भगत सिंह कोश्यारी का राहुल गाँधी पर तंज, कहा- उन्हें मेरी टोपी के काले रंग में ज्यादा दिलचस्पी

नई दिल्ली 29 अगस्त (वेदांत समाचार) : महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने राहुल गांधी की ओर से उनकी काली टोपी पर उठाए गए सवाल का जवाब दिया है. कोश्यारी ने कहा कि वे जरूर RSS से हैं लेकिन उनकी काली टोपी उत्तराखंड की संस्कृति से जुड़ी हुई है.

‘दिल्ली में किया पुस्तक का विमोचन

‘राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने शनिवार को दिल्ली को कांस्टीट्यूशन क्लब में अपनी पुस्तक ‘भारतीय संसद में भगत सिंह कोश्यारी’ का विमोचन किया. केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल, अश्विनी कुमार चौबे और बीजेपी के वरिष्ठ नेता श्याम जाजू भी उनके साथ मौजूद रहे.

राहुल बोले- RSS की है काली टोपी

कोश्यारी ने कहा कि बहुत से लोग उनकी काली टोपी को देखकर वैसी ही प्रतिक्रिया देते हैं, जैसे एक बैल लाल कपड़ा दिखाने पर करता है. उन्होंने कहा, ‘जब मैं बीजेपी सांसद था, तब राहुल गांधी ने मुझसे पूछा कि आप काली टोपी क्यों पहनते हैं? मैंने उनसे कहा कि लोग इसे उत्तराखंड में पहनते हैं. वह कहते हैं, नहीं- नहीं, आप RSS से हैं, इसलिए पहनते हैं. मैंने कहा कि मैं RSS से हूं लेकिन टोपी उत्तराखंड की है. RSS की स्थापना से पहले से लोग इसे वहां पहनते आए हैं.’

सावरकर को RSS से जुड़ा बताया

भगत सिंह कोश्यारी के मुताबिक, ‘कुछ महीने बाद राहुल गांधी ने फिर से उनकी टोपी के बारे में पूछा. कहा कि यह RSS की टोपी है. मैंने उनसे कहा कि यह आरएसएस की टोपी नहीं है. इसके बारे में मैं पहले भी बता चुका हूं लेकिन उन्होंने इस बात को मानने से इनकार कर दिया. फिर मैंने उनसे पूछा कि क्या आपने आरएसएस के बारे में कुछ पढ़ा है? उन्होंने कहा, हां- हां, मैंने सावरकर के बारे में पढ़ा है.’

ऐसे नेता होंगे तो संसद में हंगामा होता रहेगा

कोश्यारी ने कहा कि हालांकि सावरकर हिंदुत्व के विचारक थे, लेकिन वे कभी भी आरएसएस में नहीं रहे. इससे राहुल गांधी के ज्ञान का पता चलता है. उन्होंने कार्यक्रम में मौजूद केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल से कहा कि जब राहुल जैसे लोग अपनी पार्टी का नेतृत्व करेंगे, आपको इस हंगामे के लिए तैयार रहना होगा.

जयराम रमेश कांग्रेस में बेहतर नेता

राहुल गांधी पर तंज कसने के बाद राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने कांग्रेस नेता और पूर्ण पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश की तारीफ की. कोश्यारी ने याद किया कि पर्यावरण पर एक संसदीय चर्चा के दौरान तत्कालीन पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने उन्हें बोलने के लिए स्पीकर से और समय देने का आग्रह किया था. जब अध्यक्ष ने अनुरोध को अस्वीकार कर दिया तो रमेश उनके पास आए और कहा कि वह निर्धारित दिन के बजाय अगले दिन बहस का जवाब देंगे.

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