केंद्र ने माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में विकास करने महाराष्ट्र सरकार के प्रयासों की सराहना की

भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहरों में निरंजना (फल्गु) नदी का अपना विशिष्ट स्थान है। झारखंड के चतरा से उद्गमित होकर बिहार के गया से बहने वाली यह नदी केवल जलधारा नहीं, बल्कि हिंदू, जैन और बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए आध्यात्मिक आस्था और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है। लेकिन समय के साथ, घटते जल प्रवाह, प्रदूषण, गाद जमाव, और अतिक्रम कारण यह पवित्र नदी अब पर्यावरणीय संकट से जूझ रही है। यह नदी आज अपनी प्राकृतिक निर्मलता और अविरलता की बांट जोह रही है।

ऐसे में निरंजना नदी के संरक्षण और पुनरुद्धार की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल करते हुए राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के महानिदेशक राजीव कुमार मित्तल के नेतृत्व में एक महत्वपूर्ण बैठक का आयोजन किया गया। बैठक में कार्यकारी निदेशक (परियोजना) बृजेन्द्र स्वरुप, एसएमसीजी, गोकुल फाउंडेशन (एनजीओ) समेत विभिन्न तकनीकी संसथान शामिल रहे। बैठक में निरंजना नदी के कायाकल्प के लिए परियोजनाओं और रणनीतियों पर विस्तृत चर्चा की गई। इस दौरान महानिदेशक ने नदी के संरक्षण और पुनर्जीवन को सुनिश्चित करने के लिए विज्ञान, सामुदायिक भागीदारी, और टिकाऊ विकास पर आधारित दृष्टिकोण अपनाने पर जोर दिया। उन्होंने उन चुनौतियों और समाधानों पर भी प्रकाश डाला, जो नदी के भविष्य को सुरक्षित करने में सहायक होंगे।

बैठक में बताया गया कि निरंजना नदी के पुनर्जीवन के लिए एक बहुआयामी रणनीति तैयार की गई है। यह रणनीति वैज्ञानिक दृष्टिकोण, तत्काल समाधान, और सामुदायिक भागीदारी पर आधारित है। परियोजना के तहत नदी की भौगोलिक, जलविज्ञान, और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों का गहन अध्ययन किया जाएगा। इसके लिए आईआईटी-रुड़की, आईआईटी-बीएचयू, नाबार्ड कंसल्टेंसी सर्विसेज़ और साउथ बिहार यूनिवर्सिटी के बीच एक मजबूत गठबंधन बनाया गया है।

वैज्ञानिक आधार पर इस योजना को लागू किया जाएगा। पहले चरण में गया और चतरा जिलों में नदी के बेस फ्लो को बहाल करने के लिए 21 जल निकायों का पुनरुद्धार और पुनर्भरण खाइयों का निर्माण होगा। इस परियोजना में तकनीकी विशेषज्ञता के साथ-साथ स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी। इससे न केवल तकनीकी संवेदनशीलता दिखाई देगी, बल्कि सामुदायिक सहभागिता का भी एक आदर्श प्रस्तुत होगा।

नदी के पुनरुद्धार को एक स्थायी सफलता बनाने के लिए गोकुल फाउंडेशन के नेतृत्व में एक हरित क्रांति की तैयारी है। इस पहल के तहत बड़े पैमाने पर वनरोपण और पारिस्थितिक पुनर्स्थापन कार्य शुरू किए जाएंगे। लेकिन यह केवल पेड़ लगाने का अभियान नहीं है; यह लोगों को प्रकृति के साथ जोड़ने और उन्हें इस मिशन का मूल स्तंभ बनाने की योजना है। जागरूकता कार्यक्रमों और सक्रिय भागीदारी के माध्यम से स्थानीय समुदायों को प्रेरित किया जाएगा, ताकि हर नागरिक इस बदलाव का हिस्सा बन सके।