मेडिकल कॉलेज सिम्स की ऐसी हो गई हालत कि दीवारों से प्लास्टर तक गिरने लगा, घबराकर लौट रहे मरीज

बिलासपुर । संभाग के यह बदहाल तस्वीर सबसे बड़े मेडिकल कॉलेज सिम्स की है। बिल्डिंग की मरम्मत, टॉयलेट रिपेयरिंग, रंग-रोगन सहित मेंटेनेंस पर हर साल लाखों खर्च हो रहे, लेकिन अस्पताल की तस्वीर और खराब हो गई। स्थिति सुधरने की बजाय बिगड़ती गई। अब तो हालत ऐसी हो गई है कि दीवारों से टुकड़े टूटकर गिर रहे हैं, यहां पानी का टपकना तो आम बात है।

किसी भी वक्त किसी के साथ बड़ा हादसा हो सकता है। पाइप लाइन फूट रही है। पानी बह रहा है लेकिन देखने वाला कोई नहीं है। वार्डों में सीपेज की समस्या दूर नहीं हुई। टॉयलेट और खिड़कियों में दरवाजे नहीं लग पाए। शासन ने सोचा सिम्स के अफसर इलाज करने में बिजी रहते हैं इसलिए जून 2020 को पीडब्ल्यूडी को बिल्डिंग हैंडओवर कर दी, ताकि अव्यवस्थाएं सुधरें लेकिन अब तो स्थिति और खराब हो गई। 80 लाख रुपए देने के बाद महीनों बीत गए लेकिन पीडब्ल्यूडी ने काम शुरू तक नहीं किया। सिम्स प्रबंधन ने कई बार चिट्ठी लिखी लेकिन पीडब्ल्यूडी के अफसरों पर कोई असर नहीं हुआ।

35 हजार मरीज हर माह आ रहे


हर महीने आने वाले 35 हजार से अधिक मरीज सुविधाओं को मोहताज हैं। उन्हें नाक बंदकर बिना दरवाजे वाले टॉयलेट में जाना पड़ रहा। चारों तरफ फैली बदबू से वे परेशान हैं लेकिन सुनने वाला कोई नहीं है। 200 से ज्यादा अव्यवस्थाओं से घबराकर बिना इलाज लौट रहे। इसके बाद भी सुधार नहीं हो पा रहा।

रिकॉर्ड देखने के बाद ही कुछ बता पाऊंगा


सीवरेज का काम अब तक क्यों शुरू नहीं हुआ? यह पूछने पर पीडब्ल्यूडी के एसडीओ टीएन संतोष ने कहा कि टेंडर लग गया है। पहले नगर निगम को बोला गया था बाद में हमको बोला इसलिए देरी हुई। 40 लाख तीन माह पहले सीपेज और वार्डों के उन्नयन के लिए मिले? वो काम भी नहीं हो पाया क्यों?20 दिन के भीतर सुधार दिखने लगेगा: सिम्स अधीक्षक डॉ. नीरज शेंडे का कहना है कि पीडब्ल्यूडी से उनकी बात हुई है। 15-20 दिन के भीतर सुधार दिखने लगेगा।