इस बात को स्वीकार नहीं करते हैं कि ब्राह्मणों को लेकर राजनीति की जा रही है. दुबे कहते हैं कि यूपी में ब्राह्मण वोट बैंक 18 से 20 फीसदी है. भले ही आंकड़े यूपी में 9 से 11 फीसदी बताते हों. लिहाजा आज के समय में ब्राह्मणों को एकजुटकर अपनी ताकत का अहसास करना चाहिए.
ब्राह्मणों को साधने को बीजेपी भी हुई एक्टिव
वहीं यूपी में बीजेपी भी ब्राह्मण वोट बैंक को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए एक्टिव हो गई है. बीजेपी ने पिछले दिनों राज्य के बीजेपी के बड़े ब्राह्मण नेताओं को बुलाया और राज्य में बीजेपी के पक्ष में माहौल बनाने को कहा. बीजेपी का दावा है कि ब्राह्मण उससे नाराज नहीं है. जबकि विपक्षी दल कहते हैं कि यूपी में पिछले पांच साल में बीजेपी ने ब्राहामणों के लिए कुछ नहीं किया. हालांकि विपक्ष के तर्कों में ज्यादा दम भी नहीं दिखता है. क्योंकि 2017 के विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा ब्राह्मण बीजेपी के टिकट पर जीत कर आए और बीजेपी ने ही सबसे ज्यादा ब्राह्मणों को टिकट दिए.
एसपी परशुराम जी के जरिए ब्राह्मणों को साधने में जुटी
राज्य में समाजवादी पार्टी में कई बाह्मण नेता शामिल हो चुके हैं. पिछले दिनों ही गणेश शंकर पांडे और विनय शंकर तिवारी समेत कई नेता शामिल हुए हैं. जबकि पार्टी में ही कई बड़े ब्राह्मण नेता है. एसपी के ब्राह्मणों को जोड़ने ने रायबरेली से पार्टी के एकमात्र विधायक मनोज पांडे काफी दिनों से कार्यक्रमों का आयोजन कर रहे हैं. वहीं पार्टी यूपी के सभी शहरों में भगवान परशुराम की मूर्ति को स्थापित कर रही है. ताकि 2012 की तरह ब्राह्मणों के आशीर्वाद के जरिए फिर से सत्ता पर काबिज हुआ जा सके.
ब्राह्मण सम्मेलनों से बीएसपी को उम्मीद
वहीं अगर बीएसपी की बात करें तो बीएसपी चीफ मायावती ने पार्टी के ब्राह्मण नेता माने जाने वाले सतीश चंद्र मिश्रा को आगे किया. अगर बीएसपी की पिछली सरकार की बात करें तो सतीश चंद्र मिश्रा पार्टी में मजबूत माने जाते थे और समय के साथ वह पार्टी में और ज्यादा मजबूत होते गए. हालांकि परिवारवाद को लेकर मिश्रा पर आरोप लगते आए हैं. चुनाव को देखते हुए सतीश चंद्र मिश्रा राज्य में ब्राह्मण सम्मेलन करा रहे हैं और ब्राह्मणों को झुकाव बीएसपी की तरफ करने का दावा कर रहे हैं. बीएसपी को इस बार अपने दलित और ब्राह्मण समीकरण पर उम्मीद है.
प्रियंका कर रही हैं मंदिर दर्शन
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी भी मंदिरों के दर्शन कर ब्राह्मणों को साधने की कोशिश कर रही है. ये तो समय ही बताएगा कि प्रियंका गांधी के प्रयास कितने सफल होंगे. लेकिन पार्टी दावा कर रही है कि ब्राह्मण एक बार फिर कांग्रेस में आएगा क्योंकि ये कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक हैं और यूपी में कांग्रेस ने ही छह सीएम ब्राह्मण समाज से दिए हैं. हालांकि सच्चाई ये है कि पिछले दिनों कांग्रेस को छोड़ने वाले ज्यादातर नेता ब्राह्मण समाज के ही हैं.
