सेल डीएनए हर जगह पाया जाता है। यह हवा में भी मौजूद होता है, इसी कारण कई लोगों को पराग या बिल्ली के बालों की रूसी से एलर्जी होती है। हाल ही में दो शोध समूहों ने अलग-अलग काम करते हुए बताया है कि वातावरण में कई जीवों का डीएनए पाया जाता है जो आसपास के क्षेत्रों में उनकी उपस्थिति का पता लगाने में काम आ सकता है।
टेक्सास टेक युनिवर्सिटी के इकॉलॉजिस्ट मैथ्यू बार्नेस इस अध्ययन को काफी महत्वपूर्ण मानते हैं जिससे हवा के नमूनों की मदद से पारिस्थितिकी तंत्र में कई प्रजातियों का पता लगाया जा सकता है। इसके लिए शोधकर्ता काफी समय से पानी में बिखरे डीएनए की मदद से ऐसे जीवों को खोजने का प्रयास कर रहे थे जो आसानी से नज़र नहीं आते। झीलों, नदियों और तटीय क्षेत्रों से प्राप्त पर्यावरणीय डीएनए (ई-डीएनए) से प्राप्त नमूनों से शोधकर्ताओं को लायनफिश के साथ-साथ ग्रेट क्रेस्टेड न्यूट जैसे दुर्लभ जीवों का पता लगाने में भी मदद मिली। हाल ही में कुछ वैज्ञानिकों ने तो पत्तियों की सतह से प्राप्त ई-डीएनए से कीड़ों को ट्रैक किया और मृदा से प्राप्त ई-डीएनए से कई स्तनधारियों का भी पता लगाया।
अलबत्ता, हवा में उपस्थित ई-डीएनए पर कम अध्ययन हुए हैं। हालांकि, यह अभी स्पष्ट नहीं है कि जीव कितने ऊतक हवा में छितराते हैं और आनुवंशिक सामग्री कितने समय तक हवा में बनी रहती है। पूर्व के कुछ अध्ययनों में हवा में बहुतायत से पाए जाने वाले बैक्टीरिया और कवक सहित अन्य सूक्ष्मजीवों का पता लगाने के लिए मेटाजीनोमिक अनुक्रमण का उपयोग किया गया है। इस तकनीक में डीएनए के मिश्रण का विश्लेषण किया जाता है। इसके साथ ही 2015 में वाशिंगटन डीसी में लगाए गए एयर मॉनीटर्स में कई प्रकार के कशेरुकी और आर्थोपोडा जंतुओं के ई-डीएनए पाए गए थे। हालांकि इस तकनीक की उपयोगिता के बारे में अभी कुछ स्पष्ट नहीं था और न ही यह पता था कि स्थलीय जीवों द्वारा त्यागी कोशिकाएं हवा में कैसे बहती हैं।
इस वर्ष की शुरुआत में यॉर्क युनिवर्सिटी की मॉलिक्यूलर इकॉलॉजिस्ट एलिज़ाबेथ क्लेयर ने पीयर जे में बताया था कि प्रयोगशाला से लिए गए हवा के नमूनों में नेकेड मोल रैट का डीएनए पहचाना जा सकता है। लेकिन खुले क्षेत्रों में ई-डीएनए के उपयोग की संभावना का पता लगाने के लिए क्लेयर और उनके सहयोगियों ने चिड़ियाघर का रुख किया। मुख्य बात यह है कि चिड़ियाघर में प्रजातियां ज्ञात होती हैं और आसपास के क्षेत्रों में नहीं पार्इं जातीं। यहां टीम हवा में पाए जाने वाले डीएनए के रुाोत का पता कर सकती थी।
क्लेयर ने चिड़ियाघर की इमारतों के बाहर और अंदर से 72 नमूने एकत्रित किए। बहुत कम मात्रा में प्राप्त डीएनए को बड़ी मात्रा में प्राप्त करने के लिए पॉलिमरेज़ चेन रिएक्शन का उपयोग किया गया। ई-डीएनए को अनुक्रमित करने के बाद उन्होंने ज्ञात अनुक्रमों के एक डैटाबेस से इनका मिलान किया। टीम ने चिड़ियाघर, उसके नज़दीक और आसपास की 17 प्रजातियों (जैसे हेजहॉग और हिरण) की पहचान की। चिड़ियाघर के कुछ जीवों के ई-डीएनए उनके बाड़ों से लगभग 300 मीटर दूर पाए गए। उन्हें चिड़ियाघर के जीवों को खिलाए जाने वाले चिकन, सूअर, गाय और घोड़े के मांस के ई-डीएनए भी प्राप्त हुए हैं। टीम ने कुल 25 स्तनधारियों और पक्षियों की पहचान की है। इसी प्रकार का एक अध्ययन डेनमार्क के शोधकर्ताओं ने कोपेनहेगन चिड़ियाघर में भी किया। यहां कुल 49 प्रजातियों के कशेरुकी जीवों की पहचान की गई।
कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि इन वायुवाहित डीएनए की मदद से उन जीवों का पता लगाया जा सकता है जिनको खोज पाना काफी मुश्किल होता है। ये जीव मुख्य रूप से शुष्क वातावरण, गड्ढों या गुफाओं में रहते हैं या फिर पक्षियों जैसे ऐसे वन्यजीव जो कैमरों की नज़र से बच निकलते हैं।
हालांकि, इस प्रकार से वायुवाहित डीएनए से जीवों की उपस्थिति का पता लगाना अभी भी पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि ये ई-डीएनए हवा में कितनी दूरी तक यात्रा कर सकते हैं। यानी डैटा के आधार पर किसी जीव की हालिया स्थिति बताना मुश्किल है। डीएनए बहकर कितनी दूर जाएगा यह कई कारकों पर निर्भर करता है। जैसे ई-डीएनए जंगल की तुलना में घास के मैदानों में ज़्यादा दूरी तक फैल सकता है। इसमें एक मुख्य सवाल यह भी है कि वास्तव में जीव डीएनए का त्याग कैसे करते हैं। संभावना है कि वे अपनी त्वचा को खरोंचने, रगड़ने, छींकने या लड़ाई जैसी गतिविधियों के दौरान त्यागते होंगे। इसके अलावा ई-डीएनए अध्ययन में नमूनों को संदूषण से बचाना भी काफी महत्वपूर्ण होता है।
लेकिन इन अज्ञात पहलुओं के बावजूद बार्नेस को इस अध्ययन से काफी उम्मीदें हैं। आने वाले समय में इस तकनीक की मदद से वैज्ञानिक हवा के नमूनों से कीटों की पहचान करने का भी प्रयास करेंगे।
-स्रोत फीचर्स
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