CG:धूमावती पीठ, जहां देवी को लगता है समोसा, कचौरी, बड़ा का भोग

रायपुर। Spiritual News: राजधानी में मां धूमावती का एकमात्र मंदिर पुरानी बस्ती इलाके में है। यहां माता निराकार रूप में विराजीं हैं, अर्थात माता का कोई स्वरूप नहीं है, ज्योति बिंदु के रूप में माता की पूजा-अर्चना की जाती है। इस मंदिर की खासियत यह है कि माता को भोग प्रसादी के रूप में तेल में तले हुए तीखे मिर्च-मसालों वाले व्यंजन समोसा, कचौरी, बड़ा, मुंगोड़ी, आलू गुंडा, गुलगुला, मिर्ची भजिया और दूध से बनी सफेद मिठाई का भोग अर्पित किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि मां धूमावती उग्र स्वभाव वाली देवी हैं, इसलिए देवी मां को तीखे मिर्च मसालों वाले खाद्य पदार्थ अति प्रिय हैं।

ज्येष्ठ शुक्ल अष्टमी 18 जून को जयंती
मां धूमावती पीठ गायत्री जयंती, जानकी जयंती, श्रीराम जन्म, हनुमान जन्मोत्सव, कृष्ण जन्माष्टमी अलग-अलग तिथियाें पर मनाने का विधान है। उसी तरह मां धूमावती की जयंती ज्येष्ठ शुक्ल अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। यह इस बार 18 जून को पड़ रही है। इस दिन मंदिर में विशेष हवन, भोग प्रसादी, पूजन किया जाएगा। पुजारी के अनुसार, देशभर में कहीं भी मां धूमावती का मंदिर नहीं है। श्रद्धालुगण अपने घर पर अथवा मंदिरों में मां धूमावती की पूजा ज्योति बिंदु के रूप में ज्योति प्रज्ज्वलित करके मनाते हैं। माता से रोग, दुख का नाश होने की कामना करते हैं।

10 साल से की जा रही पूजा
पुरानी बस्ती में 250 साल पुराने शीतला मंदिर परिसर में 10 साल पहले मां धूमावती के निराकार स्वरूप की प्रतिष्ठापना करके पूजा-अर्चना की जा रही है। चैत्र एवं क्वांर नवरात्रि के अलावा ज्येष्ठ शुक्ल अष्टमी पर जयंती धूमधाम से मनाई जाती है।

शास्त्रों में विधवा रूप
पुजारी बताते हैं कि शास्त्रों में मां धूमावती की व्याख्या विधवा देवी के रूप में की गई है। उनका वस्त्र सफेद रंग का है और वाहन कौआ है। वे हाथ में सूपा धारण करतीं है। ऐसी मान्यता है कि माता की पूजा अर्चना से दुख, रोग, गरीबी, दरिद्रता का नाश होता है। भक्तों के संकट को माता सूपा में धारण कर कष्ट दूर करती हैं।

कोरोना काल में मंदिर बंद, सादगी से हवन-पूजा
कोरोना महामारी के चलते पिछले दो माह से सभी धर्मस्थलों में श्रद्धालुओं के प्रवेश पर पाबंदी है। मंदिरों में केवल पुजारीगण ही पूजा कर रहे हैं। प्रशासन के नियमों के अनुसार धूमावती जयंती पर भी पुजारी और सेवादार ही पूजा में शामिल होंगे। जिन श्रद्धालुओं की कुंडली में मंगल दोष, काल सर्प दोष है, उनके संकट निवारण के लिए तांत्रिक विधि से हवन पूजा की जाती है। मंदिर में पूरे सालभर अखंड रूप से जलने वाली ज्योति प्रज्ज्वलित की जाएगी।

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