कोरबा-कटघोरा । कटघोरा वन मंडल के अधिकारियों के द्वारा पहले तो अपने कारनामों को छिपाने के लिए झूठ का सहारा लिया गया और जब अपनी पर बन आई तो तरह-तरह से इस झूठ पर पर्दा डालने की कोशिशों में जुट गए। वन मंडल के अंतर्गत निर्मित कुछ स्टॉप डेम काफी सुर्खियों में रहे। कोरबा से लेकर राजधानी रायपुर तक यह स्टॉप डेम इस तरह गूंजते रहे कि आज तक उनकी आवाज सुनाई देना बंद नहीं हुई है। इनमें जटगा रेंज का स्टॉप डेम काफी चर्चित है। कटघोरा के मटेरियल सप्लायर के द्वारा जटगा स्टॉप डेम का निर्माण के लिए सामानों की आपूर्ति की गई थी लेकिन उसका भुगतान आज तक नहीं किया गया है। उसने भुगतान के लिए रेंजर, डीएफओ, सीसीएफ और क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों से गुहार लगाई है। जनप्रतिनिधि तो अपने निजी लाभ के लिए बड़े से बड़े भ्रष्ट कार्य को भी अनदेखा करते आ रहे हैं। यहां तक की एक आदिवासी वाला को उसके 4 माह का बकाया मेहनताना भी आदिवासी हितों की रक्षा करने का दम भरने वाले जनप्रतिनिधि नहीं दिला सके हैं। अधिकारियों को भी क्या गरज पड़ी है जब वह सरकारी धन का खासकर कैम्पा मद को अपने मनमाने तरीके से और चंद ठेकेदारों को लाभ देकर एवं कागजों में काम करा कर रुपए बटोरने में लगे हैं।
जटगा स्टॉप डेम के इस मटेरियल सप्लायर का पिछले 2 माह से आंशिक भुगतान के लिए डिमांड ड्राफ्ट जारी कर रख लिया गया है और इसे दिया नहीं जा रहा। सप्लायर को उसके विश्वसनीय सूत्रों ने बताया है कि इसके एवज में कमीशन की मांग की जा रही है जो 50% तक है। सप्लायर के अलावा एक अन्य ठेकेदार से भी कुछ इसी तरह की कमीशन की मांग हुई है जिसे देने से उसने इनकार कर दिया है। ठेकेदार ने साफ किया है कि उसकी इतनी आवक नहीं कि वह इतना मोटा कमीशन काम करने के बाद भी दे सके। कमीशन की वजह से इनके भुगतान रोक दिए गए हैं। सप्लायर ने बताया कि 2 माह से उसका डीडी काट कर रखा गया है लेकिन इस तरह से भुगतान रोकना अच्छा संदेश नहीं जाता। सप्लायर की मानें तो उक्त निर्माण कार्य में लगे सभी भुगतान लगभग 99% कर दिया गया है और मजदूरों को भी भुगतान किया गया है। एक ओर जहां विभाग अपना स्टॉप डेम होने से इंकार करता रहा तो आखिर मजदूरों को किस आधार पर भुगतान किया गया और जब मजदूरों को भुगतान हो चुका है तो मात्र मटेरियल सप्लायर का भुगतान रोका जाना द्वेषपूर्ण रवैया को इंगित करने के लिए काफी है।
यहां यह बताना भी जरूरी है कि डीएफओ के द्वारा यह प्रसारित कराया जा रहा है कि जब कार्य का वर्क आर्डर जारी नहीं हुआ है तो भला भुगतान कैसे करें। ठेकेदार वर्क आर्डर सहित बिल प्रस्तुत करें तो उनका भुगतान कर दिया जाएगा। यहां यह सवाल भी जायज है कि बिना वर्क आर्डर के आखिर स्टॉप डेम कैसे बन गए, जंगलों में काम कैसे हुआ और बिना वर्क आर्डर के काम हुआ तो सप्लायर ने मटेरियल क्यों और किस आधार पर आपूर्ति किया, बिना वर्क आर्डर हो रहे निर्माण पर संबंधित रेन्जर ने रोक क्यों नहीं लगाया, वन मंडल के अधिकारी खामोश क्यों रहे और उन्होंने बिना वर्क आर्डर निर्माण क्यों होने दिया? दरअसल यह सब मिलीभगत है जिसमें भारी-भरकम राशि का बंदरबांट कालांतर में किया गया है। उस बंदरबांट में रेन्जरों के हाथ भी गहरे तक फंसे हुए हैं जो अब निकाले नहीं निकल रहे।
बता दें कि वन विभाग ने उन कार्यों का भी भुगतान रोक रखा है जो कार्य उसके आदेश पर हुए हैं। पौधों का परिवहन कराए जाने के बाद भी लाखों रुपए का भुगतान रोक दिया गया है। कागजों में सारे काम हो गए और अब परिवहनकर्ता को भुगतान करने में पसीना छूट रहा है। संबंधित ने इस मामले में हाईकोर्ट की शरण ले ली है जहां अब वन विभाग के डीएफओ से लेकर रेन्जरों को जवाब देते नहीं बन रहा। हालांकि यह मामला न्यायालय में विचाराधीन है किंतु मटेरियल सप्लायर और ठेकेदारों के रोके गए भुगतान को लेकर डीएफओ का कहीं न कहीं बचाव करते हुए सीसीएफ ने अपने ऊपर जिम्मेदारी ले ली है। उन्होंने 12 अगस्त से सपरिवार आमरण अनशन पर बैठ रहे ठेकेदारों, मटेरियल सप्लायर और मजदूरों को आश्वासन दिया है कि जल्द ही वे उनका भुगतान कराएंगे। अब देखना है कि कटघोरा वन मंडल के हठधर्मी अधिकारियों के सामने सीसीएफ की चलती है या नहीं? वह ठेकेदारों, सप्लायर को उनका बकाया भुगतान कब तक करा पाएंगे और क्या बिना कमीशन के ठेकेदारों व सप्लायरों को राहत मिल पाएगी…?
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