हाई कोर्ट के बारे में कड़ी टिप्पणी, जानें सुप्रीम कोर्ट ने क्यों की ये टिप्पणी

नई दिल्ली,09 जनवरी 2025 : सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को लखनऊ के जियामऊ में उस विवादित स्थल पर प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आवास यूनिट्स के निर्माण को लेकर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया, जिस पर गैंगस्टर-नेता रहे मुख्तार अंसारी के बेटे स्वामित्व का दावा कर रहे हैं। साल 2020 में लखनऊ विकास प्राधिकरण ने मुख्तार और अब्बास अंसारी समेत उसके बेटों के बंगले को बुलडोजर से ढहा दिया था। सरकार पीएम आवास योजना के तहत विवादित स्थल पर फ्लैट बनाने की योजना बना रही है। याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के बारे में कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि वह उन हाई कोर्ट्स में है, जिसके बारे में हमें चिंतित होना चाहिए।

जस्टिस सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने अब्बास अंसारी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की इस दलील पर गौर किया कि भूमि पर कब्जे से संबंधित याचिका को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की खंडपीठ के समक्ष बार-बार सूचीबद्ध किया गया, लेकिन कोई अंतरिम रोक नहीं लगाई गई। पिछले साल 21 अक्टूबर को शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट से अंतरिम रोक संबंधी आवेदन पर जल्द से जल्द सुनवाई करने को कहा था। गुरुवार को जब मामला सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए आया तो सिब्बल ने पीठ को बताया कि उसके आदेश के बावजूद मामले पर सुनवाई नहीं हुई है। बेंच ने कहा, ”कुछ हाई कोर्ट के बारे में हम कुछ नहीं कह सकते। लेकिन इलाहाबाद हाई कोर्ट उन हाई कोर्ट्स में से एक है, जिसके बारे में चिंतित होना चाहिए।”

निर्माण स्थल पर यथास्थिति बरकरार रखते हुए शीर्ष अदालत की पीठ ने उच्च न्यायालय को मामले की शीघ्र सुनवाई करने का निर्देश दिया। बेंच ने कहा, ”चूंकि हमने नोटिस जारी नहीं किया है और उच्च न्यायालय की रजिस्ट्री से कोई रिपोर्ट भी प्राप्त नहीं की है, इसलिए हम इस बारे में कोई राय व्यक्त करने के लिए इच्छुक नहीं हैं कि ऐसी कौन सी परिस्थितियां थीं, जिनमें याचिकाकर्ता की रिट याचिका पर पीठ ने गौर नहीं किया जबकि इसे समय-समय पर सूचीबद्ध किया गया था।”

अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने स्पष्ट रूप से कहा है कि प्राधिकारियों ने लखनऊ के जियामऊ गांव में स्थित प्लॉट संख्या 93 पर निर्माण कार्य शुरू कर दिया है, जिसपर याचिकाकर्ता अपने स्वामित्व का दावा कर रहे हैं। अदालत ने कहा कि अगर तीसरे पक्ष के अधिकार बनाए जाते हैं तो इससे याचिकाकर्ताओं को अपूरणीय क्षति हो सकती है। अदालत ने कहा, ”हम इस आवेदन का निपटारा अधिकारियों और याचिकाकर्ताओं को यह निर्देश देते हुए करते हैं कि वे मामले की सुनवाई उच्च न्यायालय में होने तक स्थल पर यथास्थिति बनाए रखें।” अब्बास अंसारी के अनुसार, उनके दादा ने जियामऊ में एक प्लॉट में हिस्सा खरीदा था और 9 मार्च 2004 को डीड पंजीकृत कराई गई थी।

याचिका में कहा गया है कि उन्होंने उक्त संपत्ति को कथित तौर पर अपनी पत्नी राबिया बेगम को उपहार में दिया था, जिन्होंने 28 जून 2017 को पंजीकृत वसीयत के माध्यम से इसे याचिकाकर्ता और उनके भाई को दे दिया था। याचिका में कहा गया है कि उप-विभागीय मजिस्ट्रेट, डालीबाग, लखनऊ ने कथित तौर पर 14 अगस्त, 2020 को (याचिकाकर्ताओं की अनुपस्थिति में) एक पक्षीय आदेश पारित कर भूखंड को सरकारी संपत्ति घोषित कर दिया। इसके बाद याचिकाकर्ता और उसके भाई को अगस्त 2023 में बेदखल कर दिया गया। इसके बाद अब्बास अंसारी ने 2023 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ में याचिका दायर की। एसडीएम के आदेश से प्रभावित, भूखंड के कुछ अन्य सह-मालिकों ने भी उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और मामला खंडपीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया।

जब अब्बास अंसारी की रिट याचिका 8 जनवरी, 2024 को एकल न्यायाधीश के समक्ष सुनवाई के लिए आई, तो उन्होंने इसे अन्य मामलों के साथ सूचीबद्ध करने का आदेश दिया ताकि परस्पर विपरीत आदेशों से बचा जा सके। अब्बास अंसारी ने दलील दी कि उनकी रिट याचिका को बार-बार खंडपीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया है, लेकिन उनके पक्ष में कोई अंतरिम स्थगन आदेश पारित नहीं किया गया है, जैसा कि अन्य प्रभावित व्यक्तियों के मामले में किया गया है। याचिका में कहा गया है, ”प्राधिकारियों ने याचिकाकर्ता के भूखंड पर कब्जा लेने के बाद, प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत उस स्थान पर कुछ आवासीय इकाइयों का निर्माण शुरू कर दिया है।”