कोरबा/कटघोरा 16 अगस्त (वेदांत समाचार) वनमंडल कटघोरा अपने अधिकारी, कर्मियों, बाबू की कार्यशैली, विधानसभा में गलत जानकारी देने, स्टापडेमों का घटिया निर्माण, मानक के विपरीत गुणवत्ताहीन और नान ट्रेड सीमेंट की आपूर्ति व जंगल के पत्थर, रेत का उपयोग कर निर्माण कार्य कराने तथा वर्तमान कॉन्ट्रेक्टर, सप्लायरों का लंबित भुगतान को लेकर जमकर सुर्खियां बटोरता चला आ रहा है, और जिसे लेकर सरकार की भी खासी किरकिरी हुई है। वहीं अब अपना काम करने के बाद कॉन्ट्रेक्टर, सप्लायरों को रुपए के लिए हाईकोर्ट की शरण लेना, और तो और अंततः आमरण- अनशन का फैसला लेना अड़ियल अधिकारी के लाल फीताशाही को भी दर्शाता है। जिस लंबित भुगतान मामले की शिकायत कटघोरा पहुँचे जिले के प्रभारी मंत्री से होने पश्चात एक जनप्रतिनिधि द्वारा डीएफओ की कार्यशैली पर सवाल उठाया जाता है तो साथ के दूसरे जनप्रतिनिधि द्वारा उनके बचाव पक्ष में जल्द भुगतान के लिए आश्वास्त किया जाता है। आखिर चर्चित व विवादित डीएफओ को छूट पर छूट क्यों मिलता आ रहा है..?
ज्ञात हो कि कटघोरा वनमंडल में एक हाथी के मौत मामले पर डीएफओ डी.डी. संत हटाये गए थे। जहां उनकी जगह आई वन एसडीओ शमा फारुखी को कटघोरा वनमंडल का प्रभारी डीएफओ बनाकर पदस्थ किया गया। तब इनके प्रभारी डीएफओ रहते हाथी के 2 बच्चों की मौत हो गई व एक तेंदुआ का भी शव मिला, लेकिन तब इन्हें क्लीन चिट दिया गया। तथा बतौर यही रहते हुए डीएफओ अवार्ड (उपकृत) भी किया गया। शमा को प्रदेश के बड़े वनमंडल में शामिल कटघोरा वनमंडल का प्रभार तो दे दिया गया किंतु अनुभव तो एसडीओ का ही था। और तब डीएफओ शमा के अनुभवहीन और लापरवाहीपूर्ण प्रबंधन के कारण वर्ष 2020 में इनके कार्यकाल में हाथी के 2 बच्चों की मौत और तेंदुआ का पंजा कटा हुआ शव मिलने के बाद भी अभयदान मिलना सोचनीय पहलू रहा कि एक हाथी के मौत पर कई अधिकारी निपटा दिए गए। लेकिन वहीं शमा पर कार्यवाही को लेकर वन मंत्रालय के हाथ खड़े हो गए और किसी की दाल नही गली। इस प्रकार जब डीएफओ फारुखी पर बात आई तो शीर्ष वन अफसर अपने पदीय दायित्व को भूल नतमस्तक हो। पर सिलसिला यहीं नही थमा बल्कि वन क्षेत्र में करोड़ो रूपये के आधे- अधूरे एवं गुणवत्ताहीन निर्माण कार्यों पर भी सवाल उठाए जाते रहे है एवं करोड़ो रूपये के भ्रष्ट्राचार की गूंज उर्जाधानी से लेकर राजधानी तक भी सुनाई पड़ती रही है, और तब भी कार्यवाही को लेकर शासन- प्रशासन खामोश रहे। यही कारण था कि कटघोरा वनमंडल में कार्यरत बाबू व अदने से आपरेटर के हौसले बढ़े और दोनों ने मिलकर रेंज अफसरों को निशाना बना जमकर लुटा। अब सवाल यह उठता है कि क्या शमा फारुखी के लिए सारे नियम- कायदे बदल जाते हैं..? क्या वन मंत्रालय व मंत्री को डीएफओ श्रीमती फारूकी के अनुभवहीन व लापरवाह प्रबंधन पर कोई ऐतराज नहीं दिखता..? निःसंदेह लापरवाही पर वन मंत्रालय ने कार्यवाही की है, लेकिन जब बात कटघोरा वनमंडल की आती है तो यहां की डीएफओ पर सारे नियम- कायदे, नाराजगी, सख्ती, विभागीय कार्यवाही आकर थम जाते हैं, सिर्फ इसलिए कि वे वनमंत्री की वरदहस्त हैं..! विधानसभा सत्र के दौरान सदन को भी गलत जानकारी देकर गुमराह करने के मामले में डीएफओ शमा पर किसी भी तरह की कोई कार्यवाही आज पर्यन्त तक देखने को नहीं मिल पायी।
इस वनमंडल के विभिन्न परिक्षेत्रों में महीनों पूर्व कराए गए अनेकों निर्माण कार्यों के लिए नियोजित सामाग्री भुगतान की राशि डीएफओ द्वारा लंबित रखे जाने के कारण बिगड़ते हालात से जूझते कॉन्ट्रेक्टर व सप्लायरों द्वारा थकहार कर बीते दिनों आमरण- अनशन का फैसला लिया गया किंतु बिलासपुर (शहर) विधायक शैलेश पांडेय के पहल पश्चात उक्त आंदोलन का फैसला फिलहाल के लिए स्थगित किया गया। किंतु जब जिले के प्रभारी मंत्री डॉ. प्रेमसाय टेकाम 14 अगस्त को कटघोरा पहुँचे तब उनको सप्लायरों ने अपने लंबित राशि की भुगतान कराए जाने मांग के साथ डीएफओ की शिकायत थमाया। जहां मौजूद लोगों द्वारा बताए गए अनुसार मौके पे उपस्थित कटघोरा विधायक पुरूषोत्तम कंवर द्वारा नाराजगी भरे लहजे में साफ और सीधे तौर पर कह दिया गया कि मैडम को यहां से हटाइये, इनके कारण पूरा विभाग परेशान है..! तभी प्रभारी मंत्री के सचिव ने डीएफओ से भीतरी चर्चा की और उनके लौटने के बाद पाली- तानाखार विधायक मोहित ने डीएफओ के बचाव पक्ष में प्रभारी मंत्री को आश्वस्त किया कि जल्द ही कॉन्ट्रेक्टर व सप्लायरों का भुगतान हो जाएगा। जिसके बाद मंत्री जी भी ठंडे पड़ गए। बता दें कि डीएफओ शमा को हर बार इसी तरह से छूट पर छूट मिलते आ रहा है जो गंभीर विषय बनकर रह गया है और जो शासन की लाचारी को बयां कर रही है।
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