✒️ नरेन्द्र मेहता, कोरबा
कांग्रेस छतीसगढ़ इकाई में सियासी धमासान के बीच कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को बड़ी जिम्मेदारी सौपते हुए उन्हें उत्तरप्रदेश चुनाव के लिए वरिष्ठ पर्यवेक्षक नियुक्त किया हैं. उत्तरप्रदेश में बघेल की टीम कई दिनों से संगठन को मजबूत करने का काम कर रही हैं. बघेल को मिली इस नई जिम्मेदारी के कई मायने निकाले जा रहे हैं. जबकि राजनीति में गहरी जानकारी रखने वालों का यह कहना हैं कि कांग्रेस हाईकमान ने फिलहाल छतीसगढ़ में मुख्यमंत्री पद के घमासान को शांत करने के लिए बघेल को नई जिम्मेदारी दी गई हैं इसका मतलब साफ है कि मुख्यमंत्री की कुर्सी उत्तरप्रदेश चुनाव तक तो सुरक्षित हैं.
दरअसल छतीसगढ़ में मुख्यमंत्री पद के लिए विभाजित कार्यकाल का मुद्दा पिछले चार माह से लोगो के कौतूहल का विषय बना हुआ है कि भूपेश बघेल मुख्यमंत्री पद बने रहेंगे या नहीं.क्योंकि इस दौरान छतीसगढ़ कांग्रेस के दिग्गज नेताओं और विधायक का दिल्ली दौरा अलग अलग बहाने बनाकर होता रहा और हर दिन मीडिया में भी अलग अलग खबर बनती रही. असमंजस की स्थिति बनने के कारण न केवल शासन प्रशासन का कामकाज भी प्रभावित हुआ बल्कि अफसर भी टेंशन देखे जा सकते हैं.
गौर करने वाली बात यह हैं कि
उत्तर प्रदेश से पहले बघेल को उत्तर पूर्व के राज्य असम की जिम्मेदारी दी गयी थी, कांग्रेस चुनाव भले न जीत सकी लेकिन ये बघेल की ही मेहनत थी कि पार्टी ने बीजेपी को कड़ी टक्कर दी।असम विधानसभा चुनाव में भूपेश बघेल ने तन-मन-धन तीनों ही तरीके से कांग्रेस को लीड किया था, हालांकि कांग्रेस असम चुनाव जीतने में नाकाम रही लोगों ने एएआईयूडीएफ के साथ कांग्रेस के गठबंधन को नकार दिया।असम चुनाव में भूपेश बघेल के चुनावी प्रबन्धन को देखते हुए उन्हें यूपी टीम प्रियंका को मजबूती देने की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
सालों से यूपी में सत्ता से दूर कांग्रेस ने प्रियंका गांधी को 2019 महासचिव बनाया। प्रियंका गांधी ने यूपी कांग्रेस में नया जोश तो भरा लेकिन ऐसे साथी की भी जरूरत थी जिसे सरकार चलाने के साथ ही संगठन को मजबूत करने का अनुभव हो, यही वजह थी कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को उत्तर प्रदेश में चौथे नम्बर की पार्टी कांग्रेस को रसातल से धरातल तक लाने का जिम्मा सौंपा गया है।यूपी का पर्यवेक्षक नियुक्त होने के पहले से ही बघेल की टीम राज्य में सक्रिय है। भूपेश बघेल के करीबी राजेश तिवारी उत्तर प्रदेश के सह प्रभारी हैं जिन्हें इसी साल की शुरुआत में ये जिम्मेदारी दी गयी। छतीसगढ़ मॉडल की तर्ज़ पर ही यूपी में भी अब हर बूथ पर कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित किया जा रहा है।
यूपी में चुनाव प्रचार की शुरुआत प्रियंका गांधी ‘प्रतिज्ञा यात्रा’ से करने जा रही हैं जो कि अक्टूबर के दूसरे हफ्ते में शुरू होगी. 12 हज़ार किलोमीटर लंबी ये यात्रा प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से शुरू होकर पूरे प्रदेश में जाएगी। भूपेश बघेल के होने से ये तो पक्का है कि कांग्रेस को कैडर से लेकर संसधान की कमी से दोचार नहीं होना पड़ेगा। साथ ही भूपेश बघेल अपने छतीसगढ़ मॉडल को लेकर यूपी की जनता के बीच जाएंगे.भले ही छतीसगढ़ में पिछले कई दिनों से कांग्रेस की राजनीति में उथल पुथल मची हुई हैं और अटकलों का दौर जारी हैं, लेकिन बघेल पूरे आत्मविश्वास के साथ नजर आ रहे हैं.
