जानिए सियाचिन की भयंकर ठंड में कैसे रहते हैं भारतीय सेना के जवान, जहां पसीना भी जम जाता है…

भारतीय सेना के जवान काफी दुर्गम स्थानों पर अपनी जान जोखिम में रखकर सेना पर तैनात रहते हैं. ये जवान सियाचिन, जहां तापमान माइनस में रहता है, वहां मुश्किल वक्त में रहते हैं और देश की सेवा करते हैं. ऐसे में आज हम आपको बताते हैं कि जवान वहां कैसे रहते हैं और उस ठंड में किन मुश्किलों का सामना करना होता है.

सियाचीन जैसे इलाके में 20 हजार फुट की ऊंचाई पर दिन-रात हमारे जवान डटे रहते हैं. पिछले कई वर्षों में न जाने कितने जवानों ने मौसम के चलते अपने प्राणों की आहुति दी है. बेस कैंप से जवानों को अति दुर्गम चढ़ाई पर फासला तय करना पड़ता है. इसके लिए जवान एकसाथ चलते हैं और सब जवानों के पैर एक रस्सी से बंधे होते हैं ताकि कोई फिसल कर गहरी खाई में न गिर जाए.

सियाचीन जैसे इलाके में 20 हजार फुट की ऊंचाई पर दिन-रात हमारे जवान डटे रहते हैं. पिछले कई वर्षों में न जाने कितने जवानों ने मौसम के चलते अपने प्राणों की आहुति दी है. बेस कैंप से जवानों को अति दुर्गम चढ़ाई पर फासला तय करना पड़ता है. इसके लिए जवान एकसाथ चलते हैं और सब जवानों के पैर एक रस्सी से बंधे होते हैं ताकि कोई फिसल कर गहरी खाई में न गिर जाए.

पैट्रोलिंग टीम को तड़के बेस कैंप से निकलना पड़ता है ताकि 8-9 बजे तक चोटी पर पहुंचा जा सके. इससे बर्फ पिघलने के खतरे से बचने में आसानी होती है. ऊंचे दुर्गम इलाके में चढ़ाई करते जवानों के साथ कई किलो वजनी बैग होता है. शरीर पर कई परतों वाला कपड़ा होता है.

पैट्रोलिंग टीम को तड़के बेस कैंप से निकलना पड़ता है ताकि 8-9 बजे तक चोटी पर पहुंचा जा सके. इससे बर्फ पिघलने के खतरे से बचने में आसानी होती है. ऊंचे दुर्गम इलाके में चढ़ाई करते जवानों के साथ कई किलो वजनी बैग होता है. शरीर पर कई परतों वाला कपड़ा होता है.

चोटी पर पहुंचते-पहुंचते जवान पसीने से तरबतर होते हैं और स्थिति ये हो जाती है कि माइनस में पहुंची ठंड के कारण शरीर पर पसीने भी जम जाते हैं. शून्य से 60 डिग्री तक नीचे तापमान में खाना-पीना भी मुश्किल होता है. जवानों को कैन या टीन के डिब्बाबंद पात्र में पैक्ड खाना दिया जाता है.

चोटी पर पहुंचते-पहुंचते जवान पसीने से तरबतर होते हैं और स्थिति ये हो जाती है कि माइनस में पहुंची ठंड के कारण शरीर पर पसीने भी जम जाते हैं. शून्य से 60 डिग्री तक नीचे तापमान में खाना-पीना भी मुश्किल होता है. जवानों को कैन या टीन के डिब्बाबंद पात्र में पैक्ड खाना दिया जाता है.

इसमें ज्यादातर लिक्विड होता है जिसे खाने या पीने से पहले आग पर गर्म कर पिघलाना पड़ता है. इन मुश्किलों से निपटने के लिए जवानों को सूखे मेवे दिए जाते हैं जिन्हें खाने के लिए पिघलाने की जरूरत नहीं होती. पीने के पानी की दिक्कत होती है और बर्फ को पिघला कर ही पीना होता है.

इसमें ज्यादातर लिक्विड होता है जिसे खाने या पीने से पहले आग पर गर्म कर पिघलाना पड़ता है. इन मुश्किलों से निपटने के लिए जवानों को सूखे मेवे दिए जाते हैं जिन्हें खाने के लिए पिघलाने की जरूरत नहीं होती. पीने के पानी की दिक्कत होती है और बर्फ को पिघला कर ही पीना होता है.

यहां तक कि टॉयलेट के लिए इस्तेमाल होने वाले पानी को हमेशा स्टोव पर रखा जाता है ताकि वह पिघले नहीं. कड़ाके की ठंड और ऑक्सीजन की कमी का बड़ा असर नींद पर देखा जाता है. जवान ठीक से नींद पूरी नहीं कर पाते जिससे कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है. इसीलिए सियाचीन के मोर्चे पर डटे जवानों को एक साथ ज्यादा दिन तक नहीं रखा जाता. मेटल के संपर्क में आते ही कोई भी खुला अंग जम जाता है जिसे सही कर पाना काफी मुश्किल होता है.

यहां तक कि टॉयलेट के लिए इस्तेमाल होने वाले पानी को हमेशा स्टोव पर रखा जाता है ताकि वह पिघले नहीं. कड़ाके की ठंड और ऑक्सीजन की कमी का बड़ा असर नींद पर देखा जाता है. जवान ठीक से नींद पूरी नहीं कर पाते जिससे कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है. इसीलिए सियाचीन के मोर्चे पर डटे जवानों को एक साथ ज्यादा दिन तक नहीं रखा जाता. मेटल के संपर्क में आते ही कोई भी खुला अंग जम जाता है जिसे सही कर पाना काफी मुश्किल होता है.