कोरबा : सरकारी जमीन को कूटरचना कर करा दी रजिस्ट्री, अब निर्माण में लगा रोक

कोरबा। जिले में भूमाफियाओं द्वारा शासकीय भूमि की जमकर अफरा-तफरी की जा रही है, मगर इस पर विराम लगाने राजस्व विभाग पूरी तरह से नाकाम नजर आ रहा है। नतीजा भूमाफियाओं द्वारा राजस्व विभाग के नाक के नीचे खाली पड़े शासकीय भूमि की कूटरचना कर जमकर खरीदी बिक्री कर रहे है और धड़ल्ले से अवैध निर्माण भी कराया जा रहे हैं।
ताजा मामला जिले के ग्राम रजगामार, पटवारी हल्का नंबर 39 का है। यहां तत्कालीन पटवारी दामोदर प्रसाद तिवारी एवं भू-माफिया सत्यनारायण मिश्रा द्वारा आपसी सांठगांठ कर राजस्व नक्शे में छेड़खानी करते हुए कूटरचना कर शासकीय भूमि खसरा नंबर 123/1क में से 3-3 डिसमिल के 4 अवैध प्लाट बनाकर बिक्री कर लिए जिसमें खरीददारों ने भी इस षड्यंत्र में अपना अहम भूमिका निभाया है।


शासकीय भूमि की बिक्री होने की खबर मिलने पर ग्रामीणों के द्वारा इसकी शिकायत नायब तहसीलदार से लेकर कलेक्टर तक की गई। बावजूद भू माफिया और पटवारी के खिलाफ कोई भी कार्रवाई नहीं की गई, वहीं शिकायत पर खानापूर्ति करते हुए तत्कालीन नायब तहसीलदार सोनू अग्रवाल द्वारा हो रहे निर्माण कार्य पर कार्य रोको आदेश जारी कर दिया गया।
कार्य रोको आदेश जारी होने के बाद ख़रीरदारों के द्वारा कुछ समय के लिए कार्य को बंद कर दिया गया। लेकिन राजस्व विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों के द्वारा इन पर कड़ी कार्रवाई नहीं करने के कारण वर्तमान में फिर से अधूरे बंद पड़े कार्य को पुनः शुरू करा कर पूरी तरह से मकान एवं दुकान का निर्माण करा लिया गया और निर्माण करने ईट गिराया गया है।
खरीददारों द्वारा कार्य रोको आदेश जारी होने के बाद भी जब कार्य करना शुरू किया गया तब इसकी शिकायत पटवारी, नायब तहसीलदार से लेकर कलेक्टर एवं पुलिस अधीक्षक तक की गई मगर कार्य पर रोक नहीं लगाया गया। पटवारी की मिलीभगत के कारण ही इस निर्माण को किया गया है ऐसा ग्रामीणों का आरोप है | वहीं इस मामले में तत्कालीन पटवारी आरती प्रसाद ने बताया मुझे तत्कालीन नायब तहसीलदार कोरबा द्वारा मौखिक रूप से काम को बंद कराने आदेशित किया गया था जिस पर मेरे द्वारा मौके पर हो रहे निर्माण कार्य को बंद करने कहा गया था।


अब सवाल यह है कि नायब तहसीलदार के आदेश पर पटवारी द्वारा कार्य तो बंद कराया गया मगर कार्य बंद नहीं हुआ। क्या पटवारी के बातों का असर निर्माण कर रहे खरीददारों पर नहीं पड़ा या फिर पटवारी के ही सहयोग से यह निर्माण हुआ या फिर खरीददारों को विभाग की कार्यवाही का कोई डर नहीं है, यह अपने आप में एक सवाल है। आखिर इस तरह पटवारी की कार्यशैली पर ग्रामीणों के सवाल क्यों सामने आ रहे हैं। खुलेआम निर्माण होने एवं ग्रामीणों के सूचना देने के बाद भी पटवारी की नजर हो रहे निर्माण कार्य पर नहीं पढ़ना इस तरह के सवालों को जन्म देता लाजमी भी है जबकि ग्रामीणों के द्वारा कई बार पटवारी को मौखिक रूप से इस बात की जानकारी भी दी गई।
तत्कालीन पटवारी एवं भू माफिया द्वारा किये गए कूटरचना को दबाने के लिए राजस्व विभाग के तत्कालीन वरीय अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध रही है। तत्कालीन एसडीएम सुनील कुमार नायक द्वारा स्थल जांच करने मौके पर जरूर गए मगर उनके द्वारा ना ही उस भूमि का सीमांकन कराया गया और ना ही किसी प्रकार की जांच पड़ताल की गई और ग्रामीणों को टीम बनाकर सीमांकन करने की बात कहते हुए टाल दिया गया।
ग्रामीणों का कहना है कि लगातार शिकायत करने के बाद भी राजस्व विभाग के वरीय अधिकारी इस मामले को लेकर सजग दिखाई नहीं दे रहे हैं जबकि शिकायत की गई भूमि की भौतिक सीमांकन होने पर ही सच्चाई अपने आप सामने आ जाएगी और मामले से पर्दाफाश भी हो जाएगा।अब देखना होगा कि जिला प्रशासन एवं राजस्व विभाग इस मामले पर संज्ञान लेती है या नही।

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