इस संबंध में गत दिवस ही उन्होंने यह कह कर इशारा कर दिया था कि छतीसगढ़ कभी पंजाब नहीं बन सकता.बघेल के इस इसारे पर गौर किया जाए तो पंजाब और छतीसगढ़ में कांग्रेस की आंतरिक कहल की स्थिति ही अलग अलग हैं. पंजाब में तो कांग्रेस विधायक मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ थे इसलिए कैप्टन को कांग्रेस हाईकमान के आदेश पर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा,वहीं छतीसगढ़ का परिदृश्य एकदम उल्टा हैं यहां कांग्रेस के सर्वाधिक विधायक मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के समर्थन में उनके साथ खड़े हैं.कथित ढाई ढाई साल के फार्मूले को लेकर अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल व मंत्री टी एस सिंहदेव को बैठक के लिए दिल्ली बुलवाया था उस दौरान करीब 50 – 55 विधायक मुख्यमंत्री के समर्थन में दिल्ली दरबार की चौखट तक बिन बुलाए पहुंच गए थे.उस वक्त छतीसगढ़ के दोनों नेताओं के साथ राहुल गांधी की अहम बैठक भी हुई. उसके बाद नतीजा आज तक नहीं आया. फिर कहा यह जाने लगा कि राहुल गांघी के छतीसगढ़ प्रवास के बाद ही मुख्यमंत्री बदलने के संबंध में निर्णय लिया जाए.प्रदेश में भारी बारिश व पंजाब कांग्रेस की उठा पटक के कारण संभवतः राहुल गांधी के दौरे की निश्चित तारीख अब तक तय नहीं हो पाई हैं.राजनीति में संभावना बनी रहती हैं इस बात से इंकार भी नहीं किया जा सकता औऱ
शतरंज के धोड़े की तरह ही कांग्रेस हाईकमान कब ढाई घर की चाल छतीसगढ़ में चल दे यह संशय उस वक्त तक बना रहेगा जब तक हाईकमान खुलकर कुछ नहीं बोलेगा.
संभावित मुख्यमंत्री टी एस सिंहदेव जो बड़े ही सुलझे हुए राजनेता हैं और महाराजा होते हुये भी जनता के बीच अपनी शालीनता और व्यवहार कुशलता की बदौलत अपनी एक अलग पहचान छतीसगढ़ में बनाई हैं.15 साल की भाजपा सरकार को सत्ता से हटाने और कांग्रेस को सत्ता पर लाने में अहम भूमिका दिग्गज नेता भूपेश बघेल व टी एस सिंहदेव की ही थीं उस वक्त इन दोनों को जय-वीरू की जोड़ी का नाम दिया गया था. समय के साथ साथ इन दोनों के मध्य ढाई ढाई साल के मुख्यमंत्री बनने के वादे को लेकर दूरियां भी बढ़ गई और ये दोनों आज आमने सामने हैं और इनके बीच कांग्रेस हाईकमान हैं जिसके पास सिंहदेव के अनुसार छतीसगढ़ में क्या होना है, ये निर्णय हाईकमान के पास सुरक्षित हैं, अभी फैसला नहीं हुआ,यह माना जाना चाहिए, अभी किसी को भी जानकारी नहीं हैं कि हाईकमान ने क्या निर्णय लिया है.निर्णय छोटा नहीं हैं इसलिए इसकी कोई समय सीमा नहीं हैं वक्त भी लग सकता हैं.
कुलमिलाकर यह कहा जा सकता हैं कि भूपेश बघेल की मुख्यमंत्री कुर्सी उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनाव तक सुरक्षित रहेगी.उसके बाद क्या होगा.यह तो समय ही बताएगा.
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