अलग रहने वाली पत्‍नी अगर आत्‍महत्‍या कर तो, पति पर उकसाने का केस नहीं बनता : हाइकोर्ट

प्रयागराज. इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने एक पति‍ काे पत्‍नी की आत्‍महत्‍या के मामले में राहत देते हुए कहा क‍ि सिर्फ प्रताड़ना भर से आत्महत्या के लिए उकसाने का केस नहीं बनता है.

आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में जब तक उकसावे के लिए ऐक्टिव रोल साब‍ित न हो तब तक सिर्फ प्रताड़ना के आधार पर आत्महत्या के लिए उकसाने का केस नहीं बनता. हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह अपनी पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में एक पति के खिलाफ न‍िचली अदालत में दोषी ठहराने के आदेश को रद्द करते हुए कहा कि पत्नी को अपने जीवन से अलग करना उकसाने की श्रेणी में आने वाला एक कारण नहीं हो सकता है.

न्यायमूर्ति अजय त्यागी की पीठ के समक्ष जगवीर सिंह उर्फ​ बंटू ने एक अपील दायर कर अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, पीलीभीत के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए और 306 के तहत दोषी ठहराया गया था. 14 दिसंबर, 2008 को शिकायतकर्ता ने थाना-जहानाबाद, जिला-पीलीभीत में एक लिखित रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी, जिसमें कहा गया कि उसकी पोती की हत्या हुई है. उसने बताया कि उसकी पोती की शादी जगवीर सिंह (अपीलकर्ता) से हुई थी. यह स्पष्ट था कि उसे जहर दिया गया है.

अभियोजन का मामला यह है कि अपीलकर्ता और उसके माता-पिता मृतक की शादी में दिए गए दहेज से संतुष्ट नहीं थे और वे अतिरिक्त दहेज की मांग कर रहे थे. जिसे पूरा न करने पर मृतक को प्रताड़ित किया गया था. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि आईपीसी की धारा-306 के प्रावधान के मुताबिक आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में आरोपी के खिलाफ उकसाने के मामले में ऐक्टिव रोल होना चाहिए. या फिर उसकी ऐसी हरकत होनी चाहिए जिससे कि जाहिर हो कि उसने आत्महत्या के लिए सहूलियत प्रदान की है.

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