नेशनल लोक अदालत में 10 हजार प्रकरणों का निराकरण, कोरोना काल के 1000 मामले शासन की पहल पर वापस

0 हाईकोर्ट की चार खंडपीठों में 2.39 करोड़ का मोटर दुर्घटना अवार्ड पारित
बिलासपुर11 जुलाई (वेदांत समाचार) । राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) नई दिल्ली के निर्देशानुसार 10 जुलाई को हाईब्रीड नेशनल लोक अदालत का आयोजन छत्तीसगढ़ राज्य में तालुका स्तर से लेकर उच्च न्यायालय स्तर तक सभी न्यायालयों में आयोजित कर राजीनामा योग्य प्रकरणों को पक्षकारों की आपसी सुलह समझौता से निराकृत किया गया। उक्त लोक अदालतों में प्रकरणों को पक्षकारों की भौतिक अथवा वर्चुअल उपस्थिति के माध्यम से निराकृत किये गये।


कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश, एवं छत्तीसगढ़ राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, बिलासपुर के कार्यपालक अध्यक्ष, न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा के निर्देशानुसार उक्त लोक अदालत के लिये प्रत्येक जिले में मजिस्ट्रेट की स्पेशल सीटिंग दी गई थी। छोटे-छोटे मामले पक्षकारों की स्वीकृति के आधार पर निराकृत किये गये। इसके अतिरिक्त विशेष प्रकरणों जैसे धारा 321 सीआरपीसी, 258 सीआरपीसी एवं मामूली अपराध के प्रकरणों तथा कोरोना काल में आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के अतर्गत दर्ज प्रकरणों का भी निराकरण किया गया। ऐसे मामले जो अभी न्यायालय में प्रस्तुत नहीं हुए हैं, उन्हें भी प्री-लिटिगेशन प्रकरणों के रूप में पक्षकारों की आपसी समझौते के आधार पर निराकृत किये गये।
समाचार प्राप्त होने तक कुल 10 हजार प्रकरणों का निराकरण किया जा चुका है, जिसमें लगभग एक हजार मामले कोरोना काल में उल्लंघन से संबंधित धारा 188 के हैं, जो शासन की पहल पर वापस लिये गये हैं।

इसके अलावा संध्या तक पक्षकारों की उपस्थित न्यायालय परिसर में प्रकरणों के निराकरण हेतु बनी हुई है, जिससे संभावना है कि और अधिक प्रकरणों का निराकरण होगा। इसी प्रकार छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के द्वारा उक्त नेशनल लोक अदालत में 4 खण्डपीठों के द्वारा कुल 123 प्रकरणों का निराकरण किया गया है, जिसमें मोटर दुर्घटना के 103 प्रकरणों का निराकरण करते हुए 2 करोड़ 39 लाख 90 हजार 840 रुपये का अवार्ड पारित किया गया है।
देश की पहली मोबाइल लोक अदालत, वैन के माध्यम से पक्षकारों तक पहुंची
न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा के निर्देशानुसार देश की पहली मोबाइल लोक अदालत को आयोजित करते हुए जिला विधिक सेवा प्राधिकरण रायपुर, दुर्ग, राजनांदगांव एवं महासमुंद में जिला न्यायालय में लंबित 7 प्रकरणों को मोबाइल लोक अदालत (वैन) के माध्यम से पक्षकारों के घर पहुंचकर प्रकरणों को आपसी सुलह समझौते के द्वारा निराकरण किया गया। इसके साथ दो प्रकरण दिव्यांग व्यक्तियों के हैं, जो जिला न्यायालय महासमुंद जिले के संबंधित थे। एक व्यक्ति जिला चिकित्सालय में भर्ती था। दो व्यक्ति बीमार होने के कारण तथा दो व्यक्ति वृद्ध होने के कारण न्यायालय में उपस्थित नहीं हो पा रहे थे।


