कोरबा। कोल इंडिया के लिए अधिकतम उत्पादन करने वाली कोयला कंपनी साउथ ईस्टर्न कोलफिल्डस लिमिटेड के कोरबा जिला स्थित दीपका क्षेत्र की दीपका खदान में मलगांव के लोग डेंजर जोन के पास प्रदर्शन कर रहे हैं। इसके चलते कई तरह की परेशानियां पेश आ रही हैं। इससे जहां, कोयला कंपनी को रोजाना बड़ा नुकसान हो रहा है। वहीं 5 दिन में राज्य सरकार को रायल्टी के रूप में 10 करोड़ की चपत लग चुकी है। मामले को सुलझाने के लिए प्रशासन ने औपचारिक कोशिश की लेकिन सार्थक नतीजे नहीं आ सके।
राजस्व जिला कोरबा में एसईसीएल के द्वारा चार क्षेत्रों से कोयला उत्पादन किया जाता है। कंपनी की कोयला खदानें कोरबा, कुसमुंडा, गेवरा और दीपका क्षेत्र में संचालित हो रही है। इनमें से गेवरा एशिया की सबसे बड़ी माइंस है, जो प्रतिवर्ष 45 मिलियनटन कोयला खनन करती है। इसके बाद दीपका क्षेत्र का नंबर है, जो बराबरी से कुछ दूरी पर है। दीपका खदान का दायरा बढ़ाने के लिए प्राथमिक कार्यवाही पूरी की जा चुकी है। सरकार के स्तर पर प्रक्रियाओं को पूरा कराया गया है। खबर के अनुसार खदान के पास मलगांव का क्षेत्र खनन की परिधि में शामिल किया गया है। भू-विस्थापितों के एक संगठन द्वारा 6 अक्टूबर से कुछ मांगों को लेकर प्रदर्शन शुरू किया गया।
उन्होंने दीपका खदान के डेंजर जोन के पास टेंट और झंडे लगा रखे है। ऐसे में प्रबंधन की गतिविधियों पर सीधे तौर पर असर पड़ रहा है। स्थिति यह है कि इन कारणों से अधिकारी दबाव में हैं और कार्य संपादन में कठिनाइयां होना स्वाभाविक है। कहा गया कि लोगों के डेंजर जोन के पास मौजूद होने से ब्लास्टिंग और ओव्हरबर्डन हटाने का काम नहीं किया जा सक रहा है। बताया गया कि कार्यों के गतिशील नहीं होने से हर रोज अकेले एसईसीएल कोयला कंपनी को करोड़ों का प्रत्यक्ष नुकसान हो रहा है। वहीं प्रतिदिन राज्य शासन को रायल्टी के रूप में मिलने वाली दो करोड़ की चपत लग रही है। अगर यहां से कोयला खनन प्रारंभ होता है तो निश्चित तौर पर एक दिन में इतनी राशि सरकार के हिस्से में जाना ही है।
42 क्यूबिक मीटर खनन बाधित
जानकारों का कहना है कि कोयला कंपनी के पास इस क्षेत्र में जो काम किये जा रहे है, उसमें 240 टन के डंपर, शावेल, पिट वाईपर का उपयोग किया जाना है। चंूकि मौजूदा परिस्थितियों में काम नहीं हो पा रहा है। ऐसे में इन संसाधनों के आपरेटिंग प्रोसेस से जुड़े मेन पॉवर की उपयोगिता साबित नहीं हो पा रही है। अनुमानत: यहां से प्रतिदिन 42 क्यूबिक मीटर खनन सीधे तौर पर प्रभावित हो रहा है। इस स्थिति में कर्मियों की दक्षता का लाभ कंपनी नहीं ले पा रही है। लेकिन हर हाल में कर्मियों के हितों का ध्यान उसे रखना है। प्रबंधन की चिंता इस बात को लेकर भी है कि कई बार प्रदर्शनकर्ता खनन क्षेत्र तक पहुंच जा रहे है। ऐसे में कर्मचारियों का भयभीत होना लाजिमी है।
नियम विरूद्ध नहीं दे सकते कोई काम
खबर के अनुसार जो संगठन यहां पर कुछ मांगों को लेकर यहां प्रदर्शन कर रहा है, उसका तर्क है कि लोगों को 10 लाख रूपए तक के काम बिना किसी प्रक्रिया के दे दिए जाएं। इससे अलग कोई बात नहीं की जाएगी। जबकि प्रबंधन का कहना है कि सरकार की पॉलिसी के अनुसार ही कोयला कंपनी सभी तरह के कार्यो के लिए ऑनलाइन टेंडर जारी करती है। इसमें भी पहले से यह साफ नहीं हो पाता कि लोवेस्ट कौन आएगा। ऐसे में नियम से परे जाकर किसी को भी काम आखिर कैसे दे सकते हैं। जो चीजें व्यवहारिक है, उन्हीं पर विचार हो सकता है।
ये सुविधाएं दी है कंपनी ने
७ परिवहन कार्य में आसपास के लोगों का नियोजन
७ सामान्य कार्यों में स्थानीय श्रमशक्ति को अवसर
७ लगभग 25 हजार परिवारों की जीविका सुनिश्चित
७ सामुदायिक विकास के लिए भी जारी है काम
समितियां बनाकर सुलझायेंगे मसला
एसईसीएल दीपका क्षेत्र से संबंधत समस्या प्रशासन के संज्ञान में आयी है। हाल में ही प्रशासन ने सीएसपी और प्रबंधन के साथ इस बारे में बातचीत की। तय किया गया है कि प्रभावित ग्रामों की समितियां बनायी जाए। इस स्तर से समस्याओं का हल खोजा जाएगा।
नंदजी पांडेय
एसडीएम कटघोरा
कोयला उत्पादन से ही बिजली की कल्पना संभव
कोयले के उत्पादन नहीं होने से बिजली आपूर्ति पर सीधा असर पड़ता है। पूरे विश्व में कोयले की कमी से बिजली संकट से हाहाकार मचा हुआ है। विस्थापितों को लोकतांत्रिक तरीके से अपना प्रदर्शन करना चाहिए। ताकि विपरित हालात उत्पन्न न हो सके।
शशांक देवांगन
महाप्रबंधक एसईसीएल दीपका, परियोजना
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