जांच शुरू होते ही स्थानांतरण के जुगत में लगे अधिकारी- कर्मचारी

कोरबा । आदिवासी विकास विभाग में डीएमएफ मद से अब तक हुए कार्यों की फाइलें फिर से खुल गई हैं। इसमें इओडब्ल्यू जांच के शुरू होने बाद में हुए कार्यो की सूची शामिल है। जांच के जवाबदेही को देखते हुए विभाग में पदस्थ अधिकारी स्थानांतरण की जुगत में लग गए हैं। वहीं दूसरे विभागों से आकर अटैचमेंट में चल रहे कर्मचारी अपने मूल पद में जाने की तैयारी में है। जांच जारी है, आने वाले दिनों में संलिप्त कर्मियों कार्रवाई की गाज गिर सकती है।

कलेक्टर रानू साहू ने पदस्थ होने के बाद डीएमएफ मद से स्वीकृत निर्माण और जारी राशि आहरण में छान बीन शुरू कर दी है। जांच शुरू होने पर जिम्मेदारी विभागीय अधिकारी पर ही आती है लेकिन वह पूरा नहीं होता। कलेक्टर बदलने के साथ ही अक्सर आदिवासी विभाग के अधिकारी भी बदल जाते हैं। ऐसे में विभाग के अधिकारी का स्थानांतरण सुनिश्चित माना जा रहा है। डीएमएफ की कमान छह साल पहले आदिवासी विकास विभाग के पास था। तात्कालिक सहायक आयुक्त श्रीकांत दुबे के कार्यकाल में सर्वाधिक निर्माण कार्य हुए और उन पर ही आहरण में हेराफेरी का आरोप लगा। जिसकी जांच ईओडब्ल्यू में जांच चल रही है। वर्ष 2014 में स्वीकृत कार्यों में बरती गई गड़बड़ी के कारण कलेक्टर ने अमरेश तिवारी को निलंबित कर दिया।

दूसरी ओर जिला खनिज न्यास में पदस्थ विकास सहायक मनोज टंडन की सेवा समाप्त कर दी लेकिन उसका कारण अब भी अबूझ पहेली बनी है। जिला खनिज न्यास गठन के बाद अब तक आदिवासी विकास विभाग में जितने भी कार्य हुए हैं वह कलेक्टर और सहायक आयुक्तों की सहमति से हुए हैं। अब तक इस मामले में ज्यादातर छोटे अधिकारियों पर ही कार्रवाई हुई है। बहरहाल पूर्व कलेक्टर किरण कौशल ने डीएमएफ मद से जिन निर्माण कार्यों के राशि जारी की थी उनमें कई कार्यों के आहरण पर कलेक्टर रानू साहू ने रोक लगा दी है। कार्य हुआ है या नहीं इस पर जांच चल रही है। पूर्व कलेक्टर के कार्यकाल में डीएमएफ मद से जारी काम अब भी अपूर्ण हैं। काम पूरा करने और राशि जारी कराने के लिए ठेकेदार मंत्रालय से संपर्क करने लगे हैं। देखना यह है कि डीएमएफ के निर्माण कार्यो में पारदर्शिता आती है या अधिकारी व कर्मचारी अपने स्थानांतरण कराने के मंसूबे में कामयाब होते हैं।

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