कोरबा 22 अक्टूबर (वेदांत समाचार) । हमारे जंगल में कितने हाथी हैं, भालू-तेंदुआ या मोर कहां-कहां पाए जाते हैं और उनकी संख्या कितनी है। इन बातों को लेकर वन विभाग एक बार फिर आंकलन की तैयारी में जुट गया है। आल इंडिया टाइगर एस्टिमेशन के तहत दो चरणों में वन्य प्राणियों की गणना का यह कार्य पूर्ण किया जाएगा। पहले चरण में यह कार्य 25 से 30 अक्टूबर के बीच पांच दिन चलेगी।
शेष कार्य अगले माह आठ से 13 नवंबर के बीच निपटाए जाएंगे।देश भर में एक साथ होने वाले इस कार्यक्रम को आल इंडिया टाइगर एस्टिमेशन कहा जाता है, जिसका नाम बाघ आंकलन पर रखा गया है। पर इस दौरान सभी प्रकार के वन्य जीवों, पक्षियों और यहां तक कि जंगल में घुसने वाले पालतू जानवरों का भी आंकलन व गणना की जाएगी। सभी अभयारण्य एवं सेंचुरी में यह प्रक्रिया समय-समय पर की जाती है। इसे अक्टूबर तक पूर्ण कर लिया जाना था, पर इस बार यह एक माह विलंब होकर नवंबर तक पूरा किया जाएगा।
खासकर बाघ आंकलन पर केंद्रित यह कार्यक्रम दो चरणों में पूरा किया जाएगा। इसके लिए वन अमला पांच दिन के लिए जंगल के अलग-अलग बीट में जाएगा। इनमें फारेस्ट गार्ड समेत एक सहायक शामिल रहेगा, जो दो तरह से वन्य प्राणियों की मौजूदगी के निशान एकत्र का एक रिपोर्ट तैयार करेंगे। यह रिपोर्ट मुख्यालय को भेज दी जाएगी, ताकि वर्तमान स्थिति में हमारे जंगल में उपलब्ध वन्य जीवों की संख्या का रिकार्ड तैयार कर उसे अपडेट किया जा सके।
इस प्रक्रिया में दो तरह से किसी जीव के होने की पहचान सुनिश्चित की जाएगी। इनमें डायरेक्ट और इंडायरेक्ट सिमटम्स शामिल हैं, जिसे नोट किया जाएगा और मुख्यालय को भेज दिया जाएगा। डायरेक्ट साइटिंग में किसी जीव को प्रत्यक्ष देखकर उसके होने का आंकलन किया जाएगा, जबकि इनडायरेक्ट साइटिंग में उनकी बीट, मल या गोबर, पंजों के निशान, खुरचने का निशान या पदचिन्हों से उनकी प्रजाति का पता लगाया जा सकेगा। उन निशानों को प्रयोगशाला भेजा जाएगा, जहां इस बात की पुष्टि होगी कि जिस जीव की संभावना व्यक्त की गई है, वह सच है या नहीं।
यह आंकलन केवल बाघ के लिए नहीं, बल्कि कार्निवोर (मांसाहारी वन्य जीव) प्राणी जैसे तेंदुआ, लोमड़ी व लकड़बग्घा समेत अन्य की पहचान सुनिश्चित करते हुए संख्या का आंकलन किया जाएगा। उसके आधार पर यह आंकलन किया जाएगा कि संबंधित क्षेत्र में बाघ की मौजूदगी या चहल-कदमी है या नहीं। इनके अलावा सभी प्रकार के हर्बीवोर (शाकाहारी) वन्य जीवों जैसे हाथी, हिरण व अन्य की जानकारी भी एकत्र करना इस सर्वेक्षण कार्य में शामिल रहेगा। कार्नीवोर के साथ हर्बीवोर के लिए भी डायरेक्ट या इनडायरेक्ट साइटिंग का एक रोडमैप तैयार कर आंकलन होगा। बकरी, बैल, भैंस या गायों समेत अन्य पालतू जानवरों की वन क्षेत्रों में चहलकदमी पर भी निगाह रखते हुए नोट्स तैयार किए जाएंगे।
कोरबा वनमंडल की डीएफओ प्रियंका पांडेय ने बताया कि चार ट्रैप कैमरा भी उपलब्ध हैं। जहां पर डायरेक्ट साइटिंग की संभावना ज्यादा होती है, वहीं कैमरे लगाए जाएंगे। हाथियों के लिए सर्वाधिक संवेदनशील परिक्षेत्र करतला व कुदमुरा में ट्रैप कैमरा लगाए जाएंगे।
पांच-पांच दिनों के दो फेस में चार कैमरों का प्रयोग किया जाएगा। बाघ होने की संभावना वाले स्थानों में दोनों ओर से तस्वीरों की जरूरत होती है और इसलिए वहां दो कैमरे लगाए जाते हैं। हाथियों के लिए एक ही ओर से तस्वीरें काफी होती हैं, इसलिए इनके लिए एक ही कैमरे का उपयोग काफी होता है, पर कैमरे वहीं लगाए जाएंगे, जहां डायरेक्ट साइटिंग की संभावना, यानि प्रत्यक्ष रूप से किसी प्राणी का दर्शन संभावित हैं।
छह साल पहले जिले में आखिरी बार बाघ के होने की दस्तक मिली थी। वनमंडल कटघोरा के लाफा जंगल में दहाड़ सुनी गई थी, जिसके बाद से अब तक बाघ की चहल-कदमी के निशान नहीं मिले। सितंबर 2015 में किसी शिकारी जीव ने एक मवेशी को शिकार बनाया था, जिसके बाद मौके पर मिले पंजों के निशान की जांच में बाघ होने की पुष्टि हुई थी। पाली वन परिक्षेत्र में बाघ की मौजूदगी के निशान पाए गए थे। तब कटघोरा के तात्कालिन डीएफओ हेमंत पांडेय ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया था कि पंजों के एकत्र किए गए सैंपल का विशेषज्ञीय परीक्षण करते हुए मिलान किया गया, जिससे साबित हो गया कि ग्राम नगोई में मिल पंजे के निशान बाघ के ही थे।
[metaslider id="347522"]