हमारी जिंदगी कोयले से भी काली हो गई, कुछ करिए मंत्री जी….

कोरबा,13 अक्टूबर ( वेदांत समाचार )। देश और प्रदेश की प्रगति में बिजली का अहम योगदान है। बिजली उत्पादन के लिए कोयला अनिवार्य वस्तु है। कोयला खनन के लिए जिन भू विस्थापितों ने अपने जीवन यापन का साधन जमीन एसईसीएल प्रबंधन को दे दिया, वे भू विस्थापित वर्षों-वर्षों से उपेक्षित चले आ रहे हैं। अधिकांश मामलों में प्रबंधन की हठधर्मिता, भू-विस्थापितों की मांगों और समस्याओं का निराकरण के प्रति उदासीनता और खासकर एसईसीएल के राजस्व विभाग में हावी दलाल प्रथा के कारण वास्तविक एवं पात्र भू विस्थापितों को अपेक्षित लाभ ना मिलकर कई अपात्र लोगों को संरक्षण मिलने के कारण विस्थापितों की समस्या लगातार चली आ रही है। एसईसीएल में आज भी सैकड़ों अपात्र लोग फर्जी तरीके से नौकरी हासिल कर कार्य कर रहे हैं।

देश में बदलती सरकारों ने अपने-अपने हिसाब से कोयला संबंधी कानून लागू किए लेकिन भू विस्थापितों की सुध लेने के लिए, उनकी स्थिति बेहतर करने के लिए प्रयास नाकाफी ही रहे हैं। कोरबा जिले में संचालित कोरबा सहित गेवरा, दीपका, कुसमुंडा परियोजना की खदाने शीर्ष पर हैं और एक नई पहचान स्थापित की लेकिन जिस भूमिपुत्रों की बदौलत यह उपलब्धियां हासिल हुई हैं, उन विस्थापितों का दमन और शोषण तथा उनकी उपेक्षा हमेशा से आंदोलन की वजह बनती आई है।


कोरबा जिला के प्रवास पर आने वाले एवं खदानों में पहुंचकर व्यू प्वाइंट से नजारा देखकर लौट जाने वालों से विस्थापितों की मुलाकात हमेशा से मुद्दा रही है। पहले भी ऐसे कई मौके आए हैं जब संबंधितों से भूविस्थापितों की दूरी बनाए रखने का प्रयास एसईसीएल के अधिकारियों ने किया है। आज बुधवार को जब केंद्रीय कोयला मंत्री प्रहलाद जोशी दीपका पहुंचे तो विस्थापितों के संगठन ने उनसे अपनी मांगों के संबंध में चर्चा करने के लिए समय मांगा। हो सकता था कि केंद्रीय मंत्री विस्थापितों से चंद मिनट बात करने का समय निकाल भी लेते लेकिन एसईसीएल के अधिकारियों ने विस्थापितों को उनसे मिलने के लिए रोक दिया। नाराज भू विस्थापित खदान में प्रवेश कर उत्पादन ठप कर दिए। प्रबंधन अपनी मनमानी करता रहा है लेकिन मंत्रियों और शीर्ष अधिकारियों के सामने स्थानीय स्तर पर मौजूद खामियां सामने ना आए इसके लिए वह विस्थापितों से मुलाकात कराने में परहेज करते रहे हैं।

एक ऐसा अवसर आज भी आया जो कहीं न कहीं विस्थापितों को मायूस कर देने वाला रहा। इनका कहना है कि प्रबंधन उनके समस्याओं का समाधान करना ही नहीं चाहता और देश हित की बात कहकर हमारी जमीनों को जबरन लेने की मंशा रखता है। अब तो खदान के बाहर प्रदर्शन करने पर भी प्रबंधन गलतफहमी पैदा करता है कि आंदोलन की वजह से उत्पादन प्रभावित हो रहा जबकि प्रबंधन अपनी खामियों को उजागर नहीं कर रहा।एसईसीएल में लाखों करोड़ों का भ्रष्टाचार हो रहा है जिसे सामने आने देने से बचना चाहता है प्रबंधन और ठीकरा विस्थापितों पर फोड़ा जा रहा है। खदान के लिए जमीन दे देने के बाद उनके पास आय का कोई साधन नहीं बचता तब नौकरी ही गुजर-बसर का जरिया रह जाती है। प्रबंधन यह नौकरी/रोजगार देने में भी आनाकानी कर रहा है।

 भूविस्थापित करुण गुहार कर रहे हैं- हमारी जिंदगी कोयले से भी काली हो गई, कुछ करिए कोयला मंत्री जी….।