कोरबा ,09मार्च 2025 (वेदांत समाचार): छत्तीसगढ़ के कोरबा में एक समय तांगा यात्रा का प्रमुख साधन हुआ करता था। आज यह विरासत लगभग खत्म हो चुकी है। पुराना बस स्टैंड से कोरबा स्टेशन तक चलने वाले तांगों की संख्या अब बहुत कम हो गई है।
92 वर्षीय ओंकार सिंह ठाकुर बताते हैं कि कोरबा स्टेशन से बालको तक केवल दो तांगे चलते थे। स्टेशन से यात्रियों को लाने-ले जाने में रिक्शा के साथ तांगा ही मुख्य साधन था।
तांगे से जुड़े कई व्यवसाय भी थे। घोड़े के नाल, चाबुक और पहिये बनाने का काम इससे जुड़ा था। यह कई लोगों की आजीविका का साधन था। मोटर-कारों की तुलना में तांगे पर्यावरण के अनुकूल थे। राजा-महाराजाओं और प्रतिष्ठित लोगों की सवारी के लिए बग्घियों को विशेष रूप से सजाया जाता था।

तांगों के लिए होता था विशेष स्टैंड
छत्तीसगढ़ के रायपुर, दुर्ग-भिलाई और बिलासपुर में रेलवे और बस स्टैंड के बाहर तांगों के लिए विशेष स्टैंड होते थे। जांजगीर-चांपा जिले के शिवरीनारायण में 26 सालों से तांगा चला रहे अयोध्या प्रसाद कहते हैं कि अब मुश्किल से कमाई होती है। घोड़े का खर्च अलग से है।
विलुप्त हो रहा पारंपरिक वाहन
आधुनिक समय में लोग तेज गति से यात्रा करना पसंद करते हैं। तांगे की मधुर घंटियों की आवाज अब मोटर-कार के तेज हॉर्न में दब गई है। धीमी गति से चलने वाला यह पारंपरिक वाहन अब इतिहास बनता जा रहा है।