एक समय देश में विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुकी बाघों की संख्या आज देश में तेजी से बढ़ रही है। बाघों को संरक्षण देने और उनकी प्रजाती को विलुप्त होने से बचाने के लिए विश्व बाघ दिवस मनाया जाता है। दुनियाभर में 29 जुलाई के दिन विश्व बाघ दिवस मनाया जाता है। बाघ भारत के राष्ट्रीय पशु है, इसके बावजूद भारत में साल 2010 में बाघ विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गए थे।
बता दें कि दुनियाभर के मात्र 13 देशों में ही बाघ पाए जाते हैं, वहीं इसके 70 प्रतिशत बाघ केवल भारत में हैं। साल 2010 में भारत में बाघों की संख्या 1 हजार 7 सौ के करीब पहुंच गई थी। इसके बाद लोगों में बाघों के प्रति जागरुकता फैलाने के लिए साल 2010 में रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में एक शिखर सम्मेलन का आयोजन किया गया। सम्मेलन में हर साल अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस मनाए जाने की घोषणा की गई। इस सम्मेलन में कई देशों ने 2022 तक बाघों की संख्या को दोगुना करने का लक्ष्य रखा है।
अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस के जरिए लोगों को बाघ के संरक्षण के प्रति जागरूक किया जाता है। इसके अलावा लोगों को पारिस्थितिक तंत्र में बाघों के महत्व को भी बताया जाता है। जिसका परिणाम यह है कि देश में तेजी से बाघों की संख्या बढ़ रही है। साल 2010 में की गई गणना के मुताबिक बाघों की संख्या 1706 थी, वहीं साल 2018 की गणना के अनुसार देशमें बाघों की संख्या बढ़कर 2967 हो गई है।
फिलहाल देशभर में बाघों की संख्या तेजी से बढ़ने के साथ ही उनके ऑक्युपेंसी एरिया भी बढ़ रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में केरल, उत्तराखंड, बिहार और मध्यप्रदेश में बाघों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। बता दें कि देशभर में बाघों की जनगणना हर चार साल में होती है, जिससे उनकी ग्रोथ रेट का पता लगाया जाता है। साल 1973 में देशभर में मात्र 9 टाइगर रिजर्व ही थे, जिसकी संख्या अब बढ़कर 51 हो गई है।
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