भारत की पहली महिला डॉक्टर, टीचर, ट्रेन ड्राइवर कौन थी और उनकी यात्रा कैसी रही 

महिला दिवस मनाए जाने का सिलसिला रूसी क्रांति से करीब एक दशक पहले 1908 ही में शुरू हो गया था. जब अमेरिकी शहर न्यूयॉर्क में 15 हजार महिलाओं ने एक रैली निकालकर नौकरी के घंटे कम करने, काम के हिसाब से वेतन और मतदान के अधिकार पर अपना दावा ठोका. भारत में भी महिलाओं ने समय के साथ अपने-अपने मकाम हासिल किए.

Women’s Day 2025: हर साल 8 मार्च की तारीख इंटरनेशनल विमेंस डे यानी अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के तौर पर मनाया जाता है. महिलाओं ने लंबे आंदोलनों के बाद वोटिंग से लेकर प्रजनन तक के बुनियादी अधिकार हासिल किए हैं. 8 मार्च इन्हीं अधिकारों को मनाने का दिन है. रूसी क्रांतिकारी और राजनेता व्लादिमीर लेनिन ने इस दिन को आधुनिय छुट्टी का दिन घोषित किया था. इसके पीछे का मकसद रूसी क्रांति में महिलाओं के योगदान को सम्मान देना था.हालांकि, महिला दिवस मनाए जाने का सिलसिला रूसी क्रांति से करीब एक दशक पहले 1908 ही में शुरू हो गया था. जब अमेरिकी शहर न्यूयॉर्क में 15 हजार महिलाओं ने एक रैली निकालकर नौकरी के घंटे कम करने, काम के हिसाब से वेतन और मतदान के अधिकार पर अपना दावा ठोका. भारत में भी महिलाओं ने समय के साथ अपने-अपने मकाम हासिल किए. इस स्टोरी में हम आपको बताएंगे कि भारत की पहली महिला डॉक्टर, टीचर, ट्रेन ड्राइवर कौन थी और उनकी यात्रा कैसी रही थी.

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1. आनंदी गोपाल जोशी – आनंदीबाई गोपालरॉव जोशी पश्चिम चिकित्सा की समझ रखने वाली पहली भारतीय महिला डॉक्टर थीं. ब्रिटिश भारत के बॉम्बे प्रांत की वह पहली ऐसी महिला थीं जिन्होंने अमेरिका जाकर पश्चिमी चिकित्सा विज्ञान में दक्षता हासिल की. एक मराठी चितपावन ब्राह्मण परिवार में जन्मीं आनंदी नौ भाई-बहनों में पांचवे नंबर पर थीं. उनका बचपन का नाम यमुना था. मां की दबाव की वजह से यमुना की शादी महज नौ साल में कर दी गई. जिस पुरुष से उनकी शादी हुई, वह उम्र में उनसे बीस बरस बड़ा था. शादी के बाद यमुना के पति ने उनका नाम आनंदी रखा. आनंदी के पति गोपालरॉव जोशी प्रगतिशील विचारक थे और महिलाओं के शिक्षा के हिमायती थे. उन्होंने अपनी पत्नी को पढ़ने के लिए प्रेरित किया. वे पढ़ने के लिए अमेरिका गईं. 1886 में डॉक्टर बनकर भारत लौटीं लेकिन अगले बरस टीबी ने उनकी जान ले ली.

2. सावित्रीबाई फुले – एक समाज सुधारक, कवयित्री और उससे भी आगे बढ़ समाज खासकर महिलाओं को शिक्षा के लिए प्रेरणा देने वाली सावित्रीबाई फुले का ताल्लुक ब्रिटिश भारत के बॉम्बे प्रेसिडेंसी से था. अपने पति ज्योतिबा फुले के साथ उन्होंने महाराष्ट्र में महिला अधिकारों के लिए काफी काम किया. सावित्रीबाई को भारत में महिलावादी आंदोलन की जननी के तौर पर देखा जाता है. जाति और लिंग के आधार पर लोगों के साथ होने वाले भेदभाव और छुआछूत के खिलाफ सावित्रीबाई फुले ने आवाज उठाई. बतौर पहली महिला शिक्षक अपने पति के साथ मिलकर सावित्रीबाई ने भारत में महिला शिक्षा के क्षेत्र में काफी काम किया. 1848 में आज के महाराष्ट्र के पुणे शहर में उन्होंने लड़कियों की तालीम के लिए स्कूल खोला. इस विद्यालय को पुणे के तात्यासाहेब भिड़े के घर पर खोला गया था. इसने महिला शिक्षा के क्षेत्र में काफी काम किया.

3. सुरेखा यादव – सुरेखा शंकर यादव उर्फ ​​सुरेखा रामचंद्र भोसले भारत की पहली महिला ट्रेन ड्राइवर साल 1988 में बनी थीं. आज की तारीख में वे भारत की सबसे वरिष्ठ महिला लोकोपायलट – ट्रेन ड्राइवर हैं. रेखा यादव के नाम और भी कई उपलब्धियां दर्ज हैं. साल 200 की बात है. बतौर रेल मंत्री ममता बनर्जी ने अप्रैल के महीने में जब देश के चार मेट्रो शहरों में लेडीज स्पेशल ट्रेन चलवाया तो ऐसी पहली ट्रेन को चलाने वाली सुरेखा यादव ही थीं. 2010 तक वह उप-नगरीय लोकल ट्रेन ड्राइवर थीं. फिर 2010 में इनका प्रमोशन हुआ. सुरेखा यादव इस साल सीनियर लोको पायलट बनीं. उनके करियर में एक ऊंचा मकाम साल 2011 के 8 मार्च को आया. इस अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को वे पुणे से मुंबई के बीच चलने वाली डेक्कन क्वीन ट्रेन को टलाने वाली पहली महिला ड्राइवर बनीं.

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