क्या जम्मू और कश्मीर में कांग्रेस पार्टी का विद्रोह गांधी परिवार को महंगा पड़ेगा?

कल जम्मू और कश्मीर (Jammu and Kashmir) से एक बड़ी खबर आई कि कांग्रेस पार्टी (Congress Party) के कई बड़े नेताओं ने पार्टी के विभिन्न पदों से सामूहिक रूप से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने अपना त्यागपत्र कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भेजा, जिसकी कॉपी राहुल गांधी और पार्टी के जम्मू और कश्मीर प्रभारी रजनी पाटिल को भी भेजा. इस्तीफा देने वालों में चार पूर्व मंत्री हैं और तीन विधायक भी शामिल हैं. इन नेताओं के इस्तीफा का कारण बताया है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गुलाम अहमद मीर, जो पिछले सात साल से अध्यक्ष हैं, ने अपने कार्यकाल में चमचागिरी करने वाले नेताओं को ही मौका दिया है, उन्हें पार्टी में कुछ कहने का मौका नहीं मिलता है और पार्टी में उनकी अनदेखी हो रही है.

इन विद्रोही नेताओं का यह भी मानना है कि मीर की अध्यक्षता में पार्टी का जम्मू और कश्मीर में कोई भविष्य नहीं है और जम्मू और कश्मीर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की हार निश्चित है. जम्मू और कश्मीर में इन दिनों परिसीमन का कार्य चल रहा है जिसके संपन्न होने के बाद अगले वर्ष कभी भी वहां चुनाव हो सकता है. इस बात की सम्भावना भी है कि जम्मू और कश्मीर को एक बार फिर से पूर्ण राज्य का दर्ज़ा वापस मिल सकता है.

बगावत मीर के खिलाफ नहीं राहुल गांधी के खिलाफ है

इस गलतफहमी में ना रहें कि यह बगावत मीर के खिलाफ है. इस्तीफा देने वाले पार्टी के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद के करीबी माने जाते हैं, और मीर को राहुल गांधी के नजदीकी के रूप में देखा जाता है. खबर यह भी है कि कुछ दिन पूर्व आजाद जम्मू और कश्मीर के दौरे पर थे, जहां इस कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार की गई. यानि यह इस्तीफा G-23 और गांधी परिवार के बीच चल रहे विवाद का हिस्सा है. आजाद पार्टी के 23 बागी नेता, जिन्हें G-23 के नाम से जाना जाता है, के मुखिया हैं.

यह सम्भव है कि जम्मू और कश्मीर में इस्तीफा एक शुरुआत हो सकती है और कई अन्य राज्यों में भी इसकी पुनरावृत्ति आने वाले दिनों में दिख सकती है. इतना तो स्पष्ट है कि मीर के कंधे पर बन्दूक रख कर गोली राहुल गांधी पर दागी गयी है. मीर ने भी बिना किसी का नाम लिए आजाद पर इसका दोषारोपण कर दिया और कहा कि यह एक षडयंत्र का हिस्सा है. दिल्ली में बैठे कुछ नेता पार्टी नेतृत्व को ब्लैकमेल करके महत्वपूर्ण पद हथियाना चाहते हैं.

पिछले वर्ष अगस्त में कांग्रेस के 23 नेताओं ने एक पत्र लिख कर पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से अविलम्ब अंतरिम चुनाव कराने की मांग की थी. उनका मानना था कि दिल्ली में बैठ कर वह नेता जिन्हें जमीनी हकीकत भी नहीं पता वह पार्टी के बड़े और महत्वपूर्ण निर्णय ले रहे हैं. उनके अनुसार अगर पार्टी के सभी पदों पर चुने हुए प्रतिनिधि आते हैं तो पार्टी में जमीन से जुड़े नेताओं की एक नयी पौध सामने आएगी. यह नए नेता नयी सोच ले कर आएंगे जिसकी कांग्रेस पार्टी को सख्त आवश्यकता है.

राहुल गांधी निर्विरोध अध्यक्ष बनना चाहते हैं

उस समय तो उनकी मांग नहीं मानी गयी, उल्टे आजाद को पहले पार्टी के महासचिव पद से और बाद में राज्यसभा सदस्यता से हाथ धोना पड़ा. हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में करारी हार के बाद सोनिया गांधी ने पिछले महीने कांग्रेस वर्किंग कमिटी की बैठक बुलाई जहां उन्होंने आतंरिक चुनाव कराने की घोषणा की. घोषित कार्यक्रम के अनुसार 31 मार्च तक सदस्यता अभियान चलेगा जिस के उपरान्त नीचे के स्तर से चुनाव की शुरुआत होगी और नए कांग्रेस अध्यक्ष को अगस्त या सितम्बर के महीने में चुना जाएगा.

सवाल है कि अगर G-23 नेताओं की मांग जब मान ली गयी तो फिर जम्मू और कश्मीर में इस्तीफा ड्रामे की क्या जरूरत पड़ गयी. इसका तार भी चुनाव से ही जुडा है. कांग्रेस के केन्द्रीय कार्यालय पर राहुल गांधी की फ़ौज का कब्ज़ा है. सभी महत्वपूर्ण पदों पर राहुल गांधी के करीबी नेता बैठे हैं. इस बात में कोई शंका नहीं है कि राहुल गांधी अध्यक्ष बनना चाहते हैं. अभी से राहुल गांधी के करीबी केन्द्रीय पदाधिकारियों का प्रयास शुरू हो गया है कि उनके खिलाफ कोई दूसरा उम्मीदवार मैदान में ना आए और वह निर्विरोध चुन लिए जाएं. पर यह शायद G-23 के नेताओं को मंजूर नहीं है. वह चाहते हैं कि गांधी परिवार से पार्टी को मुक्त कराया जाए और कोई नया नेता अध्यक्ष बने ताकि पार्टी नए नेता और नए सोच के साथ 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुट सके.

आने वाला समय गांधी परिवार के लिए भारी है

अगर राहुल गांधी को अध्यक्ष पद के चुनाव में हराना है तो इसके लिए प्रदेश अध्यक्ष पदों से उनके नजदीकी नेताओं को हटाना जरूरी है, ताकि गांधी परिवार कमजोर पड़ जाए. जम्मू और कश्मीर में विद्रोह उसी सोची समझी नीति के तहत लिया गया एक फैसला है. गांधी परिवार पर वैसे भी मार्च के महीने के बाद दबाव और भी बढ़ सकता हैं क्योंकि अगले वर्ष के पहले तिमाही में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव निर्धारित हैं और इन सभी राज्यों में कांग्रेस पार्टी के जीतने की सम्भावना कम है. इनमे से कांग्रेस शासित प्रदेश पंजाब भी शामिल है, जहां पिछले कई महीनों से चल रहे उठा पटक के कारण कांग्रेस पार्टी की जीत की सम्भावना कम होती जा रही है.

इस तर्क में काफी दम है कि कांग्रेस पार्टी का जीर्णोद्धार तभी संभव है जबकि इसे गांधी परिवार के चुंगल से मुक्ति मिले. आने वाला समय ही यह निर्धारित करेगा कि जम्मू और कश्मीर से निकली बगावत की चिंगारी का अन्य राज्यों में कितना असर होगा और क्या आजाद के नेतृत्व में G-23 कांग्रेस पार्टी को गांधी परिवार से आजाद करवा पाएंगे?

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