इंदौर, 03 अक्टूबर (वेदांत समाचार)। कोरोना की वजह से कमजोर हुए फेंफडे अब तपेदिक की वजह बन रहे हैं। जो लोग पिछले पांच साल में तपेदिक के मरीजों के सीधे संपर्क में आए हैं, उन्हें इस बीमारी का खतरा बढ़ गया है। आम दिनों के मुकाबले इन दिनों तपेदिक जैसे लक्षणों वाले दोगुने मरीज अस्पताल पहुंच रहे हैं। ऐसे हर एक हजार मरीजों में चार में तपेदिक की पुष्टि भी हो रही है।
डॉक्टरों के मुताबिक दो सप्ताह से ज्यादा खांसी रहने पर जांच करवाना जरूरी है। शासन स्तर पर इस बीमारी का पूरा इलाज मुफ्त उपलब्ध है लेकिन जरूरी है कि मरीज समय पर और नियमित रूप से दवाई लें। महामारी की वजह से दवाओं की निरंतरता टूटने से तपेदिक के गंभीर मामलों की संख्या में बढ़ोतरी हो गई है।
पिछले डेढ साल में बड़ी संख्या में लोग कोविड वायरस की चपेट में आए हैं। यह वायरस सीधे मनुष्य के फेफडों पर हमला करता है। इसके चलते फेंफडे कमजोर हो जाते हैं और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी प्रभावित हो जाती है। कोरोना के इलाज के दौरान दिए स्टेरॉइड भी शरीर पर प्रतिकूल असर डालते हैं। यही समय होता है जब तपेदिक का बैक्टेरिया सिर उठाने लगता है और फेंफडों पर हमला कर देता है।
जो व्यक्ति पिछले पांच साल में किसी भी तरह से तपेदिक के मरीजों के संपर्क में आए हैं उनके शरीर में यह बैक्टेरिया सुप्त अवस्था में मौजूद रहता है। जैसे ही शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर पड़ती है यह हमला कर देता है। चिकित्सकीय भाषा में इसे लेटेंट टीबी (सुप्त तपेदिक) कहा जाता है। मनोरमा राजे क्षय चिकित्सालय के डॉ. सलिल भार्गव के मुताबिक इन दिनों सामान्य के मुकाबले दोगुने मरीज सुप्त तपेदिक के आ रहे हैं।
निरंतरता टूटने से भी बढ़ा खतरा
तपेदीक के मरीज के लिए समय पर और नियमित दवाई लेना जरूरी होता है लेकिन महामारी की वजह से दवाओं में निरंतरता टूट गई है। डॉक्टरों के मुताबिक शहर के अनलाक होते ही बड़ी संख्या में ऐसे मरीज अस्पताल पहुंच रहे हैं। दवाओं की निरंतरता टूटने की वजह से तपेदिप गंभीर स्थिति में पहुंच जाता है और इलाज मुश्किल हो जाता है।
समय पर दवाई लें तो आसानी से नियंत्रित हो जाता है तपेदिक
डॉक्टरों के मुताबिक समय पर जांच और नियमित दवाई लेने से तपेदिक को पूरी तरह से खत्म किया जा सकता है। इसकी दवाई हर सरकारी अस्पताल में पूर्णत: निशुल्क है। सामान्यत: तपेदिक का इलाज 6 से 12 महीने तक चलता है। मल्टी ड्रग रजिस्टेंस (एमडीआर) टीबी की स्थिति में इलाज डेढ से दो साल चलता है।
[metaslider id="347522"]