CG NEWS; बच्चों के लिए लीगल सर्विस यूनिट व मनो-न्याय के संबंध में कार्यशाला आयोजित

उत्तर बस्तर कांकेर,25 जनवरी 2025 (वेदांत समाचार)। राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण नई दिल्ली एवं राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण बिलासपुर के मार्गदर्शन में आनंद कुमार धु्रव, प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश, अध्यक्ष जिला विधिक सेवा प्राधिकरण कांकेर की उपस्थिति एवं अध्यक्षता में जिला एवं सत्र न्यायालय कांकेर के सभाकक्ष मे बच्चों लिए लीगल सर्विस यूनिट व लीगल सर्विस यूनिट मनो-न्याय के लिए कार्यशाला आयोजित किया गया। इस दौरान प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश आनंद कुमार धु्रव के द्वारा बताया गया कि संसार मे ईश्वर की सबसे महत्वपूर्ण कृति मनुष्य को माना गया है।

धर्म शात्रो के अनुसार मनुष्य का निमार्ण उसके बाल्य अवस्था से प्रारंभ हो जाता है। बालक की सहज मुस्कान सबको अपनी ओर आकर्षित करता हैं। हम बच्चो को बोल चाल की भाषा में भगवान की संज्ञा देते है। इसलिए एक बालक की उपेक्षा संपूर्ण समाज के लिए घातक हो सकती हैं। बालक की देखभाल व संरक्षण हेतु परिवार, समाज एवं राज्य द्वारा अपने संसाधनों के माध्यम से किया जाता है, इसके बाद भी कुछ बच्चें सामाज में ऐसे होते हैं जो इन अवसरों से वंचित रह जाते हैं जिनसे उनका व्यवहार विपरित होने लगता और कानून का उल्लंघन करते हैं।

बच्चों के सुधार हेतु पहली बार देश में किशोर न्याय अधिनियम लागू किया गया इसी प्रकार वर्ष 1989 में संयुक्त राष्ट्र सभा द्वारा अनुमोदित बाल अधिकार समझौते में बालक शारिरीक तथा मानसिक रूप से अपरिपक्व होने के कारण उनके सुरक्षा एवं देखभाल की आवश्यकता पर बल दिया है। आज विश्व के सभी देशों में कुछ बच्चें अत्यंत कठिन परिस्थितियों में रह रहे हैं उनकी ओर ध्यान देने की जरूरत है। इसी प्रकार मनोरोग व्यक्तियों के साथ दुर्व्यवहार, हिंसा और शोषण होता है, जिसके अधार पर उन्हे समाज में समानता, और सम्मान नही मिल पाता है। मनोरोग व्यक्तियों को उनके विकलांगता के आधार पर भेदभाव किए बिना किसी भी अदालत, न्यायाधिकरण, प्राधिकरण, आयोग या न्यायिक या अर्ध-न्यायिक या जांच शक्तियों वाले किसी भी अन्य निकाय तक पहुँचने के अधिकार का प्रयोग करने में सक्षम होने के लिए सहायता करना है।

मनोरोगी के अधिकार अधिनियम, 2016 के अनुसार अपनी मनोरोग के कारण, उन्हें उनके अधिकारों, विशेष रूप से समावेशी शिक्षा के अधिकार तक पहुँचने में भेदभाव या अन्य कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे बच्चे और उनके अभिभावक अपने अधिकारों, लाभों और हकों का लाभ गठित युनिट मनो न्याय आप के माध्यम से उठा सकें। ऐसे निःशुल्क और कानूनी सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करना है, कानूनी सेवाएँ प्रदान करते समय उपयुक्त भाषा, दृश्य सहायता, समावेशी, सुलभ बुनियादी ढाँचे का उपयोग की रणनीतियाँ तैयार कर विधिक साहायता देनी होगी।

साथ ही कार्यशाला मे उपस्थित विपिन जैन जिला कार्यक्रम अधिकारी, महिला एवं बाल विकास विभाग कांकेर के द्वारा बताया गया कि महिला बाल विकास विभाग के द्वारा संचालित होने वाले बालिका गृह जिसमें 18 वर्ष से कम उम्र के बालिकाओं को रखा जाता है ये वो बालिका होती है जिनके पलक नहीं है, और जिनके पलक बालिकाओं का पालन पोषण करने में असमर्थ है। उनको बालिकाओ को बालिका गृह में रख कर उनके रहने, खाने पीने और पढ़ाई की सुविधाएं प्रदान की जाती है। साथ ही ’कारा’ ऐप के माध्यम से बच्चे लीगली गोद लेनी की प्रक्रिया के बारे में जानकारी दिया गया। कार्यशाला में श्रीमती लीना अग्रवाल, प्रथम जिला एवं अपर सत्र न्यायाधीश कांकेर, भुपेन्द्र कुमार वासनीकर अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश (एफ.टी.एस.सी.) कांकेर, भास्कर मिश्र मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, प्रभारी सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण कांकेर सहित लीगल सर्विस यूनिट के अधिवक्तागण एवं पैरालीगल वालेंटियर्स उपस्थित रहे।