कोरबा जिलें की जीवनदायिनी संजीवनी 108 ही बीमार, भारी पड़ सकता है एम्बुलेंस का इंतज़ार

कोरबा 19 जुलाई (वेदांत समाचार) बीमार या दुर्घटनाग्रस्त लोगों को उपचार के लिए तुरंत अस्पताल पहुंचाने वाली संजीवनी 108 एंबुलेंस का हाल जिले में बहुत ही बुरा हो चुका है लगता है जो दूसरों को जो जीवनदायिनी संजीविनी अब खुद बीमार पड़ी है । जिसकी कोई सुध नही ले रहा है । इसी का नतीजा है जो अब कंडम में तब्दील हो चुका है।

सड़क दुर्घटना में घायल, गंभीर बीमारी से जूझ रहे मरीजों को आपात घढ़ी में अस्पताल पहुंचाने वाली संजीवनी 108 और महतारी 102 वाहनों अब खुद के इलाज को मोहताज हैं। खराब होकर जिला अस्पताल में पड़े कंडम वाहनों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। 11 संचालित संजीवनी 108 में दो खराब हो चुके हैं, जबकि पांच कंडम होने के कारण बंद होने के कगार पर हैं। यही दशा महतारी एक्सप्रेस की है, जिसमें आक्सीजन व आवश्यक दवाओं की कमी देखी जा रही है। आठ में से एक महतारी भी बंद हो चुकी है। ऐसे में त्वरित सुविधा उपलब्ध कराने वाले संसाधन अब मौत से जूझते लोगों को चिकत्सा सुविधा दिलाने में नाकाम साबित हो रहे हैं।

संजीवनी 108 और महतारी 112 अपने वास्तविक सेवा कार्य से अब दूर होते जा रही हैं। 108 सेवा के पांच एंबुलेंस आउट आफ सर्विस हो चुके हैं। जो चल रहे हैं उनमें भी अधिकांश एंबुलेंस बंद होने के कगार पर आ चुके हैं। साथ ही मरीजों की जान बचाने के लिए इन एंबुलेंस में तय 103 प्रकार के सामान में आधे से ज्यादा की सुविधा नहीं है। ऐसे में भला जीवन बचाने वाले 108 एंबुलेंस में किसी तरह की इमरजेंसी सेवा मिल रही होगी, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। संजीवनी एक्सप्रेस की ज्यादातर आवश्यकता सड़क दुर्घटना के दौरान होती है। गंभीर रूप से घायलों को सही समय पर इलाज नहीं मिलने से ऑन स्पॉट 30 प्रतिशत लोगों की मौत हो जाती है। वहीं 70 प्रतिशत लोगों की जान सही समय पर सही इलाज से बचाया जा सकता है। 108 एंबुलेंस की सेवा शुरू करते समय शासन का उद्देश्य भी यही था। इसलिए एंबुलेंस में पायलट के साथ ही इमरजेंसी मैनेजमेंट टेक्नीशियन की अनिवार्यता के साथ ही एंबुलेंस में जीवन रक्षा के लिए जरूरी उपकरण व दवाइयों की व्यवस्था की गई, लेकिन यहां ज्यादातर एंबुलेंस में यह सुविधाएं होती ही नहीं है। एंबुलेंस का ऐसा हाल है कि किसी में पोर्टेबल आक्सीजन की सुविधा नहीं है। किसी में जहर निकालने के लिए पोर्टेबल सेक्शन नहीं हार्ट अटैक की स्थिति में मरीजों की जान बचाने के लिए झटका देने के लिए मशीन भी नहीं है। मिर्गी के मरीज को बांधने के लिए एक्यूपमेंट भी नहीं है। स्टेट हेल्थ रिसोर्स सेंटर को हर तीन महीने के अंतराल में एंबुलेंस की जांच करनी होती है, लेकिन ऐसा नहीं किया जाता है। ऐसे में मरीजों की जान भगवान भरोसे ही रहती है। इस संबंध में मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी बीबी बोडे से उनके मोबाइल पर संपर्क किया गया लेकिन उनसे बात नहीं हो सकी।

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