आगरा 13 नवंबर (वेदांत समाचार)। आगरा में DMD ( duchenne muscular dystrophy ) नामक बीमारी से एक मासूम पीड़ित है। उसके इलाज के लिए मां-बाप ने अपना सब कुछ गंवा दिया। लेकिन, उसको राहत नहीं मिली। इस पर पूरे परिवार का कहना है कि अगर सरकार बच्चे का इलाज नहीं कराती है, तो वे राष्ट्रपति से पूरे परिवार के लिए इच्छा मृत्यु मांगेंगे।
थाना एत्माउद्दौला के कालिंदी विहार में दीपक शर्मा पत्नी निधी, बेटी पीहू (15) और आठ साल के बेटे देव शर्मा के साथ किराए के मकान में रहते हैं। दीपक बिजली कारीगर हैं। देव को तीन साल की उम्र में चलने फिरने में दिक्कत शुरू हुई। परिजनों ने उसको कई डॉक्टरों को दिखाया पर कोई फायदा नहीं हुआ। इसके बाद जब वो उसे दिल्ली लेकर गए तो वहां डॉक्टरों ने बेटे को DMD नामक लाइलाज बीमारी से ग्रसित बताया और इलाज न होने की बात कही। इसके बाद परिजन उसे जयपुर दिखाने ले गए पर वहां भी फायदा नहीं होने की बात कह कर लौटा दिया गया।
सब कुछ बेच कर दिवालिया हो चुका परिवार
आगरा में सिर्फ व्हील चेयर पर चल पाता है दीपक शर्मा के बेटा देव
देव की मां निधि ने बताया कि पास जितना भी सोना था सब बिक गया और एक प्लाट भी बेचना पड़ा। कोरोना कॉल में दो साल से पति की कमाई न के बराबर रह गई है। लोगों ने पुरानी किताबें काॅपियां दे दी हैं तो अब बेटी स्कूल जा रही है। बेटे को मुंबई ले जाकर बोन नैरो का इंजेक्शन लगवाने से उसे फायदा हो सकता है पर अब हमारे पास कुछ भी नहीं बचा है। इतना महंगा इलाज कराने में हम सक्षम नहीं हैं। केंद्रीय कानून मंत्री प्रो एसपी सिंह बघेल का पत्र लेकर दिल्ली एम्स गए थे पर वहां भी कुछ फायदा नहीं हो पाया।
सरकार से की मदद की अपील
निधि शर्मा के अनुसार वो लोग जहां भी मदद मांगने गए ,सभी जगह इलाज का खर्च जानकर लोग पीछे हट जाते हैं। अभी प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री द्वारा करोड़ों रुपए खर्च कई लोगों का इलाज करवाया है। मेरी दोनों से अपील है की मेरे बेटे का भी इलाज करवा दीजिए। मेरे बेटे का इलाज नहीं हुआ तो हम उसे आंखों के सामने तड़प-तड़प कर मरता नहीं देख पाएंगे। राष्ट्रपति महोदय से इच्छा मृत्यु की मांग करेंगे।
लाइलाज बीमारी है DMD
DMD एक लाइलाज वंशानुगत बीमारी है। यह ज्यादातर लड़कों में ही होती है।इस बीमारी में दो से तीन साल की उम्र में बच्चों के घुटनों और पैर की मांस पेशियां कमजोर होने लगती हैं और बच्चा खड़ा होने में असमर्थ होने लगता है। पिंडलियों का वजन बढ़ने के बाद आने जाने के लिए उसे व्हील चेयर पर रहना पड़ता है। इस कारण उसका चेस्ट और फेफड़े कमजोर होने लगते हैं और उसे दिल की बीमारियां घेर लेती हैं। आमतौर पर इस बीमारी से ग्रस्त बच्चों की 20 से 22 साल की उम्र में मौत हो जाती है। बच्चे के इलाज के बारे में हेल्प आगरा के सुनील जैन से बात करने पर उन्होंने कहा कि इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है । बोन नैरो के लिए बहुत खर्च होता है। हम प्रयास करेंगे की समाज सेवियों की मदद से उसका इलाज करवाया जाए।
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