परीक्षा पास करने के बावजूद नहीं लग रही सरकारी नौकरी, जानते हैं क्यों? ये है इसके पीछे की असली वजह…

मध्य प्रदेश के सागर जिले में खुरई गांव है. जहां के रवि कुमार निवासी हैं. होनहार रवि दो बार सरकारी नौकरी की परीक्षा पास कर चुके हैं. लेकिन ज्वाइनिंग कहीं नहीं मिली. अब रवि जैसे लोगों को आप नौकरी वाला कहेंगे या बेरोजगार? बात बेरोजगारी की चली है तो कुछ बातें साफ करने के लिए कुछ जरूरी आंकड़ों को जान लेना चाहिए, कि बेरोजगारी का हाल आखिर है क्या?

सरकार के हाल ही में लॉन्च किए ई-श्रम पोर्टल पर अब तक 10 करोड़ से ज्यादा बेरोजगार अपना रजिस्ट्रेशन करा चुके हैं, यानी इन्हें काम चाहिए. वहीं, लाखों ऐसे लोग होंगे जो इस पंजीकरण से भी बाहर हैं. जबकि, जनवरी से मार्च के दौरान देश के 11 राज्यों में शहरी बेरोजगारी दर डबल डिजिट यानी दहाई में पहुंच गई है. एनएसओ का सर्वे बताता है कि पूरे देश में औसत शहरी बेरोजगारी की दर 9.3 फीसदी है.

21 राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के पास मनरेगा का पैसा खत्म

अबतक हमने आपको दो जगहों की बात बताई, लेकिन तीसरा और सबसे अहम आंकड़ा गांव से है. देश के 35 में से 21 राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के पास मनरेगा का पैसा खत्म हो चुका है. यानी अब गांव में भी सरकार के पास काम देने का पैसा नहीं है. लेकिन क्या आप जानते हैं, एक तरफ देश में करोड़ों बेरोजगार हैं,तो दूसरी तरफ लाखों पद खाली पड़े हैं.

एक मोटे अनुमान के मुताबिक देशभर में सरकारी नौकरी के करीब 60 लाख पद खाली हैं. इनमें 30 लाख नौकरियां केंद्र सरकार की और इतने ही पद अलग अलग राज्यों में खाली पड़े हैं. आप अपनी सरकारों से यह पूछ सकते हैं कि हर चुनाव में रोजगार के गुलाबी वादों के बाद भी नौकरी क्यों नहीं मिल रही है?

क्यों नहीं मिलती सरकारी नौकरियां?

चुनावी मौसम में नेताओं को वादे याद दिलाने के लिए युवा जहां तहां धरने प्रदर्शन कर रहे हैं. कहीं मुद्दा लंबित परीक्षा नतीजों का है तो कहीं खाली पड़े पदों को भरने का. कुल मांग एक अदद रोजगार की है. लेकिन आखिर रोजगार क्यों नहीं मिलता, इसका दर्द सरकारों के बजट में छुपा है.

वित्त वर्ष 2018-19 के आंकड़ों के मुताबिक सरकारी कर्मचारियों के वेतन पर कुल खर्च करीब 3.23 लाख करोड़ रुपए का है. जो कुल बजट खर्च के 13 फीसदी के बराबर है. पेशन पर कुल खर्च 2.77 लाख करोड़ रुपए का है. जो बजट के 11 फीसदी के बराबर है. पेशन का बिल पहले ही वेतन बिल के 86 फीसदी के बराबर पहुंच चुका है और जल्द ही इसे पार करने की आशंका है.

ये है असली वजह?

सरकारें भले ही आपको पेपर लीक या अदालत पचडे बताए, लेकिन हकीकत यह है कि बजट पर बढ़ता बोझ सरकारों को खाली पड़े पदों को भरने से रोकता है. वहीं, अगर आप राज्यों के बजट खंगालेंगे तो पता चलता है कि उत्तर प्रदेश में करीब एक चौथाई बजट सैलरी और पेंशन की मद में खर्च हो रहा है. राजस्थान में हाल और बुरा है. यहां 34 फीसदी बजट करीब सरकारी कर्मचारियों के वेतन और पेंशन में जा रहा है. जबकि, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, बिहार या तमिलनाडु आप चाहे भारत के किसी कोने में रहते हों सरकारों के बजट का हाल कमोवेश एक सा है.

राज्य सरकारों के भी वही हाल!

हैरत इस बात पर होनी चाहिए कि इस हाल के बाद भी सरकारें रोजगार देने के वादों के गुब्बारे उड़ाती हैं इनमें युवाओं से दो करोड़ सालाना रोजगार देने का वादा भी शामिल है. इसलिए सरकारी नौकरी का फॉर्म भरने से पहले अपने राज्य का बजट जरूर पढ़ लीजिए. पता लगा लीजिये की आखिर बरसों से खाली पड़े पद अब तक खाली क्यों हैं?

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