आज ही के दिन हुई थी World war 2 की शुरुआत, जानिए कैसे भारतीय सैनिकों की वजह से जीता था अंग्रेजों ने युद्ध

1 सितंबर 1939 से द्वितीय विश्‍व युद्ध की शुरुआत हुई थी. जर्मनी की सेनाएं जब पोलैंड में दाखिल हुईं तो फ्रांस और ब्रिटेन ने जर्मनी पर युद्ध का ऐलान कर दिया. इस युद्ध के शुरू होने के साथ और उससे पहले दुनिया के अलग-अलग हिस्‍सों में जंग के हालात थे. एशिया और यूरोप कई वजहों से जंग लड़ रहे थे. द्वितीय विश्‍व युद्ध इतिहास की वो घटना है जिसमें दुनिया ने एक बार फिर भारतीय सैनिकों की बहादुरी का लोहा माना था. प्रथम विश्‍व युद्ध की ही तरह इस युद्ध में भी भारत के सैनिकों ने ब्रिटेन की सेना के साथ मिलकर हिस्‍सा लिया था. आइए आपको भारतीय सैनिकों की वीरता के बारे में बताते हैं.

भारत के 25 लाख सैनिक थे शामिल

सेकेंड वर्ल्‍ड वॉर में करीब 2.5 मिलियन यानी 25 लाख भारतीय सैनिक शामिल हुए थे. ये वही युद्ध था जिसमें इंडियन आर्मी के पहले फील्‍ड मार्शल, सैम मॉनेक शॉ ने भी हिस्‍सा लिया था. युद्ध की शुरुआत के समय ब्रिटिश इंडियन आर्मी के दो लाख सैनिक शामिल थे. मगर सन् 1945 में जब युद्ध खत्‍म हुआ तो सैनिकों की संख्‍या ढाई लाख हो गई थी. गौरतलब है कि प्रथम विश्‍व युद्ध में भी 15 लाख भारतीय सैनिक शामिल थे. सेकेंड वर्ल्‍ड वॉर में ब्रिटेन ने सबसे बड़ी सेना तैयार कर ली थी जिसमें भारत के कई सैनिक शामिल थे.

87,000 भारतीय सैनिक शहीद

इस युद्ध में हर भारतीय सैनिक पूरी ताकत से लड़ा था और आज भी वो सैनिक कई वर्तमान सैनिकों के लिए प्रेरणा स्‍त्रोत हैं. भारतीय सैनिकों की हिम्‍मत को ईस्‍टर्न और नॉर्दन अफ्रीका के अलावा इटली, बर्मा और यहां तक कि सिंगापुर, मलय प्रायद्वीप, गुआम और इंडो चीन के शासकों ने भी सलाम किया था. न सिर्फ आर्मी बल्कि एयरफोर्स के सैनिकों का योगदान भी अनमोल था. ईस्‍ट में भारतीय सैनिक ब्रिटिश इंडियन आर्मी के साथ जापान के खिलाफ लड़ रहे थे तो दूसरे छोर पर सिंगापुर से लेकर बर्मा के साथ भी जंग जारी थी. उस युद्ध में 87,000 भारतीय सैनिकों ने अपनी जान गंवा दी थी. वहीं 30 लाग आम नागरिक युद्ध में मारे गए थे.

ब्रिटेन ने भी माना भारतीयों का लोहा

भारत के कमांडर-इन-चीफ फील्‍ड मार्शल सर क्‍लाउड आउशनिलेक ने भी यह बात जोर देकर कही थी कि अगर भारतीय सेना का साथ ब्रिटेन को न मिलता तो वो प्रथम और द्वितीय विश्‍व युद्ध को कभी जीत नहीं सकते थे. युद्ध के दौरान ब्रिटिश सेना में सम्मलित भारतीय सैनिकों ने 17 विक्टोरिया क्रॉस को प्राप्त कर लिया था, जो अंग्रेजों के तहत सबसे उच्चतम सैन्य सम्मान था. इस युद्ध ने देश की आजादी की लड़ाई पर भी बड़ा असर डाला था. कहते हैं कि द्वितीय विश्‍व युद्ध के खत्‍म होते-होते ब्रिटिश साम्राज्य के कब्‍जों को बनाए रखने में असमर्थ और अनिच्छुक ब्रिटेन की संपत्ति भी खत्‍म हो गई थी.

आजादी की लड़ाई तेज

इस युद्ध के दौरान ही सुभाष चंद्र बोस ने भारत से अंग्रेजों को खदेड़ने के लिए, एक सैन्य अभियान शुरू करने के मकसद से भारतीय स्‍वतंत्रता सेनानियों और दक्षिण पूर्व एशिया में जापान के युद्धबंदियों को शामिल करने वाली एक महत्वपूर्ण प्रतिबद्ध सैन्य सेना के रूप में आईएनए का गठन किया और उसमें वह सफल भी हुए. भारतीय सैनिकों की मदद से आईएनए और जापानी सेना उत्तर पूर्व में इंफाल और कोहिमा में ब्रिटिश सेना को रोकने में सफल रही थी.

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