वेब सीरीज में नशे के प्रचार के खिलाफ याचिका,चैंबर ऑफ कॉमर्स पहुंचा हाईकोर्ट; केंद्र से 4 हफ्ते में जवाब तलब

बिलासपुर 26 जुलाई (वेदांत समाचार) । OTT (ओवर दी टॉप) प्लेटफॉर्म एक बार फिर विवादों में हैं। इस बार नशे के दृश्यों को लेकर बिलासपुर चैंबर ऑफ कॉमर्स ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। जनहित याचिका में कहा गया है कि वेब सीरीज में दिखाए जा रहे ड्रग्स, शराब और सिगरेट के भ्रामक प्रचार पर रोक लगाई जाए। सुनवाई के दौरान सोमवार को केंद्र सरकार की ओर से असिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल ने जवाब के लिए समय की मांग की। इस पर एक्टिंग चीफ जस्टिस प्रशांत मिश्रा व जस्टिस रजनी दुबे की बेंच ने 4 सप्ताह का समय दिया है।

चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष राम अवतार अग्रवाल ने अधिवक्ता अंकित सिंघल के माध्यम से जनहित याचिका दायर की है। इसमें बताया है कि वे ऐसे दृश्य को दिखाए जाने पर रोक लगाने की मांग को लेकर दो बार आवेदन प्रस्तुत कर चुके हैं, पर कार्रवाई नहीं हुई। इसका प्रभाव युवाओं पर पड़ रहा है। OTT प्लेटफॉर्म पर चल रही विभिन्न वेब सीरीज में नशे का जमकर प्रचार किया जा रहा है। वहीं टेलीविजन पर शराब कंपनियां दूसरे प्रोडक्ट के नाम पर प्रचार कर रही हैं, जबकि ऐसे उत्पाद खोजने पर भी नहीं मिलते।

केंद्र की ओर से ड्रग्स पर रोक, पर मीडिया में हो रहा प्रचार

याचिका में कहा गया कि एक तरफ केंद्र सरकार ने ड्रग्स के बेचने और सेवन करने पर रोक लगा रखी है। शराब के विज्ञापन पर भी रोक है। वहीं दूसरी ओर मीडिया के विभिन्न माध्यमों में ड्रग्स और शराब का सेवन करते हुए धड़ल्ले से दिखाया जा रहा है। इन चीजों काे महिमा मंडित किया जा रहा है, जो केंद्र सरकार के नियमों का खुला उल्लंघन है। याचिका में केंद्र सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय, गृह मंत्रालय और सेंट्रल बोर्ड फिल्म सर्टिफिकेशन को पक्षकार बनाया गया है।

नशीली चीजों की बिक्री में 15% का इजाफा हुआ

याचिका में कहा गया कि भ्रामक प्रचार और दृश्यों से प्रेरित होकर युवा पीढ़ी नशे का सेवन कर रही है। नशे का प्रचलन लड़के और लड़कियों में तेजी से बढ़ा है। पिछले वर्ष इन नशीली चीजों के बिक्री में 15% का इजाफा हुआ है। देश में अपराध बढ़ने का प्रमुख कारण भी यही है। अगर इस पर रोक नहीं लगी तो आने वाले समय में नई पीढ़ी अत्यधिक नशे से पीड़ित होगी व समाज पर बुरा असर पड़ेगा। मामले की गंभीरता को देखते हुए हाईकोर्ट ने सभी पक्षकारों को नोटिस जारी कर 4 सप्ताह में जवाब मांगा है।

विज्ञापन रोकने का कानून है

याचिका में कहा गया कि केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम 1995 में इस तरह के विज्ञापन पर रोक लगाने का प्रावधान है। साथ ही केंद्र सरकार ने संसद में सरोगेट विज्ञापन (निषेध) अधिनियम 2016 को प्रस्तुत किया है का हवाला देते हुए कहा गया है कि इस तरह के भ्रामक विज्ञापनों पर रोक लगाई जानी चाहिए। इसके अलावा भी विभिन्न नियमों का हवाला दिया गया है।

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