बरसात के मौसम में पपीते के पौधे में एक नई बीमारी लगने लगी है जो पूरी फसल को बर्बाद कर सकती है. किसान इस बीमारी से घबराएं नहीं बल्कि इस बीमारी से निपटने के लिए वैज्ञानिक से सलाह लेकर उपचार करें . अच्छा फसल होगी . यह रोग एस्परस्पोरियम कैरिका (aspersporium carica ) नामक कवक द्वारा होता है,जिसे पहले सेरकॉस्पोरा कारिकाई नाम से जाना जाता था. यह रोग दुनिया भर में पाया जाता है जैसे एशिया, अफ्रीका, उत्तर, दक्षिण और मध्य अमेरिका, कैरिबियन, ओशिनिया. यह ऑस्ट्रेलिया, फिजी, फ्रेंच पोलिनेशिया, न्यू कैलेडोनिया और सोलोमन द्वीप से भी रिपोर्ट किया गया है. इस रोग का मुख्य मेजबान पपीता है.
डा. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा , समस्तीपुर, बिहार के अखिल भारतीय फल अनुसन्धान परियोजना के डायरेक्टर रीसर्च एवं एसोसिएट प्रिंसीपल इन्वेस्टिगेटर, प्रोफेसर डॉ एसके सिंह टीवी9डिजिटल के जरिए किसानों को बता रहे हैं इस बीमारी के बारे में कि आखिर यह बीमारी क्या है.
इस बीमारी का कारण क्या है
बिहार की कृषि-जलवायु परिस्थितियों में यह रोग पहली बार वर्ष 2020 में देखा गया था . वर्ष 2021 में पुनः एक बार देखा जा रहा है , उसकी मुख्य वजह इस साल वातावरण में भारी नमी का होना मुख्य वजह है. लगातार बारिश होने की वजह से यह रोग भारी उग्रता में देखा जा रहा है. इस रोग का मुख्य लक्षण और जीवन चक्र,प्रभाव,आसानी से पहचान एवम् कैसे प्रबन्धित करना है ,यह जानना अत्यावश्यक है अन्यथा भारी नुकसान होगा.
रोग का मुख्य लक्षण
यह रोग पपीता की पत्तियों पर धब्बे जो अनियमित आकर के गोल, 3-6 मिमी व्यास, पुरानी पत्तियों पर विकसित; वे पीले भूरे रंग के साथ ऊपर भूरे रंग के होते हैं; नीचे, बीजाणु धब्बों को गहरे भूरे या काले रंग में विकसित करते हैं . यदि पत्तियां गंभीर रूप से संक्रमित होती हैं तो वे भूरे रंग में बदल जाती हैं और मर जाती हैं. फल पर धब्बे भी भूरे से काले और थोड़े धँसे होते हैं.
पत्तियों के नीचे से बीजाणु हवा और हवा से चलने वाली बारिश में फैलते हैं. बाजारों में फलों का व्यापार करने पर लंबी दूरी का प्रसार होता है.
पेड़ होते हैं बीमार
आमतौर पर,पहले यह बीमारी एक छोटी सी समस्या थी, लेकिन इस साल वातावरण में भारी परिवर्तन की वजह से जो बीमारियां पहले छोटी समस्या थी, आज बड़ी समस्या बनकर हमारे सामने है. बहुत अधिक धब्बेदार पत्तियों के परिणामस्वरूप व्यापक पत्ती गिरती है. यदि ऐसा होता है, तो पेड़ों की वृद्धि प्रभावित होती है, और स्वस्थ पेड़ों की तुलना में फलों की पैदावार कम होती है. युवा फलों के संक्रमण के कारण भी वे गिर जाते हैं, और परिपक्व फलों पर संक्रमण उनके बाजार की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं. मौसम में आद्रता इस बिमारी को कई गुना ज्यादा कर देता है.
जांच और निरीक्षण
फलों पर और पत्तियों के नीचे की तरफ काले धब्बों की तलाश करें जहाँ बीजाणु उत्पन्न होते हैं; शीर्ष सतह पर धब्बे हल्के भूरे रंग के हाशिये के साथ होते हैं, और रंग में फीके पड़ जाते हैं. ज्यादातर पुरानी पत्तियों पर धब्बे देखें जाते है. अत्यधिक धब्बे होने पर पत्तियां सूख जाती हैं या जल्दी मर जाती हैं. नीचे से पत्तियों पर धब्बे आसानी से देखे हा सकते है .
पपीता के काला धब्बा रोग का प्रबंधन
इस रोग के प्रबन्धन के लिए आवश्यक है कि सर्वप्रथम इसे विभिन्न शष्य विधियों द्वारा नियंत्रित किया जाय. संक्रमित पत्तियों और फलों को तुरंत हटा दें जैसे ही वे दिखाई देते हैं, उन्हें खेत से बाहर निकालें और उन्हें जला दें.
रासायनिक नियंत्रण
इस रोग को कॉपर आक्सी क्लोराइड(copper oxy chloride), मैन्कोजेब या क्लोरोथालोनिल (Mancozeb or Chlorothalonil) @2 ग्राम/लीटर पानी में घोलकर छिड़काव का उपयोग करके आसानी से प्रबन्धित किया जा सकता है. सुनिश्चित करें कि पत्तियों के नीचे के हिस्से तक छिड़काव किया जाय, क्योंकि यह वह जगह है जहां बीजाणु पैदा होते हैं. इस बीमारी को प्रबन्धित करने के लिए टेबुकोनाज़ोल (tebuconazole)@ 1.5 मीली/लीटर का प्रयोग भी किया जा सकता है.
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