भूविस्थापित किसानों का धरना तेरहवें दिन भी जारी, कुसमुंडा महाप्रबंधक की धरना समाप्त करने की अपील पर कहा-रोजगार मिलने तक जारी रहेगा आंदोलन

कुसमुंडा (कोरबा) 14 नवम्बर (वेदांत समाचार) मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और छत्तीसगढ़ किसान सभा के समर्थन-सहयोग से रोजगार एकता संघ द्वारा भूविस्थापित किसानों को रोजगार देने की मांग पर चल रहा धरना 13वें दिन भी जारी रहा। आज के धरना में प्रमुख रूप से अश्विनी, बादल, कृष्णा, बजरंग सोनी, अमरपाल, विशेश्वर, रामप्रसाद, दुमन, हेमंत, हेमलाल, रघुनंदन और अनिल के साथ बड़ी संख्या में भूविस्थापित किसान शामिल हुए।

आंदोलन के बढ़ते स्वरूप को देखकर कुसमुंडा एसईसीएल के नये महाप्रबंधक संजय मिश्रा ने भूविस्थापितों को बैठक के लिए बुलाया। बैठक में प्रबंधन की ओर से संजय मिश्रा के साथ बी के जैना, पी.एन सिंह व रमन्ना ने तथा भूविस्थापितों की ओर से माकपा जिला सचिव प्रशांत झा, किसान सभा के जवाहर सिंह कंवर, दीपक साहू तथा रोजगार एकता संघ से राधेश्याम कश्यप, दामोदर, रेशम, दीना नाथ, मोहनलाल कौशिक, चंद्र शेखर, टीकम राठौर, नरेश, गणेश, बलराम, घनाराम, हरिशंकर, रामकुमार के साथ बड़ी संख्या में भूविस्थापितों ने बैठक में हिस्सा लिया।

बैठक में महाप्रबंधक संजय मिश्रा ने भूविस्थापितों की समस्याओं के समाधान के लिए प्रबंधन और विस्थापितों की संयुक्त समिति बनाकर प्रत्येक सप्ताह मीटिंग कर कार्य प्रगति की जानकारी देने और समस्या का जल्द समाधान का प्रयास करने की बात कही और तबतक धरना प्रदर्शन समाप्त करने की अपील की। लेकिन बैठक में उपस्थित सभी भूविस्थापित आंदोलनकारियों ने एक स्वर में कहा कि संयुक्त समिति बनाकर कार्य प्रगति की जानकारी दी जा सकती है, लेकिन शांतिपूर्ण ढंग से चल रहा धरना तब तक जारी रहेगा, जब तक सभी लोगों को रोजगार नहीं मिल जाता और 30 नवंबर तक र9रोजगार समस्या का समाधान नहीं निकलता, तो 1 दिसंबर को कुसमुंडा खदान में कोयले का उत्पादन ठप्प किया जाएगा।

उल्लेखनीय है कि विगत ल 31 अक्टूबर को इस क्षेत्र के सैकड़ों किसान9न ने खदान में घुसकर उत्पादन कार्य को पूर्ण रूप से ठप्प कर दिया था, जिसके कारण प्रबंधन को 50 करोड़ रुपये से ज्यादा की क्षति उठानी पड़ी थी। इसके बाद प्रबंधन ने समस्या निराकरण के लिए एक माह का समय मांगा है, लेकिन भूविस्थापित कुसमुंडा महाप्रबंधक कार्यालय के सामने ही तंबू तान कर अनिश्चितकालीन धरने पर बैठ गए हैं। आंदोलनकारियों का कहना है कि उनगें अब प्रबंधन के किसी भी आश्वासन पर कोई भरोसा नहीं है और अब वे आर-पार की लड़ाई लड़ने के लिए तैयार हैं।

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