कोरबा । सरकारी अस्पताल के डॉक्टर की लापरवाही किस कदर है इसका जीता जागता उदाहरण जिला चिकित्सालय में पदस्थ डाक्टरों के कार्य की गंभीरता से लगाया जा सकता है । जिला चिकित्सालय में एक महिला मरीज की जान चली गई और डाॅक्टर साहब पिकनिक मनाने में मशगुल रहे, वही डयूटी पर मौजूद जवाबदार डाॅक्टर महिला की मौत का तमाशा देखते रहे।
दरअसल पूरा मामला कोरबा के इंदिरा गांधी जिला अस्पताल का है, जो कि अब मेडिकल कालेज बन चुका है। बताया जा रहा है कि पिछले दिनो तबियत बिगड़ने पर पत्थरी पारा निवासी आर.डी.लक्ष्मी नामक महिला को 28 जून को परिजनों ने हार्ट में तकलीफ होने पर जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया था। 2 जुलाई तक जिला अस्पताल के विशेषज्ञ चिकित्सक डाॅ.विशाल सिंह राजपूत और डॉ प्रिंस जैन अस्पताल में भर्ती महिला का ईलाज किया।
4 जुलाई की सुबह अचानक बीमार महिला की हालत गंभीर हो गयी। हाॅस्पिटल से नर्स ने महिला की बिगड़ती हालत को देख सुबह 11 बजे के लगभग आनन-फानन में एम.डी.मेडिसीन डाॅ.प्रिस जैन को मोबाईल पर इमरजेंसी काल कर पेसेंट की हालत बिगड़ने की जानकारी दी गयी। नर्स की माने तो इमरजेंसी कॉल पर डाॅक्टर ने कुछ देर में अस्पताल पहुंचने का आश्वासन दिया, लेकिन वो अस्पताल न पहुंचकर दूसरे मेडिकल स्टाफ के साथ पिकनिक मनाने सतरेंगा चले गये। उधर पीड़ित महिला की सांसे उखड़ने लगी, महिला को तड़पता देख परिजन मरीज को बचाने की गुहार लगाने लगे, इसके बाद भी कोई सुनवाई न होने और डॉक्टर के नही आने पर परिवार वालो का गुस्सा फूट पड़ा। परिजनों के नाराज होने पर गुस्साई नर्स ने परिजनों को अस्पताल में मौजूद केजुअल्टी डाॅ. आर.एस.पैकरा के पास भेज दिया।
परिजनों की गुहार के बाद डाॅ. पैकरा मरीज के पास पहुचे और मरीज की बिगड़ती हालत को देख ईलाज के लिए विशेषज्ञ डाॅक्टर को फौरन बुलाने की बात कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया।बस फिर क्या था, वक्त के साथ-साथ महिला की तबियत बिगड़ती गयी और दोपहर डेढ़ बजें के लगभग डाॅक्टरों की संवेदनहीनता के कारण महिला का ईलाज के अभाव में मौत हो गया। मामला यहीं खत्म नही होता है, इसके बाद मृतिका के डेथ सर्टिफिकेट के लिए फिर से विशेषज्ञ डाॅक्टर को बुलावा भेजा गया, लेकिन विशेषज्ञ डाॅ.प्रिस जैन घर में ना होकर ट्रामा कोविड हास्पिटल के स्टाफ के साथ सतरेंगा में पिकनिक मनाने में मशगुल थे। ईलाज के अभाव में मौत की नींद सोने वाली महिला के परिजनो को शाम 4 बजें तक डेथ सर्टिफिकेट के लिए डाॅक्टरों के पीछे-पीछे घूमना पड़ा तब जाकर उन्हे डेथ सर्टिफिकेट मिल सका।
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