कटघोरा वनमंडल के जटगा परिक्षेत्र अंतर्गत सुतर्रा व लखनपुर मुख्यमार्ग से लगे वनभूमि पर अवैध कब्जा कर बेशकीमती जमीन हड़पने की लगी होड़..वेब पोर्टल का संपादक बन तथाकथित एक पत्रकार द्वारा भी वन अधिकारियों के नाक नीचे अवैध कब्जा में निर्माण कार्य को दिया जा रहा अंजाम

कोरबा 16 सितम्बर (वेदांत समाचार)। कटघोरा वनमंडल में अधिकारियों- कर्मचारियों के सुस्त कार्य रवैये एवं निष्क्रियता के कारण सुतर्रा मसाती ग्राम के मुख्यमार्ग किनारे स्थित बेशकीमती वनभूमि में एक बड़े रकबे पर अवैध कब्जा करने की होड़ मची हुई है। जहां मसाती ग्राम पंचायत का फायदा उठाते हुए भू माफिया सक्रिय होकर अपने मंसूबे को अंजाम देने में लगे हुए है। जिसमे एक वेब पोर्टल संपादक बनाम तथाकथित पत्रकार के द्वारा भी वन अधिकारियों को पत्रकार होने का धौंस बताकर लंबे- चौड़े जमीन पर कब्जा कर बाउंड्रीवाल का निर्माण करा लिया गया है, तथा उस बाउंड्रीवाल के भीतर अन्य निर्माण कार्य भी द्रुतगति से कराया जा रहा है।

ज्ञात है की एक ओर जहां कटघोरा वनमंडल द्वारा लगातार अतिक्रमण हटाने की कवायद चल रही है। वहीं दूसरी ओर जटगा परिक्षेत्र अंतर्गत ग्राम पंचायत सुतर्रा मुख्यमार्ग से लगे वनभूमि में बड़े पैमाने पर अवैध कब्जा का मामला सामने आया है। जिसमे निर्माण कार्य कराया जाना भी शुरू हो चुका है। जिस ओर वन अधिकारी- कर्मचारियों का ध्यान नही है। वहीं अपने आप को एक वेब पोर्टल का संपादक बताने वाला तथाकथित पत्रकार राहुल डिक्सेना नामक व्यक्ति द्वारा भी पत्रकारिता का धौंस बताकर वनभूमि के एक काफी बड़े रकबे पर अतिक्रमण कर लिया गया है व जिसमें धडल्ले से अहाता का निर्माण कराकर अन्य कार्य भी कराया जा रहा है।

जिस अवैध कब्जा व निर्माण पर तत्कालीन रेंजर द्वारा सख्ती से रोक लगा दिया गया था, किंतु चंद महीने बाद तथाकथित पत्रकार द्वारा निर्माण कार्य पुनः प्रारंभ करा दिया गया है। जिसे लेकर वर्तमान रेंजर द्वारा अबतक कोई कार्यवाही नही किया जा सका है। सूत्रों द्वारा बताया जाता है कि वन विभाग के अधिकारियों- कर्मचारियों को तथाकथित पत्रकार राहुल डिक्सेना के द्वारा पत्रकार होने का भय दिखाकर उक्त अतिक्रमण कर निर्माणा कार्य कराया जा रहा है। जटगा वन परिक्षेत्र अंतर्गत हो रहे अवैध अतिक्रमण मामले पर रोक लगाने की दिशा में कटघोरा वनमंडल कड़ाई के साथ एक्टिव मोड़ में आने की जरूरत है। जहां वन अधिनियम में लागू कड़े कानून के तहत आवश्यक एवं सही कार्यवाही से वनभूमि पर अवैध कब्जाधारियों के छक्के छूट जाएंगे।

जानकारी के अनुसार वन अधिनियम 1927 के तहत अतिक्रमण के संबंध में आरक्षित वन धारा 26(1) ज ,धारा 26(2) च ,संरक्षित वन धारा 33(1)क. ग. अतिक्रमण बेदखली की धारा 80(अ) आरक्षित संरक्षित वन दोनों के लिए भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 80(अ) की आरक्षित या संरक्षित वन के रूप में गठित भूमि का अप्राधिकृत रूप से कब्ज़ा करना पर शास्ति धारा 20 या, धारा 29 के अधीन यथास्थिति आरक्षित या संरक्षित वन के रूप में गठित छेत्रों में किसी भूमि के कब्जे को व्यक्ति जो अप्राधिकृत रूप से ग्रहण करता है या कब्जा करता है तो उक्त अधिनियम के अधीन की जा सकने वाली किसी अन्य कार्यवाही पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना डिवीजन फारेस्ट ऑफिसर की श्रेणी के अग्रिम श्रेणी के वन अधिकारी के आदेश द्वारा, सक्षिप्त रूप से बेदखल निष्काषित किया जा सकता है,

और कोई फसल जो ऐसे भूमि पर खड़ी हो या कोई भवन या अन्य निर्माण कार्य जो कि अपने उस पर संरचना की हो यदि ऐसे समयावधिक के भीतर जैसे किये जाने के दायित्व होना है, परन्तु यह उपधारा के अधीन बेदखली (निष्कासन) का आदेश तब तक नही दिया जा सकता, जबतक पूर्व भूमि को उनके मूल भूमि के लोगों के लिए समस्त आवश्यक कार्य की कीमत खर्च की धारा 82 में, उपबंधितरीति से ऐसे व्यक्ति से वसूली योग्य हों। इस प्रकार भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 80 ए, के अवलोकन से बिल्कुल स्पष्ट है कि वनभूमि पर अवैध कब्ज़े को हटाने व अन्य कार्यवाही, अभियोजन की कार्यवाही के समांतर की जा सकती है। उक्त धारा के अंतर्गत अधीन की जाने वाली कोई कार्यवाही बाधा नही है तथा वन अधिनियम में वनसंरक्षण की अधिनियमों के अधिहरण है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि ख़बर प्रकाशन के बाद क्या विभागीय अधिकारी इस ओर संज्ञान लेकर सख्ती से कार्यवाही करते है या फिर पुराने ढर्रे की तरह कार्यवाही के नाम पर खानापूर्ति कर अपने कर्तव्यों की इश्रीति कर लेते है..? यदि संबंधित अधिकारियों द्वारा गंभीरता से अतिक्रमण हटाने के साथ वन अधिनियम की कार्यवाही किया जाता है तो वह निष्पक्ष कार्यवाही होगी, अथवा मिलीभगत की ओर प्रदर्शित करेगा।

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