दुर्ग न्यायालय में व्यवहार न्यायाधीश वर्ग एक जज हरेन्द्र नाग की अदालत में राज्य विरुद्ध आकाश यादव वगैरह प्रकरण धारा 323, 294, 506 आईपीसी के अंतर्गत 2018 से लंबित था। उक्त प्रकरण में दो प्रार्थी न्यायालय में उपस्थित हो गए थे, परन्तु एक प्रार्थी दयानंद नामक व्यक्ति बीमार होने के कारण अस्पताल में भर्ती था, जिसकी सहमति के बिना राजीनामा होना संभव नहीं था। उक्त सूचना जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव को मिलने पर उनके द्वारा पक्षकार के मोबाइल नंबर के माध्यम से संपर्क किया गया, जिस पर प्रार्थी ने बताया कि वह अभी चलने-फिरने में असमर्थ है, वह अपनी सहमति प्रदान करने हेतु न्यायालय नहीं आ सकता है। ऐसे में सचिव, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा राजेश श्रीवास्तव, अध्यक्ष, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, दुर्ग को उक्त जानकारी प्रदान की गई। इस पर पी.एल.व्ही. दुलेश्वर मटियारा को मोबाईल वैन के माध्यम से उक्त प्रार्थी का राजीनामा हेतु सहमति अंकित किए जाने हेतु भेजा गया। इसमें प्रार्थी ने उक्त प्रकरण को राजीनामा के माध्यम से खत्म करने हेतु अपनी सहमति व्यक्त की, जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 2018 से लंबित यह प्रकरण समाप्त किया गया।


व्यवहार न्यायाधीश वर्ग-2, दुर्ग रुचि मिश्रा के न्यायालय में लंबित एक अन्य मामले में प्रार्थी वासुदेव की तबीयत खराब होने के कारण वह न्यायालय आने में असमर्थ था। तब मोबाईल वैन के माध्यम से प्रार्थी तक पहुंचा गया तथा उनकी राजीनामा हेतु सहमति प्राप्त की गई। इसी न्यायालय में लंबित एक अन्य प्रकरण में पक्षकार वृद्ध (उम्र 65 वर्ष) होने के कारण न्यायालय आने में असमर्थ था, जिसे भी मोबाईल वैन के माध्यम से संपर्क किया गया एवं उसकी राजीनामा में सहमति प्राप्त की गई।
अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश दुर्ग आनंद कुमार बघेल के न्यायालय में लंबित मोटर दुर्घटना मुआवजा से संबंधित प्रकरण श्रीमती भावना महुले विरुद्ध बीनानाथ शाह में प्रार्थी महिला चोट से ग्रसित होने के कारण न्यायालय आने में असमर्थ थी। मोबाईल वैन के माध्यम से उन तक पहुंचा गया एवं उनकी राजीनामा हेतु सहमति प्राप्त कर 9 लाख 50 हजार रुपए की मुआवजा राशि स्वीकृत की गई।


00 19 लाख 20 हजार के न्याय शुल्क की वापसी का आदेश :
जिला न्यायाधीश दुर्ग राजेश श्रीवास्तव के न्यायालय में लंबित व्यवहार वाद संविदा के विशिष्ट पालन हेतु 6 करोड 20 लाख रुपये की अस्थायी निषेधाज्ञा हेतु मामला 20 जुलाई 2020 पेश किया गया था, जिसमें 19 लाख 20 हजार का न्याय शुल्क चस्पा किया गया था। प्रकरण में प्रतिवादीगण 2 करोड़ 18 लाख रुपये प्रदान करने हेतु सहमत हुए, जिसके फलस्वरूप न्याय शुल्क के रूप में जमा 19 लाख 20 हजार रूपये की वापसी का आदेश न्यायालय द्वारा पारित किया गया।
00 रायपुर जिले में न्याय खुद चल पड़ा पक्षकारों के द्वार :


