कान की सफाई के दौरान निकलने वाले मोम जैसे पदार्थ को ईयरवैक्स कहते हैं. कई लोग गंदगी समझकर बार-बार इसे कान से निकालने की कोशिश करते हैं. यह आदत इंसान के लिए परेशानी का सबब बन सकती है. जानिए, ईयरवैक्स होता क्या है, यह कितना फायदेमंद और कितना नुकसानदेह है…
यह बनता कैसे है, पहले इसे समझें
कान के अंदरूनी हिस्से ईयर कैनाल में एक खास तरह की ग्लैंड होती है जो इस मोम जैसे पदार्थ ‘ईयरवैक्स’ का निर्माण करती है. वैज्ञानिक नजरिए से देखें तो यह इंसान के लिए फायदेमंद होता है. यह कान को सुरक्षित रखने का काम करता है. ईयरवैक्स कानों के अंदर पहुंचने वाली धूल, मिट्टी और जीवाणुओं को आगे बढ़ने से रोकता है. इसके अलाव यह शरीर में पानी जाने से रोकता है और कान के अंदर मौजूद सॉफ्ट स्किन को डैमेज होने से भी बचाता है.
इसे कान से निकालना कितना सही?
जब भी हम कुछ खाते हैं जबड़ों में मूवमेंट होता है और इसका असर कानों तक होता है. इस दौरान कई बार धीरे-धीरे सूख चुका कानों का मैल खिसकते हुए बाहर निकलकर गिर जाता है.
मेंटलफ्लॉस की रिपोर्ट कहती है, ईयरवैक्स समय के साथ अपने आप ही कान के बाहरी हिस्से से धीरे-धीरे निकल जाता है. इसलिए बार-बार इसे निकालने की जरूरत नहीं होती. लेकिन कई बार यह कान में अधिक मात्रा में इकट्ठा हो जाता है और जमने लगता है. धीरे-धीरे ये सख्त हो जाता है. नतीजा यह ब्लॉकेज और सुनने की क्षमता को घटा सकता है.
कान में दर्द होना या कुछ भरा हुआ सा महसूस होना इसके लक्षण हैं. एक्सपर्ट कहते हैं, कुछ मामलों में लम्बे समय तक हेडफोन लगाने की आदत से भी कान में ईयरवैक्स जमा हो सकता है.
अब बात इसकी सफाई की
अक्सर लोग कान की सफाई के लिए तीली, उंगली या फिर कॉटन बड्स का इस्तेमाल कहते हैं. यह तीनों ही चीजें कान को सीधेतौर पर नुकसान पहुंचा सकती हैं. इस पर ज्यादातर लोगों का सवाल होगा कि कॉटन बड्स का इस्तेमाल तो सफाई के लिए ही किया जाता है, फिर नुकसान कैसा? एक्सपर्ट कहते हैं, ऐसा करने पर कई बार ईयरबड्स कान की गहराई तक पहुंच जाती है. इससे कई तरह के नुकसान हो सकते हैं. जैसे- कान के मैल पर जमा बैक्टीरिया अंदर तक पहुंच सकता है या कान में दर्द शुरू हो सकता है.
अगर आपको लगता है कि कान में मैल जमा है तो सीधे ईएनटी विशेषज्ञ से सम्पर्क करें. बिना डॉक्टरी सलाह वाले घरेलू नुस्खे सुनने की क्षमता पर असर डाल सकते हैं.
यह तरीका अपना सकते हैं
कान की सफाई के लिए ईयरड्रॉप्स सबसे बेहतर माने जाते हैं. इनमें मौजद दवा के मैल को इतना नम कर देती है कि यह धीरे-धीरे खुद ही बाहर निकल जाते हैं. इन ड्रॉप्स में हाइड्रोजन परऑक्साइड, सोडियम बाइकार्बोनेट या सोडियम क्लोराइड होता है. अगर इंसान को किसी तरह के केमिकल से एलर्जी हो तो इसे इस्तेमाल करने से बचें. इसके अलावा कान में बादाम या जैतून का तेल भी डाल सकते हैं. जब कान में तेल डालें तो कुछ देर उसी कवरट में लेंटें ताकि इसका असर कान के मैल पर हो सके.
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