हसदेव अरण्य में कोयले की खदान खोली तो बढ़ेगा हाथी-मानव द्वंद्व, भारतीय वन्यजीव संस्थान ने सौंपी रिपोर्ट

रायपुर। 22 नवम्बर (वेदांत समाचार)। । प्रदेश के हसदेव अरण्य मामले में नया मोड़ आ गया है। भारतीय वन्यजीव संस्थान (वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट आफ इंडिया) की रिपोर्ट में पर्दाफाश हुआ है कि यदि हसदेव अरण्य क्षेत्र में खदान खोली गई तो इसका परिणाम बहुत भयानक होगा। खदान से हसदेव अरण्य कोल फील्ड क्षेत्र की जैव विविधता का और वहां के जीवों पर पड़ने वाले असर का निर्धारण करने के उपरांत भारत सरकार की एक सर्वोच्च संस्था `भारतीय वन्यजीव संस्थान` ( वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट आफ इंडिया) ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है।

मिली जानकारी के मुताबिक हसदेव अरण्य कोल्ड फील्ड, छत्तीसगढ़ के तीन जिलों सरगुजा, सूरजपुर और कोरबा में फैला बहुमूल्य जैव विविधता वाला वन क्षेत्र है, जिसमें परसा, परसा ईस्ट केते बासन, तारा सेंट्रल और केन्ते एक्सटेंशन कोल ब्लाक आते हैं। वर्तमान में सिर्फ परसा ईस्ट केते बासन में माइनिंग चालू है। 277 पेज की रिपोर्ट में भारतीय वन्यजीव संस्थान ने सभी महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए लिखा है कि देश के एक प्रतिशत हाथी छत्तीसगढ़ में हैं, जबकि हाथी-मानव द्वंद्व में 15 प्रतिशत जनहानि छत्तीसगढ़ में होती है।

रिपोर्ट में उल्लेखित किया गया है कि किसी एक स्थान पर कोल माइनिंग चालू की जाती है तो उससे हाथी वहां से हटने को मजबूर हो जाते हैं और दूसरे स्थान पर पहुंचने लगते हैं, जिससे नए स्थान पर हाथी-मानव द्वंद बढ़ने लगता है। ऐसे में हाथियों के अखंड आवास, हसदेव अरण्य कोल्ड फील्ड क्षेत्र में नई माइन खोलने से दूसरे क्षेत्रों में मानव-हाथी द्वंद इतना बढ़ेगा कि राज्य को संभालना मुश्किल हो जाएगा।

वन पर आश्रित हैं आदिवासी

रिपोर्ट में बताया गया है कि हसदेव अरण्य कोल फील्ड और उसके आसपास के क्षेत्र में प्रधान रूप से आदिवासी रहते हैं। जो कि वनों पर बहुत ज्यादा आश्रित है। नान टिंबर फारेस्ट प्रोड्यूस से इन्हें 46 प्रतिशत मासिक आय होती है। इसमे जलाऊ लकड़ी, पशुओं का चारा, दवाई वाली वनस्पति, पानी शामिल नहीं है। अगर इनको शामिल कर लिया जाए कम से कम से कम 60 से 70 प्रतिशत इनकी आय वनों से होती है। स्थानीय समुदाय माइनिंग के पक्ष में नहीं है।

कई अन्य वन्य प्राणी हैं इस अरण्य में

हसदेव अरण्य में भारतीय वनजीव संस्थान ने यहां कई वन्य प्राणियों की कैमरे में उपस्थिति पाई, जिनमें भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की अधिसूची एक के हाथी, भालू, भेडिया, बिज्जू, तेंदुआ, चोसिंगा, रस्टी स्पाटेड बिल्ली, विशाल गिलहरी, पैंगोलिन, अधिसूची दो के सियार, जंगली बिल्ली, लोमड़ी, लाल मुंह के बंदर, लंगूर, पाम सीवेट, स्माल सीवेट, रूडी नेवला, कामन नेवला, अधिसूची तीन के लकड़बग्गा, स्पाटेड डिअर, बार्किंग डिअर, जंगली सूअर, अधिसूची तीन के खरगोश, साही शामिल हैं। इसके अलावा बताया गया है कि इस क्षेत्र में 92 प्रकार के पक्षी भी रहते हैं, क्षेत्र की वनस्पति पर भी प्रकाश डाला गया है।

भारतीय वनजीव संस्थान ने यहां कई वन्य प्राणियों की कैमरे में उपस्थिति पाई, जिनमें भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की अधिसूची एक के हाथी, भालू, भेडिया, बिज्जू, तेंदुआ, चोसिंगा, रस्टी स्पाटेड बिल्ली, विशाल गिलहरी, पैंगोलिन, अधिसूची दो के सियार, जंगली बिल्ली, लोमड़ी, लाल मुंह के बंदर, लंगूर, पाम सीवेट, स्माल सीवेट, रूडी नेवला, कामन नेवला, अधिसूची तीन के लकड़बग्गा, स्पाटेड डिअर, बार्किंग डिअर, जंगली सूअर, अधिसूची तीन के खरगोश, साही शामिल हैं। इसके अलावा बताया गया है कि इस क्षेत्र में 92 प्रकार के पक्षी भी रहते हैं, क्षेत्र की वनस्पति पर भी प्रकाश डाला गया है।

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