इन आंकड़ों से समझे यूपी में ब्राह्मण वोटबैंक की ताकत
यूपी में 2017 में जीते से 58 ब्राह्मण विधायक
अगर आंकड़ों की बात करें तो 2017 के विधानसभा में यूपी में कुल 58 ब्राह्मण विधायक जीते और जिनमें 46 विधायक बीजेपी के टिकट पर जीते थे. लिहाजा राज्य में बीजेपी की सरकार बनी. चुनाव में बीजेपी ने 312 सीटें जीती थी. वहीं इस चुनाव में एसपी के तीन, बीएसपी के तीन, कांग्रेस और अपना दल का एक-एक ब्राह्मण विधायक चुनाव कर विधानसभा पहुंचे थे. इसमें से दो निर्दलीय विधायक भी 17 वीं विधानसभा में जीत कर विधानसभा तक पहुंच थे.
2012 में एसपी के टिकट पर जीते थे 21 ब्राह्मण विधायक
वहीं जब 2012 विधानसभा चुनाव के बाद एसपी ने अपनी सरकार बनाई और वह 224 सीटें जीतकर आयी तो तब उसके 21 ब्राह्मण विधायक जीत कर आए थे. अगर देखें तो 2017 के विधानसभा चुनाव में ब्राह्मण मतदाताओं को झुकाव बीजेपी की तरफ था और ये 2019 के लोकसभा चुनाव में भी देखा गया.
बीएसपी ने 2017 में 66 ब्राह्मणों को दिया था टिकट
अगर बात 2017 के विधानसभा चुनाव की करें तो बीएसपी ने 403 सीटों पर महज 66 ब्राह्मणों को टिकट दिया था. दलितों, मुस्लिमों तथा अन्य पिछड़े वर्गों के 290 प्रत्याशियों को टिकट दिया था. हालांकि 2022 के चुनाव के लिए माना जा रहा है कि बीएसपी ज्यादा ब्राह्मणों को टिकट देगी और उसे दलित ब्राह्मण समीकरण पर पूरा भरोसा है. जबकि 2007 में बीएसपी ने राज्य में सत्ता बनाई और इसमें बड़ी भूमिका भी ब्राह्मणों की रही है है. क्योंकि बीएसपी ने 86 ब्राह्मणों को टिकट दिया था, जिसमें 57 ब्राह्मण चुनाव जीते थे. अगर सरकार बनाने के लिए जरूरी आंकड़ों की बात की जाए, तो 202 विधायक की तुलना में देखा जाए तो 35 फीसदी से ज्यादा ब्राह्मण विधायकों के बलबूते बीएसपी की राज्य में सरकार बनी. इस चुनाव में बीएसपी के कुल 206 विधायक जीते थे.
यूपी में पिछले तीन दशक से नहीं है ब्राह्मण सीएम
इस बात को भी ध्यान देने की जरूर है कि यूपी में पिछले तीन दशक में एक भी ब्राह्मण सीएम नहीं बना. जबकि राज्य में सभी सियासी दलों में बड़े स्तर पर ब्राह्मण विधायक बने. अगर समाजवादी पार्टी की कहें तो महज 9 फीसदी यादव होने के बावजूद यूपी में मुलायम सिंह और अखिलेश यादव सीएम बने. असल में यूपी में ब्राह्मणों के वोट तो हर सियासी दल पाना चाहता है और सत्ता पर काबिज भी होना चाहता है. लेकिन सीएम की कुर्सी पर किसी ब्राह्मण को नियुक्त नहीं करना चाहता है. इसका सबसे बड़ा कारण यूपी में ब्राह्मणों में एकता न होना ही है. जिसको लेकर बाबा दुबे भी कहते हैं कि सियासी ताकत के लिए संगठित होना पड़ेगा और अकेले पड़ गए खो जाएंगे.
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