हाई कोर्ट ने पर्यावरण संरक्षण मंडल को याचिकाकर्ताओं की हकीकत जानने जारी किया था निर्देश

बिलासपुर 21 अक्टूबर (वेदांत समाचार) एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट के डिवीजन बेंच ने पर्यावरण संरक्षण मंडल को नोटिस जारी कर जनहित याचिका में लगाए गए गंभीर आरोपों की सत्यता की जांच का निर्देश दिया था। डिवीजन बेंच ने याचिकाकर्ता ग्रामीणों को यह भी चेतावनी दी थी कि आरोप गलत पाए गए तो जुर्माने की सजा भुगतनी पड़ेगी।

मंडल की जांच रिपोर्ट में दूध का दूध और पानी का पानी हो गया है। जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान राज्य शासन और औद्योगिक कंपनी एपीएल अपोलो ने जवाब पेश करने के लिए मोहलत मांगी।डिवीजन बेंच ने शासन व औद्योगिक कंपनी को तीन सप्ताह का समय दिया है। अगली सुनवाई तीन सप्ताह बाद होगी।

पर्यावरण प्रदूषण के अलावा कृषि भूमि पर लगाए जा रहे उद्योग के विरोध में रायपुर जिले के सिमगा तहसील अंतर्गत आने वाले गांव रिंगनी और केसदा के ग्रामीण महीनों से आंदोलन कर रहे हैं। विवाद की स्थिति भी निर्मित हुई थी। शासन के हस्तक्षेप के चलते औद्योगिक कंपनी ने निर्माण कार्य प्रारंभ किया। इसके विरोध में ग्रामीणों ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में याचिका दायर कर पर्यावरण प्रदूषण के साथ ही कृष्ाि भूमि पर उद्योग लगाए जाने का विरोध दर्ज कराया है।

याचिका में बताया कि उद्योग लगाने से पहले पर्यावरण स्वीकृति जस्र्री है। यह नहीं लिया गया है। केवल राज्य पर्यावरण बोर्ड से जल प्रदूष्ाण अधिनियम के तहत सहमति ली गई है। याचिकाकर्ता ग्रामीणों ने अपनी याचिका में नियमों व निर्देशों की जानकारी देते हुए कहा है कि कारखाना संबंधी निर्माण आरंभ करने के पूर्व आवश्यक है लिखित स्वीकृति केंद्र सरकार द्वारा पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत ईआइए अधिसूचना (पर्यावरण प्रभाव आंकलन मसौदा अधिसूचना) जारी किया गया है

याचिकाकर्ता ग्रामीणों ने दायर याचिका में शीर्ष अदालत के निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि एक प्रकरण की सुनवाई के बाद शीषर््ा अदालत ने ईआइए अधिसूचना में दिए गए शर्तों का पालन किए बिना व पूर्व स्वीकृति ना लेने के आरोप में निर्माण कार्य को अवैध ठहराते हुए जुर्माना ठोंका था। शीर्ष अदालत ने वर्ष 2020 में अलंेबिक फार्मा के प्रकरण में यह आदेश जारी किया था। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि अधिसूचना के अंतर्गत पूर्व स्वीकृति नहीं ली गई और कारखाना का संचालन किया जा रहा है तो यह अवैध है। पर्यावरण संरक्षण के प्रति गैरजिम्मेदारी से भरा कृत्य है।