बिलासपुर 11 नवंबर (वेदांत समाचार)। गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय में 15 नवंबर का दिन बेहद खास होगा। साहस की प्रतिमूर्ति आजादी के लिए जनजातीय संघर्ष के महानायक स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा की जयंती अनोखे अंदाज में मनाई जाएगी। बुधवार को कुलपति प्रो. आलोक चक्रवाल ने इसकी घोषणा करते हुए कहा कि वेबिनार के माध्यम से देशभर के युवाओं को उनके संघर्ष गाथा का पाठ पढ़ाया जाएगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा की जयंती को खास तरीके से मनाने आह्वान किया गया था। केंद्रीय विश्वविद्यालय प्रशासन ने इस पर अमल करते हुए तत्काल बैठक कर कार्यक्रम की रूपरेखा तय की। कुलपति प्रो.चक्रवाल ने बताया कि सक्षम नेतृत्व एवं कुशल मार्गदर्शन में संघर्ष और साहस की प्रतिमूर्ति आजादी के लिए जनजातीय संघर्ष के महानायक स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा की 146 वीं जयंती पर वेबिनार का आयोजन किया जाएगा।
15 नवंबर की सुबह 11 बजे से मानव विज्ञान व जनजातीय विकास विभाग, एनडेनर्ज्ड लैंग्वेज सेल व इतिहास विभाग की ओर से जनजातीय समाज में जागरूकता और समरसता का विस्तार करने वाले बिरसा मुंडा के जीवन पर प्रकाश डाला जाएगा। वेबिनार का आयोजन किया जाएगा। शोषित और वंचित वर्ग के कल्याण के लिए जीवनपर्यंत संघर्ष करने वाले स्वराज क्रांति के ध्वजवाहक की संघर्ष गाथा को युवाओं के समक्ष रखेंगे।
युवाओं को मिलेगा अवसर
गुरु घासीदास विश्वविद्यालय छत्तीसगढ़ का एकमात्र केंद्रीय विश्वविद्यालय है। यहां स्वराज क्रांति के संवाहक बिरसा मुंडा के आदर्शों, नैतिक मूल्यों एवं सामाजिक सरकारों के साथ समरसता की भावना को युवा पीढ़ी तक पहुंचाने का निरंतर प्रयास किया जा रहा है।
छत्तीसगढ़ एक जनजातीय बाहुल्य राज्य होने के साथ-साथ जननायक बिरसा मुंडा की पावन भूमि झारखंड से लगा हुआ प्रदेश भी है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के माध्यम से भी युवा पीढ़ी को देश के सर्वांगीण विकास, राष्ट्र निर्माण में हमारे वीर नायकों के इतिहास, उनके व्यक्तित्व व कृतित्व को जानने, समझने और अपने जीवन में आत्मसात करने का सुअवसर मिलेगा।
स्वराज के लिए रहे समर्पित
अंग्रेजी हुकूमत को अपनी जीवटता से ललकारने वाले वीर लड़ाके बिरसा मुंडा ने क्रांति का बिगुल फूंकते हुए स्वतंत्रता संग्राम की अलख जगाने संदेश दिया था कि महारानी की सत्ता का अंत होना चाहिए और हमारा स्वराज आना चाहिए। उनके इस संदेश से न सिर्फ सभी जनजातीय युवा बल्कि समाज के हर तबके ने अंग्रेजी सल्तनत को उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया था।
15 नवंबर, 1875 में झारखंड के खूंटी जिले के उलीहातू गांव में किसान के परिवार में जन्म राष्ट्रीय गौरव के प्रतीक बिरसा मुंडा ने नैतिक आत्म-सुधार, आचरण की शुद्धता और एकेश्वरवाद का उपदेश देने के साथ अपनी संस्कृति और जड़ों के प्रति गर्व करना सिखाया। अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ संघर्ष करते हुए नौ जून, 1900 को महज 25 वर्ष की आयु में राष्ट्र को सर्वस्व समर्पित कर रांची जेल में चल बसे।
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