किसान आन्दोलन से बेअसर नहीं रह सकता आगामी विधानसभा चुनाव

पांच राज्यों में अगले वर्ष की शुरुआत में होने वाले विधानसभा चुनाव की गतिविधियों में लगातार तेजी आती जा रही है. 2017 में पंजाब और गोवा में 4 फरवरी को मतदान हुआ था, उत्तराखंड में 15 फरवरी को, उत्तर प्रदेश में सात चरणों में चुनाव 11 फरवरी से 8 मार्च के बीच हुआ था तथा मणिपुर में दो चरणों में चुनाव 4 और 8 मार्च को हुआ था. अगर 2017 के चुनाव के कार्यक्रमों को देखें तो अब चुनाव में तीन महीनों से भी कम समय बचा है. जाहिर सी बात है कि ज्यों ज्यों वातावरण में ठंड बढ़ती जाएगी, त्यों त्यों चुनावी गर्मी बढ़ती जाएगी, और उसके साथ बढे़गा अनिश्चितता का माहौल.

कल ABP C-VOTER का पांचों राज्यों का चुनावी सर्वे का परिणाम आया, जिसके अनुसार बीजेपी उन सभी प्रान्तों में जहां वर्तमान में उसकी सरकार है, चुनाव जीतने में सफल रहेगी. बता दें कि जहां उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में बीजेपी 2017 में भारी बहुमत से चुनाव जीती थी, गोवा और मणिपुर में त्रिशंकु विधानसभा का चुनाव हुआ था, जिसमे कांग्रेस पार्टी बीजेपी से आगे थी. इसे बीजेपी की चतुरता कहें या फिर कांग्रेस पार्टी की कमजोरी, दोनों प्रदेशों में बीजेपी सरकार बनाने में सफल रही और कांग्रेस पार्टी के विधायक बीजेपी में शामिल हो गए.

कांग्रेस की हालत खराब रहने वाली है

बीजेपी पूर्ण बहुमत से पूरे पांच साल सरकार चलाने में कामयाब रही. पर सत्ताधारी दल की सफलता का सिलसिला पंजाब में रुकता दिख रहा है. सर्वे के अनुसार पंजाब में टक्कर कांटे की होने वाली है, जिसमें आम आदमी पार्टी सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी से थोड़ा सा आगे दिख रही है. कांग्रेस पार्टी की स्थिति उत्तराखंड में पिछले चुनाव के मुकाबले बेहतर होती दिख रही है, पर इतनी भी नही कि वहां उसकी सरकार बन जाए. पर सर्वे के अनुसार सबसे बुरी खबर कांग्रेस पार्टी के लिए उत्तर प्रदेश से आ रही है, जहां कांग्रेस पार्टी को 6 से 10 सीटों पर जीतने के सम्भावना जताई गयी है, जो 2017 में जीते 7 सीटों के आसपास है.

चुनावी सर्वे या ओपिनियन पोल के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि जीत किसकी होगी, क्योंकि यह एक अनुमान मात्र होता है और चुनाव आते-आते वोटर्स का मूड भी बदल जाता है. पर इतना तो साफ दिख रहा है कि प्रियंका गांधी का जादू उत्तर प्रदेश में विफल हो रहा है. अगर देश के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण राज्य में कांग्रेस पार्टी का यही हाल रहा तो 2024 के आम चुनाव में भी कांग्रेस पार्टी की हालत पस्त ही रहेगी और राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनने के लिए 2029 तक का इंतज़ार करना पड़ेगा.

बीजेपी की सीटों में भी कमी आएगी

इस सर्वे के अनुसार उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सीटों में भारी गिरावट आएगी, फिर भी बीजेपी पूर्ण पबहुमत पाने में कामयाब रहेगी. पिछले लगभग एक साल से चल रहे किसान आन्दोलन का प्रभाव विधानसभा चुनावों पर पड़ता दिख रहा है. 2017 में उत्तर प्रदेश के 403 सीटों में से बीजेपी स्वयं 312 सीट जीतने के सफल रही थी, बीजेपी के सहयोगी दलों ने 13 सीटों पर सफलता हासिल की थी. और फिलहाल बीजेपी और उसके सहयोगी दलों को 213 से 221 सीट मिलने की सम्भावना दिखाई गयी है, यानि नुकसान लगभग 100 सीटों का है और लगभग इतना ही लाभ समाजवादी पार्टी और उसके सहयोगी दलों को होता दिख रहा है. इसी तरह उतराखंड में भी बीजेपी के सीटों में कमी और कांग्रेस पार्टी की सीटों में बढ़ोतरी दिख रही है.

पंजाब में भी किसान आन्दोलन का प्रभाव साफ़ दिख रहा है. 2017 में बीजेपी अकाली दल के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ी थी और सिर्फ तीन सीट ही जीत पायी थी और अबकी बार उसे शून्य से एक सीट मिलती दिख रही है. यह सर्वे अक्टूबर के महीने में शायद हुआ है क्योंकि, जहां इसमें यह बताया गया है कि चरणजीत सिंह चन्नी के मुख्यमंत्री बनने के बाद पंजाब में कांग्रेस पार्टी की स्थिति पहले हुए सर्वे से बेहतर हुई है, वहीं इस सर्वे में कांग्रेस के बागी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह फैक्टर का आंकलन नहीं किया गया है. अमरिंदर सिंह ने अब अपनी अलग पंजाब लोक कांग्रेस पार्टी का गठन किया है.

पंजाब में अमरिंदर सिंह कांग्रेस का खेल बिगाड़ेंगे

नवगठित पार्टी दूसरे दलों का, खासकर कांग्रेस पार्टी का वोट तो काटेगी ही. अगर बीजेपी के साथ इसका गठबंधन हो गया तो फिर पासा पलट भी सकता है. पर यह गठबंधन तब ही संभव है जबकि केंद्र सरकार कृषि कानूनों में थोड़ा संशोधन करे और फसलों के न्यूतम मूल्य की गारंटी दे. अगर ऐसा हुआ तो फिर पंजाब में पंजाब लोक कांग्रेस-बीजेपी गठबंधन कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का खेल बुरी तरह से बिगाड़ सकती है और उत्तर प्रदेश तथा उत्तराखंड में बीजेपी की सीटो में बढ़ोतरी हो सकती है.

बीजेपी केंद्र में तथा उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में सत्ता में है. सत्ता में होने का एक फायदा यह होता है कि सरकार के पास कई तरह के सर्वे का आकड़ा होता है. यानि बीजेपी को भी यह अच्छी तरह पता होगा कि किसान आन्दोलन के कारण उसके वोटों में कमी हो रही है. चुनाव आयोग दिसम्बर के आखिरी सप्ताह या फिर जनवरी की शुरुआत में चुनाव की विधिवत घोषणा कर सकती है. घोषणा होते ही चुनाव अचार संहिता लग जाएगा और उसके बाद कोई भी नीतिगत घोषणा वर्जित है. बीजेपी के पास समय कम है. देखना दिलचस्प होगा कि क्या बीजेपी कृषि कानूनों में संशोधन करने को राज़ी होती है या फिर चुनाव में रिस्क लेने को तैयार है. पर सरकार को यह फैसला दिसम्बर के आखिरी सप्ताह तक लेना पड़ेगा, यानि अगले डेढ़ महीनों में ही.