आज रोड एक्सीडेंट के एक मामले में 78 वर्ष के बुजुर्ग पक्षकार, अली असगर अजीज को न्यायालय आने में परेशानी थी, उनके घुटनों का ऑपरेशन हुआ था। वे बुजुर्ग होने के कारण वे मोबाइल का उपयोग भी नहीं कर पाते थे। उनकी परेशानी को देखते हुये प्राधिकरण के दो पैरालीगल वालिंटियर्स ने रायपुर के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट भूपेन्द्र कुमार वासनीकर की खंडपीठ में वीडियो कान्फ्रेंस के माध्यम से निःशक्त पक्षकार अली असगर को उपस्थित कराया। न्यायालय द्वारा वीडियो कान्फ्रेंस के माध्यम से ही अली असगर को समझाइश दी गई और राजीनामा के संबंध में चर्चा की गई। थाना कोतवाली, रायपुर में राजीनामा के उपरांत मामला समाप्त किया।
इसी तरह चेक बाउंस के एक अन्य मामले में पक्षकार राजवंत सिंह एक दुर्घटना का शिकार हो गये और उनकी पसलियां टूट गई। वर्तमान में वे चलने-फिरने में असमर्थ हैं। राजवंत सिंह भी अपने मामले मे राजीनामा कर मामले को खत्म करना चाहते थे लेकिन अपने स्वास्थगत कारणों से वे न्यायालय आने में असमर्थ थे। राजवंत सिंह विरोधी पक्षकार को लिये गये उधार के एवज में चेक, न्यायालय के सामने देना चाहते थे। जब यह बात प्राधिकरण को पता चली तो प्राधिकरण ने पैरा वालिंटियर्स को वाहन सहित उनके घर भेजा और उनकी इच्छा के अनुसार उन्हें न्यायालय लेकर आ गये। उन्हें डा. सुमित सोनी के न्यायालय में उन्होंने चेक प्रदान किया और राजीनामा के माध्यम से यह मामला भी खत्म हुआ।


00 सरगुजा में 40 वर्ष पुराने मामले का निराकरण :
भूमि संबंधी विवाद को लेकर रामदुलार चैधरी वगैरह, के पिता शिबोधी चैधरी के द्वारा वर्ष 1980 में शिवमंगल सिंह के विरूद्ध व्यवहार न्यायालय के समक्ष प्रकरण प्रस्तुत किया गया था। उक्त व्यवहारवाद के सुनवाई के दौरान उभय पक्ष शिबोधी चैधरी एवं शिवमंगल सिंह की मृत्यु भी हो गई। उसके पश्चात् उनके उत्तराधिकारीगण प्रकरण में पक्षकार बनकर प्रकरण संचालित किये। इस मध्य प्रकरण माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष भी लंबित रहा, उक्त मामला न्यायालय के समक्ष 35 वर्षों तक संचालित रहा और वर्ष 2015 में व्यवहार न्यायालय के क्षरा प्रकरण का निराकरण स्वर्गीय शिबोधी चैधरी के उत्तराधिकारियों के पक्ष में फैसला सुनाया।

इसके विरूद्ध स्व0 शिवमंगल सिंह के उत्तराधिकारियों के द्वारा वरिष्ठ न्यायालय माननीय पंचम अपर जिला न्यायाधीश अंबिकापुर के समक्ष अपील प्रस्तुत की गई। उक्त अपील के निराकरण के लिए उभय पक्षों के मध्य समझौता की बातचीत हुई। इसमें संबंधित न्यायालय के द्वारा उभय पक्षों को समझाईश दी गई। अंततः मामला उभय पक्षों के द्वारा संबंधित न्यायालय के पीठासीन अधिकारी ओम प्रकाश जायसवाल की समझाईश तथा आपसी बातचीत कर समझौता के आधार पर अपील का निराकरण नेशनल लोक अदालत के माध्यम से 6 वर्षों के पश्चात् हो गया। उक्त समझौता प्रकरण 40 वर्ष पुराना होने के कारण संबंधित न्यायालय के पीठासीन अधिकारी के समझाईश एवं सहयोग से हुआ जिसमें उभय पक्ष के अधिवक्ता विकास श्रीवास्तव एवं उदयराज तिवारी ने भी सहयोग दिया।

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